पूनम जब से इस घर में बहू बनकर आई है वह देख रही है सारे काम तो वह स्वयं करती है किंतु दूध के समय मम्मी जी सबका दूध तैयार करती है उसमें से पूनम और खुद का दूध आधा गिलास करती है बाकी पापा जी, पतिदेव, देवर जी और दोनों नंदो का, हमेशा पूरा ग्लास रहता है! एक दिन पूनम ने अपनी सास रुक्मणी से पूछा.. मम्मी.. आप सभी के गिलास तो पूरे भरती हैं किंतु आपका और मेरा गिलास हमेशा आप आधा ही भरती हैं क्या आपको नहीं लगता हमें भी दूध पूरा मिलना चाहिए.?
पूनम को अपने मायके से ही जब तक दूध में मलाई ना हो दूध पीने का मजा ही नहीं आता था पूनम के पापा ने उसकी शादी एक ऐसे परिवार में की जहां सभी लोग नौकरी वाले थे और पूनम की सास हर चीज का हिसाब स्वयं रखती थी, हां बेटा… वह बात तो सही है पर तू देख यह सब लोग कितनी मेहनत करते हैं तेरे पापा, रवि और विनय ऑफिस जाते हैं और मेघा और रश्मि दोनों अभी कॉलेज की पढ़ाई कर रही है तो यह लोग शारीरिक काम के साथ-साथ दिमाग का काम भी ज्यादा करते हैं तो इन्हें दूध की
, मेवा की ज्यादा जरूरत होती है, हमारा क्या है हम तो हमेशा घर में ही रहते हैं घर में कितना ही काम रहता है, अब पूनम कैसे बताए क्या घर में रहने वालों के पास कोई काम नहीं होता… कितना तो काम करती है पूनम, सुबह 6:00 बजे से लेकर रात के 10:00 बजे तक, पता नहीं क्यों आधा गिलास अगर और दूध दोनों सास बहू ले भी लेंगे तो घर में क्या घाटा आ जाएगा, सभी जने घर में कमाने वाले हैं पैसे की कोई कमी नहीं है परंतु कुछ कह नहीं पाती और अपना मन मार कर रह जाती है,
वह अपनी मर्जी से कभी कोई चीज लेकर भी नहीं खा पाती,उसके मायके में तो उसके पिता का किराने का व्यापार था और पूनम की मम्मी भी उसे शुरू से खूब दूध दही मलाई घी खाने में देती थी आजकल के बच्चे तो घी और मलाई से दूर भागते हैं किंतु पहले के बच्चे तो इन्हीं को खा खा कर तंदुरुस्त हुए हैं और पहले मानना भी यही था कि जितना घी पियोगे उतना ही ताकत आएगी! आज भी हमारे यहां बच्चा होने के बाद अच्छी मात्रा में घी खिलाया जाता है ताकि मां और बच्चा दोनों स्वस्थ और तंदुरुस्त रहें,
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खैर.. ऐसे ही दिन गुजरते चले गए अब पूनम के देवर विनय की भी शादी हो गई, पूनम की देवरानी अवनी थोड़ी सी तेज थी पूनम तो हर बात पर समझौता कर लेती किंतु अवनी जल्दी से किसी भी बात पर समझौता करने को तैयार नहीं होती, विनय की शादी के 6 महीने बाद ही पूनम को एक प्यारा सा बेटा हुआ तब उसके मायके से उसकी मां ने गोंद के लड्डू घी सूखा मेवा और बहुत सारी मिठाइयां और जाने कितने ही समान भेजें, घी लड्डू और सूखे हुए मेबे तो उन्होंने खास तौर पर अपनी बेटी के लिए भेजे थे
ताकि बच्चा होने के बाद उसके कोई कमजोरी ना रह जाए किंतु सासू मां ने वह लड्डू जो 2 महीने में खत्म होने थे 20 दिन में ही खत्म कर दिए क्योंकि वह सभी को उन् लड्डुओं में से एक-एक लड्डू दे देती, पूनम फिर मन मसोस कर कर रह जाती क्योंकि वह तो उसके लिए अलग से उसकी मां ने भेजे थे उसकी सास ने उसे कभी लड्डू बनाकर नहीं दिए किंतु वह क्या करती! एक दिन अवनी ने अपनी जेठानी से कहा….
भाभी यह सामान तो आपके मायके से आपके लिए अलग से आया है तो आप मम्मी जी को मना क्यों नहीं करती, इन्हीं सब चीजों को खाने से तो आपके शरीर मेंताकत आएगी और मम्मी जी ने तो सारा सामान खत्म भी कर दिया, हां अवनी… मैं जानती हूं अगर मैं चाहूं तो अपनी मम्मी से फोन कर दोबारा यह सब चीज मंगा सकती हूं किंतु इसमें मेरी ससुराल की बेइज्जती होगी और मैं ऐसा नहीं चाहती! लेकिन भाभी कभी तो आपको बोलना पड़ेगा ऐसे आप कब तक समझौता करेंगे
और ऐसे ही धीरे-धीरे दिन व्यतीत हो गई, डेढ़ साल बाद अवनी को भी बिटिया हुई और उसके मायके से भी बहुत सारा सामान आया, पूनम को देखकर अवनी भी कुछ-कुछ समझौते करने लग गई थी क्योंकि पूनम ने कहा था.. थोड़े बहुत समझौते तो सभी को अपनी जिंदगी में करने पड़ते हैं और करने चाहिए भी क्योंकि तभी जिंदगी खुशहाल रहती है, हम उनके लिए समझौते करते हैं तो यह भी तो हमारे लिए कई समझौते करते हैं! इस बार पूनम की सास ने जैसे ही वह लड्डू सभी घरवालों को दिए एक-दो दिन तो पूनम ने देखा
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किंतु इस बार उसने अपनी सास से बोल दिया… मम्मी जी यह लड्डू, सूखे मेवा और घी सिर्फ अवनी के लिए आए हैं ताकि डिलीवरी के बाद में उसके शरीर में कोई कमजोरी ना रहे किंतु आप हर बार की तरह यह लड्डू सब में बांट देती हो, आप इन सब के लिए अलग से लड्डू बना दीजिए ना… उन्हीं लड्डुओं को क्यों देती हो सबको, बस मम्मी जी…. समझौता अब नहीं.. अब हमें अपने लिए भी बोलना पड़ेगा, हमने आज तक सिर्फ शर्म और लिहाज की वजह से कुछ नहीं बोला था! पूनम को ऐसा बोलते देखकर अवनी अचंभित रह गई
और अवनी अपनी जेठानी को देखकर खुश हो रही थी और बाद में वह उसके गले लग गई !तब पूनम ने अवनी से कहा… अवनी तुम तो कभी समझौते नहीं करती फिर इस बार तुमने समझौता कैसे कर लिया? वह बोली… भाभी…. मैं समझौता नहीं करना चाहती थी किंतु मुझे लगा अगर मैं यह कहूंगी कि यह मेरे मायके से सिर्फ मेरे लिए आया है तो घर के सभी सदस्य समझेंगे कि यह कितनी स्वार्थी है सिर्फ अपने बारे में सोचती है और इस बार मैं इस वजह से चुप रह गई
किंतु इस बार आपने मेरे लिए जो कदम उठाया है मैं उसके आगे नतमस्तक हो गई, भाभी बात सिर्फ लड्डू या घी की नहीं है बात है हमारे हक की! तब पूनम ने कहा… यही बात मेरे समय में हुई थी किंतु जब तुम्हारे साथ में भी ऐसा हुआ तो मुझे सहन नहीं हुआ तुम मेरी छोटी बहन की तरह हो तो तुम्हारे लिए मैं इतना तो बोल ही सकती हूं अब मैंने भी धीरे-धीरे समझौते कम करना शुरू कर दिया आखिर हम कब तक समझौता करेंगे? इसलिए… बस समझौता अब नहीं…!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
कहानी प्रतियोगिता (समझौता अब नहीं)