समझौता अब नहीं! – डाॅ संजु झा : Moral Stories in Hindi

पच्चीस वर्षीया मीरा दुबली-पतली काया, लम्बे वालोंवाली साॅंवली-सलोनी सीधी-सादी लड़की थी।स्नातक की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी। उच्च शिक्षा हासिल करना चाहती थी, परन्तु माता-पिता उसकी शादी कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते थे।मीरा में सारे गुण भरे पड़े थे, परन्तु लड़केवालों को उसके कोई गुण नहीं दिखते थे।केवल उसके साॅंवले रंग के कारण पिछली तीन बार से उसे देखने के बाद लड़केवाले उसे अस्वीकृत कर चुके थे।

चौथी बार जब  शादी के लिए ‌मीरा को दिखाने की बात हुई,तो समझौता न करते हुए उसने अपने पिता से कहा -“पिताजी !समझौता अब नहीं बर्दाश्त है। मैं बार-बार नुमाइशी चीज बनकर अपना आत्मसम्मान नहीं खोना चाहती हूॅं। मैं अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखकर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हूॅं।अब मैं और अपमान का दंश नहीं झेल सकती हूॅं।”

मीरा के पिता ने समझाते हुए कहा -“बेटी!मुझ पर तुम्हारे दो छोटे भाई -बहन की भी जिम्मेदारी है।इस बार मैंने लड़केवाले को तुम्हारे साॅंवले रंग के बारे में पहले ही बता दिया है।इस बार भी अगर ना होगी,तो आगे तुम जो कहोगी,वहीं करूॅंगा।”

हरेक बार की तरह चौथी बार भी लड़केवालों ने बाद में जबाव देने को कहा। परिवार को जिस बात का अंदेशा था,वही इस बार भी हुआ।उनकी तरफ से अस्वीकृति की ही खबर आ गई।अपने प्रति अपमान के ज्वर से मीरा की भावनाऍं ऑंखों के कोर तक आ पहुॅंची।उसके हृदय का विक्षोभ चरम तक पहुॅंच चुका था।उसके मन में बेचैनी और दर्द दोनों हिलोरें ले रहा था।उसने मन-ही-मन प्रण लेते हुए खुद से कहा -“बस! बहुत हो चुका।अपमान अपनी पराकाष्ठा को छू चुका है। समझौता अब मुझसे न हो पाएगा।”

मीरा की मनोदशा  देखकर उसके माता-पिता के  दुख मर्मस्थल में  अंदर तक जख्म बनकर रिसने लगें।उसके पिता ने उसके सिर पर हाथ रखकर कहा -“बेटी! मैं वचन देता हूॅं कि साॅंवले रंग के कारण अब तुम्हें कोई समझौता नहीं करना पड़ेगा। उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली जाने की तैयारी करो।”

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मीरा के मन-मस्तिष्क में विचारों का झंझावात थपेड़े मार रहा था।मन अस्त-व्यस्त हो चला था।वह ऐसे रीति-रिवाजों को कैसे भूल सकती थी,जिसने उसके साॅंवली होने के कारण बार-बार उसे अस्वीकृत कर न केवल उसके आत्मसम्मान को कुचला,वरन् उसके माता-पिता को भी समाज के सम्मुख अपमानित किया!कहा जाता है कि वक्त के थपेड़ों से चोट खाया दंशित व्यक्ति का मन वज्र -सा कठोर हो जाता है तथा कमजोर इच्छाशक्ति आत्मबल पाकर मजबूत होने लगती है।पिता का संबल पाकर मीरा दिल्ली पढ़ाई करने पहुॅंच गई।मीरा की ख्वाहिश डॉक्टर बनने की थी, परन्तु मेडिकल में चयन नहीं होने के कारण उसने बायोटेक से ग्रेजुएशन किया था।अब उसी विषय में पोस्ट ग्रेजुएशन में दाखिला ले लिया।

मीरा दिल्ली में एक परिचित डॉक्टर दम्पत्ति के यहाॅं पेइंग गेस्ट बनकर रहने लगीं। डॉक्टर दम्पत्ति की बहुत बड़ी कोठी थी।उनके बच्चे विदेश में थे।उनका आना-जाना कम ही होता था।कुछ ही दिनों में डाॅक्टर दम्पत्ति का मीरा के साथ गहरा लगाव हो चुका था।

बीच-बीच में उसके माता-पिता उससे मिलने आया करते थे। पढ़ाई खत्म होने के बाद मीरा की नौकरी दिल्ली में ही लग गई।नौकरी लगने पर उसकी माॅं ने दबे स्वर में उसे शादी के लिए कहा भी, परन्तु मीरा अपमान के दंश को अभी तक भूली नहीं थी।उसने कहा -“माॅं! जितनी जिल्लत झेलनी थी,सबने झेल ली, परन्तु अब कोई समझौता करना मेरे वश में नहीं है! आप लोग छोटी बहन मोना की शादी कर दो।वो गोरी-चिट्टी है। उसकी शादी में कोई दिक्कत नहीं होगी।”

मीरा के माता-पिता उसके व्यथित मन को फिर से अपमान के समंदर में डूबने नहीं देना चाहते थे।उसे उसकी मर्जी पर छोड़ दिया। माता-पिता के जाने के बाद कमरे की थोड़ी -सी खिड़की खोलकर मीरा अपने भविष्य की योजना पर मंथन करने लगी।जेठ की भरी दुपहरी थी।गर्मी से सारे पशु-पक्षी बेहाल थे।सभी सूर्य के प्रचंड ताप से बचने के लिए छाया ढूॅंढ़ रहें थे।जैसे ही खिड़की बंद करने के लिए मीरा ने हाथ बढ़ाया,वैसे ही उसकी नजर एक औरत पर गई,

जो उस घर के अहाते में वृक्ष के नीचे बैठी हाॅंफ रही थी।उसे देखकर मीरा को दया आ गई। तत्काल उसने फ्रीज से कुछ खाने का सामान और ठंडे पानी का बोतल लिया और उस औरत के पास पहुॅंच गई।उसने लपककर उसके हाथ से खाना और पानी ले लिया, फिर जल्दी -जल्दी खाने लगी।उस औरत ने नज़रें उठाकर मीरा के प्रति कृतज्ञता जाहिर की।मीरा को पता चल चुका था कि वह औरत एक भिखारिन है,जो सुन-बोल नहीं सकती है!शायद इसी कारण परिवार ने उसे बहिष्कृत कर दिया होगा?उस औरत के प्रति मीरा के मन में करुणा भरी गई।वह उसकी दशा से विचलित हो उठी।

शाम में लौटने पर डाॅक्टर दम्पत्ति ने उस भिखारिन को अपने अहाते में देखा। डॉक्टर ने नौकरों को आवाज देकर उसे अहाते से भगाने को कहा, परन्तु उत्सुकतावश डॉक्टर की पत्नी रजनी उस भिखारिन के करीब पहुॅंच गई। डॉक्टर रजनी उसे देखकर समझ गई कि भिखारिन पाॅंच महीने पेट से थी।मानवता वश डॉक्टर रजनी ने अपने सहायक से कहा -“कुछ दिनों तक इस औरत को यहीं पड़ी रहने दो।इसे कुछ खाना-पानी दे दिया करो। “

डॉक्टर रजनी से पूरी जानकारी के बाद मीरा का मन कसैला हो उठा।वह मन-ही-मन सोचने लगी -“लोग औरत को कभी तो मन से प्राताड़ित करते हैं,तो कभी तन से।इस गूॅंगी-बहरी औरत के शारीरिक शोषण  से भी बाज नहीं आऍं।मन में ऐसे घृणित कार्य करनेवालों के प्रति नफ़रत भर उठी।”

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अब मीरा रोज ध्यान से उस भिखारिन को खाना-पानी देने लगी। डॉक्टर रजनी भी उसे आवश्यक दवाईयाॅं भिजवाने लगी।वह भिखारिन भी दिन-भर उस वृक्ष के नीचे पड़ी रहती।एक दिन अचानक वह भिखारिन नजर नहीं आई।मीरा बार-बार खिड़की पर जाकर देखती, परन्तु वह कहीं नजर नहीं आई।उसके साथ मीरा का एक अदृश्य भावनात्मक लगाव जुड़ चुका था। उसके बारे में सोच-सोच कर उसे बेचैनी होने लगती। डॉक्टर रजनी ने भी निराशा भरे स्वर में कहा -” मीरा!जानती हो,ऐसे समय में उसका यहाॅं रहना अत्यंत आवश्यक था।पता नहीं पूरे पेट बच्चा लेकर कहाॅं-कहाॅं भटक रही होगी?”

मीरा  का भी मन उस भिखारिन के बारे में सोच-सोचकर द्रवित हो उठता।दो दिन तक उसका कोई पता नहीं चला।तीसरे दिन आधी रात को भिखारिन की चीख-पुकार से  अचानक।मीरा की नींद खुल गई।उसने जल्दी से भिखारिन के नजदीक जाकर देखा कि वह प्रसव पीड़ा से बुरी तरह तड़प रही थी।भावनाऍं व्यक्त करने के लिए उसके मुॅंह में शब्द तो नहीं थे, परन्तु उसकी पीड़ा से मीरा  व्यथित हो उठी।उसने दौड़कर‌ डॉक्टर रजनी को बुलाया।जब तक मीरा डॉक्टर रजनी को लेकर भिखारिन के पास पहुॅंचती,तब तक वह एक मासूम बच्ची को जन्म देकर दम तोड़ चुकी थी।मीरा और रजनी उस मर्मस्पर्शी दृश्य को देखकर कुछ देर के लिए किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो चुकी थीं, परन्तु अपनी जिम्मेदारी का एहसास होते ही डॉक्टर रजनी ने बच्ची को अपने अस्पताल के शिशु विभाग में भिजवाया और पुलिस को सूचना दे दी।

भिखारिन की बच्ची बहुत कमजोर थी।मीरा अपने दफ्तर से लौटते हुए रोज उस बच्ची को देखने जाती।बच्ची को लेकर मीरा के मन में मातृत्व -भाव का एहसास होने लगा था। धीरे-धीरे बच्ची ठीक हो गई थी,अब डॉक्टर रजनी उसे किसी अनाथालय को सुपुर्द करना चाह रही थी।बच्ची के अनाथालय जाने की बात सुनकर मीरा के दिल में हलचल-सी मंच गई।जिस दिन से उसने उस बच्ची को देखा था,उसी दिन से बच्ची के प्रति उसके दिल में ममत्व का भाव जाग उठा था।

उसकी ममता उसके मन में हिलोरें ले रहीं थीं।उसे समझ नहीं आ रहा था कि उस बच्ची को लेकर उसके दिल में तड़प क्यों है?बच्ची को लेकर उसके मन में अंतर्द्वंद्व की स्थिति बनी हुई थी।उसी उधेड़बुन में उसे रात में नींद नहीं आ रही थी।

वह उठकर खिड़की से आसमान की ओर देखने लगी।बच्ची को लेकर विचारों का कशमकश उसके मन-मस्तिष्क में अनवरत जारी था। अचानक से आकाश में देवी चपला चपलता के साथ चमकी। रंगों के छितराऍं बादलों में उसे अपने साथ छोटी बच्ची का सुंदर भविष्य स्पष्ट नजर आ गया।वह सुलझे विचारों की संवेदनशील और आधुनिक युवती थी। कल्पना की ऊॅंची उड़ानों से  पल भर में सच्चाई के धरातल पर उतरकर कठिन घड़ी में उसने बच्ची को गोद लेने का संयत निर्णय ले लिया और सुकून के साथ निंद्रा देवी की गोद में समा गई।

अगली सुबह उठने के साथ सूर्योदय का सुंदर सलोना रुप सूर्य की  कोमल सुनहली रश्मियाॅं घर-द्वार संग उसके मन-मस्तिष्क को देदीप्यमान कर रहीं थीं।एक बच्ची की माॅं बनने के निर्णय से उसके पैर जमीं पर नहीं टिक रहें थे।मन स्वछंद तितलियों -सा उड़ रहा था।उसने अपना निर्णय डॉक्टर रजनी से कहा -मैम! मैं इस बच्ची को गोद लेना चाहती हूॅं। कृपया इसे अनाथालय मत भेजिए।”

डॉक्टर रजनी -” मीरा! भावनाओं में बहकर एक बच्ची की जिम्मेदारी लेना सही नहीं है!”

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मीरा -” मैम ! मैंने भावावेश में नहीं, बल्कि बहुत सोच-समझकर इस बच्ची को गोद लेने का फैसला किया है!”

डॉक्टर रजनी -” मीरा!मैं  तुम्हारे इस फैसले का सम्मान करती हूॅं, उम्मीद है कि तुम इस जिम्मेदारी को बखूबी निबाहोगी।”

मीरा -“मैम!ये बच्ची मेरे दिल का टुकड़ा बन गई है।दिल के टुकड़े को मैं दुनियाॅं की सारी खुशियाॅं दूॅंगी।”

डॉक्टर रजनी ने मुस्कुराते हुए बच्ची और उसे आशीर्वाद दिया।

मीरा के माता-पिता को जब इसके बारे में पता चला,तो वे उसे समझाने दिल्ली आ गए।मीरा के पिता ने समझाते हुए कहा -” बेटी! एक अनजान इतनी छोटी बच्ची की जिम्मेदारी तुम कैसे निभा पाओगी?”

मीरा -“क्यों पापा?अगर मेरी शादी हो गई ‌होती,तो मैं अपने बच्चों की जिम्मेदारी ‌नहीं निभाती?” 

मीरा की माॅं -” बेटी!अपने बच्चों की बात अलग है!एक कुॅंवारी होकर माॅं की जिम्मेदारी उठाना बहुत कठिन है।फिर इस बच्ची के न तो खून का पता है,न ही खानदान का!”

मीरा -“माॅं!मदर टेरेसा ने तो कुॅंवारी रहकर कितने बच्चों की जिम्मेदारी उठाई थी? उन्होंने तो किसी भी बच्चे का न तो खून देखा,न ही खानदान! मैंने सोच लिया है कि इस बच्ची की माॅं बनूॅंगी,तो किसी अन्य विचारों के साथ कोई समझौता नहीं करुॅंगी।”

मीरा के माता-पिता उसके निर्णय से उसे डिगा नहीं पाऍं। उसके पिता बेटी के निर्णय की प्रशंसा करते हुए मन-ही-मन सोचते हैं -“कहाॅं उस समय की छुई-मुई सी साॅंवली-सलोनी लड़की,जो लड़केवालों द्वारा नकार दिए जाने के पश्चात् दीन-हीन और बेबस नजर आती थी और कहाॅं आज आत्मविश्वास से ओत-प्रोत कि बिना शादी के ही कुॅंवारी माॅं बनने के फैसले पर अडिग आज की आत्मनिर्भर मीरा!”

पिता की ऑंखों में छलकती भरोसे की डोरी को देखकर मीरा ने भींगे नयनों से उन्हें गले लगा लिया।

डॉक्टर रजनी मीरा की माॅं को तसल्ली देते हुए कहती हैं -“आधुनिक नारी में धीरे-धीरे खुद से निर्णय लेने की क्षमता विकसित हो रही है। अब वे समझ चुकीं ‌हैं कि हरेक बात पर समझौता करना उनके मार्ग को बाधित कर रहा है, इसलिए उनके दिल से आवाज निकलने लगी है’समझौता अब नहीं।’

मीरा के माता-पिता पिता   बेटी में आऍं बदलाव से चकित हैं और खुश भी।

समाप्त।

लेखिका -डाॅ संजु झा ( स्वरचित)

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