गर्मी की एक धुंधली सी शाम थी, जब सूरज ने अपनी आखिरी किरणों से धरती को जलाया था। गांव के दूर-दराज खेतों में हलवाहे काम कर रहे थे, और किसान अपने घर लौट रहे थे। यह एक सामान्य सा दिन था, लेकिन रामनाथ जी के घर में कुछ अलग हो रहा था। उनके जीवन में एक अजीब सी खामोशी पसरी हुई थी, जो शायद किसी बड़े तूफान का पूर्वाभास थी। उनका परिवार जो कभी आदर्श और खुशियों से भरा हुआ था, अब धीरे-धीरे टूटने की कगार पर था।
रामनाथ जी, जो एक समर्पित शिक्षक और गांव के सबसे आदर्श व्यक्ति के रूप में जाने जाते थे, अब अपने परिवार के भीतर उभरते असंतोष और दरारों को महसूस कर रहे थे। उनकी पत्नी सुशीला, जो हमेशा अपने फैसलों में मजबूत और निर्णायक रही थीं, अब अजय के साथ कुछ मुद्दों पर बिल्कुल भी नहीं बन पा रही थीं। अजय, उनका बेटा, जो कभी अपनी माँ का प्यारा और आदर्श बेटा हुआ करता था, अब एक अजनबी सा महसूस हो रहा था। वह अपनी माँ से दूर हो गया था और अपने विचारों की गहराईयों में डूबा हुआ था।
रामनाथ जी का विश्वास था कि परिवार का सामंजस्य सबसे महत्वपूर्ण है, और इसीलिए उन्होंने कभी अपनी पत्नी और बेटे के बीच हो रही खामोशियों को ज्यादा तूल नहीं दिया। वे हमेशा सोचते थे कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा, लेकिन समय के साथ यह दरार और भी गहरी होती जा रही थी।
सुशीला, जो अपने तरीके से अजय को सही राह पर लाने की कोशिश कर रही थीं, अब महसूस करने लगी थीं कि शायद उनका तरीका गलत था। वह हमेशा अजय से उम्मीद करती थीं कि वह उनके बताए रास्ते पर चले, लेकिन अजय की सोच अब कहीं और जा रही थी। वह खुद को दबा हुआ महसूस कर रहा था, और उसकी मां की मजबूत पकड़ ने उसे और भी संकोची बना दिया था।
“माँ, मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए,” एक दिन अजय ने सुशीला से कहा। “मैं अपनी जिंदगी खुद जीना चाहता हूँ।”
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सुशीला ने गुस्से में आकर कहा, “तुम मेरी बातों को क्यों नहीं समझते, अजय? क्या तुमने कभी सोचा है कि मैं तुम्हारे भले के लिए ही तुम्हें सलाह देती हूं?”
“पर माँ, आपकी सलाह अब मुझे सही नहीं लगती। मुझे खुद के फैसले लेने दो,” अजय ने जवाब दिया, और फिर चुप हो गया। उसकी आँखों में गहरी उदासी थी, जो सुशीला के दिल को छू गई, लेकिन वह फिर भी अपनी सख्ती छोड़ने को तैयार नहीं थी।
रामनाथ जी यह सब चुपचाप सुन रहे थे, लेकिन उनके मन में उथल-पुथल मची हुई थी। वे जानते थे कि यह जो कुछ भी हो रहा है, वह एक लंबे समय से हो रहा था, और अब यह किसी भी समझौते से नहीं सुलझने वाला था। अब यह उनका परिवार नहीं था, बल्कि एक ऐसा समाज बन चुका था, जहां सभी अलग-अलग दिशाओं में चल रहे थे, और कोई एक दूसरे को समझने के लिए तैयार नहीं था।
अगली सुबह, रामनाथ जी ने अपने दिल की बात सुशीला से कही, “सुशीला, हमें अब यह सब खत्म करना होगा। समझौता अब नहीं। यह जो कुछ भी हो रहा है, वह हमारी नासमझी का परिणाम है। हम दोनों ने अजय को हमेशा अपनी इच्छाओं के हिसाब से ढाला, लेकिन क्या हमने कभी उसकी असली भावना को समझने की कोशिश की?”
सुशीला चुप हो गईं, और उनके चेहरे पर एक हल्की सी झुर्री बन गई। वे सोचने लगीं कि क्या सचमुच वह अपने बेटे के साथ न्याय कर रही थीं, या उसे अपनी इच्छाओं के अनुसार ढालने की कोशिश कर रही थीं।
रामनाथ जी ने आगे कहा, “हमारे बीच जो भी मतभेद हैं, उन्हें अब हमें एक दूसरे के दृष्टिकोण से देखना होगा। हमें अजय को अपनी स्वतंत्रता और पहचान बनाने का पूरा मौका देना होगा।”
सुशीला ने गहरी सांस ली और धीरे से कहा, “क्या हमें अब अपने तरीके बदलने होंगे ?
रामनाथ जी ने ठान लिया था कि अब कुछ बड़ा करना होगा। उन्होंने सुशीला से कहा, “हम दोनों ने अजय को कभी समझने की कोशिश नहीं की। हमने उसे हमेशा अपने ढंग से जीने का दबाव डाला, लेकिन अब हमें उसे अपनी राह चुनने की पूरी स्वतंत्रता देनी होगी।”
उस दिन के बाद, रामनाथ जी ने घर में एक नई शुरुआत की। उन्होंने अजय से कहा, “अजय, हमें अब एक दूसरे से सच्चे दिल से बात करनी चाहिए। तुम्हें अपनी जिंदगी को जैसा चाहो वैसा जीने का पूरा हक है, और हमें तुम्हारी पसंद का सम्मान करना चाहिए।”
अजय ने चुपचाप अपने पिता की बातों को सुना, और फिर उसने कहा, “पापा, माँ, मुझे लगता है कि अब मैं आप दोनों को समझ सकता हूँ। मुझे यह एहसास हुआ कि आप दोनों ने मुझे अपने ढंग से जीने के लिए कहा, क्योंकि आप मुझे प्यार करते थे, लेकिन अब मुझे अपने रास्ते खुद चुनने का अधिकार चाहिए।”
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रामनाथ जी और सुशीला दोनों की आँखों में आंसू थे, लेकिन यह आंसू दर्द के नहीं, बल्कि सुकून के थे। अब उन्हें यह समझ में आया कि कभी-कभी हमें रिश्तों में समझौते की बजाय स्पष्टता और सम्मान की जरूरत होती है।
समझौते की जगह अब उनकी जिंदगी में एक नया कदम था। रामनाथ जी, सुशीला और अजय ने मिलकर एक नए दृष्टिकोण से अपने रिश्तों को ढालने का निर्णय लिया। वे अब एक दूसरे के फैसलों का सम्मान करते हुए, साथ में जीने की कोशिश करेंगे।
अजय ने अपनी राह चुनने का फैसला लिया, और उसके बाद उसके और उसके माता-पिता के बीच का रिश्ता बहुत गहरे स्तर पर बदल गया। उन्होंने अब एक दूसरे से समझौता नहीं किया, बल्कि एक-दूसरे की असलियत को स्वीकार किया।
इस नए दृष्टिकोण ने उनके परिवार को सच्चे मायने में जोड़ दिया। अब वे अपनी जिंदगी में प्यार और सम्मान से बढ़कर कोई चीज़ नहीं चाहते थे। समझौता अब नहीं—यह शब्द अब उनके जीवन का मंत्र बन गया था।
कभी – कभी बच्चों के मन में क्या है, ये समझना बहुत जरूरी होता है। अजय के माता पिता ने तो ये बात समझ ली लेकिन क्या सब की किस्मत अजय जैसी है??
माता पिता कभी गलत नहीं कहते। लेकिन एक बार अपने बच्चों की भावनाओं को भी समझना चाहिए।
तृप्ति सिंह…….