सुनिए कल सुबह मुझे सात बजे की बस पकड़नी है ऋषिकेश के लिए।
कल सुबह? ऋषिकेश? किसलिए?
आनंद जैसे नींद से जागा हो,इस तरह चौंक गया।
अरे मैंने आपको बताया तो था कि मैं अब कुछ दिन के लिए प्रकृति की गोद में रहना चाहती हूं, यहां की भागम भाग से आजिज आ चुकी हूं मैं, मैंने तो आपसे भी कहा था चलने को पर आपको फुर्सत ही नहीं।
फुर्सत तो मुझे भी नहीं मिली पिछले बीस सालों से आगे भी शायद न मिले पर अब मैंने सोच लिया है कि मुझे अपने लिए समय निकालना ही है । जीवन रेत की तरह हाथ से निकल जा रहा है और हम हैं कि ये नून तेल लकड़ी में ही फंसकर रह गये हैं। क्या ही फायदा है ऐसी महत्वाकांक्षाओं का जिनमें एक लक्ष्य पूरा होता है और दूसरे को पकड़ने की दौड़ लगानी पड़ती है??
अब बस बहुत हुआ मैं इस जिंदगी से ऊब चुकी हूं, मुझे अब बदलाव की सख्त दरकार है।
पर दीपा ऐसे यूं अचानक अकेले??
अरे अचानक कहां, बताया तो था न आपको ?
पर मेरे पास तो समय ही नहीं है अभी।
तभी तो जब आपके पास समय हो तब आ जाइयेगा, वैसे भी मैं एक महीने को जा रही हूं,इतने में समय मिले तो आइयेगा हमसे मिलने,दीपा ने शरारत से हंसते हुए कहा।
अरे दीपा तुम मजाक कर रही हो न?
नहीं जानेमन मजाक नहीं हकीकत है , मैंने रैथल में महीने भर के लिए होमस्टे बुक कर लिया है । वहीं रहकर मैं अपनी ये नई किताब पूरी करुंगी और प्रकृति की गोद में रहकर उससे एकाकार करुंगी।
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और हां वहां सिग्नल की समस्या रह सकती है तो आप परेशान मत होना , मैं स्वयं ही कांटेक्ट कर लिया करूंगी।
दीपा लेकिन रीना, उसे तुमने बताया,कि नहीं??
उसे बता भी दिया है और समझा भी दिया है ।
वो तो खुद कह रही है कि छुट्टी होने पर वह स्वयं भी कहीं ऐसी जगह जाना चाह रही थी और हो सकता है कि वो वहां आए मेरे पास।
तो तुम्हारा इरादा पक्का है?
शत-प्रतिशत पक्का है ।
आप आराम से अपना बिजनेस संभालिए साहब ,हम डिस्टर्ब नहीं करेंगे , अगले एक महीने ।
अरे तुम मुझसे नाराज हो कर जा रही हो क्या?
नहीं बिल्कुल भी नहीं । कोई नाराज़गी नहीं है ,न आप से न किसी और से लेकिन अब समझौता करके जिंदगी नहीं जीनी है मुझे बस।
मैं अब अपने वो सब शौक पूरे करुंगी जो बच्चों की परवरिश के चलते मुझसे चाहे अनचाहे छूटते चले गए ।
अब मुझे अपने शौक जीने हैं।
अरे हां मेरा कैनवास स्टैंड देखना चाहोगे??
कैनवास स्टैंड? वो किसलिए , आखिर तुम करना क्या चाहती हो? याद है आनंद जब हम पहली बार मिले थे?
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हां याद है न तुम कॉलेज के मैदान में पेंटिंग बना रहीं थीं और मैं तुमसे किसी फैकल्टी का रास्ता पूछने आया था ,वो पल कैसे भूल सकता हूं मैं? मुझे तो यह भी याद है कि तुम्हारी उस पेंटिंग में एक विरहिणी किसी की याद में पेड़ के नीचे बैठी थी और आंसुओं को तुमने झरते हुए फूल की शक्ल दी थी ,सब कुछ चलचित्र की तरह याद है मुझे।
हम् लेकिन ये याद नहीं रहा कि पेंटिंग्स मेरी रग रग में बसती थीं?
हां , वो भी याद है, पर वो तो गुजरे जमाने की बात हैं ,अब उन बातों का क्या ही मतलब??
मतलब है डियर, मतलब है।
अब मैं फिर से पेंटिंग्स बनाऊंगी । क्या कह रही हो?
सच कह रही हूं । अब जीवन अपनी शर्तों पर जीऊंगी अपनी पसंद अनुसार ,समझे।
हम् समझ गए और हमें भी अब मोहतरमा के लिए जीना होगा नहीं तो अकेले छोड़ने का प्लान तो बना ही चुकी हो तुम?
अकेले कहां हो तुम , तुम और तुम्हारा बिजनेस है न?
वैसे भी तुम भी तो अपना पैशन जी रहे हो न ? मुझे भी मेरा पैशन जीना है और हां हमेशा के लिए नहीं जा रही आती जाती रहूंगी तुम्हें ऐसे आजाद करने का कोई इरादा नहीं है मेरा, समझे ।और दोनों खिलखिला कर हंस पड़े।
सुबह दीपा ऋषिकेश के लिए निकली तो सही पर अकेले नहीं थी हमसफ़र साथ था गाड़ी में उसे उसकी मंजिल तक खुशी खुशी पहुंचा कर आने के लिए।
दीपा मन ही मन सोच रही थी बहुत हुआ ,समझौता अब और नहीं ।
©®पूनम सारस्वत