मालकिन अब मुझसे नहीं हो सकेगा….
ये देखिए मेरे हाथों का हाल…
आपने जो फर्श साफ करने वाला लिक्विड दिया था उसने मेरे हाथों को जला दिया….
बुचन बोली…
देखो बुचन तुम शायद भूल रही हो कि,अभी तुमने जो पैसे लिए थे वो दिए नहीं है तुमने….
प्रमिला बोली।
बुचन प्रमिला के घर का सारा काम किया करती थी …
कहने को तो बस दो लोगों का खाना बनाने के लिए उसे प्रमिला ने रखा था परंतु हर दिन हेमंत जी के दस बाहर मित्र और सामाजिक कार्यकर्ताओं का अतिरिक्त चाय नाश्ता और भोजन का इंतजाम बुचन को करना हीं पड़ता था…
हेमंत जी सेवानिवृत्त हो कर अपने पुश्तैनी गांव के एक छोटे से कस्बे में अपना एक बड़ा सा घर बना लिया थे….
हेमंत जी ने नौकरी के साथ अपना एशो-आराम और अफसराना ठाठ-बाट भूलाकर एक साधारण जीवन जीना शुरू कर दिया था…
गरीब और जरूरतमंदों की मदद और पिछड़े लोगों को आगे बढ़ाने के लिए हर संभव करते रहते थे…
इसी क्रम में बुचन जो कि एक गरीब विधवा थी और बकरियां पाल कर अपना गुजर-बसर किया करती थी, उसकी भेंट हेमंत जी से हुई और उसने उनसे कुछ रूपए लिए…
हेमंत जी ने तो बोल रखा था कि वो रूपए उसे लौटाने की कोई आवश्यकता नहीं है परंतु बुचन नहीं मानी…
उसने हेमंत जी के घर के काम काज कर के उनके दिए रूपए चुकाने का प्रस्ताव रखा….
हेमंत जी को भी एक महिला की जरूरत थी सो बुचन को काम पर रख लिया…..
बुचन ने हेमंत जी के घर का हर कार्य जी जान लगा कर किया….
हेमंत जी के दिल में बुचन के लिए काफी सहानुभूति थी परंतु
प्रमिला को तो बुचन से रत्ती भर भी लगाव नहीं था…..
बुचन ये साफ करो…
ऐसे करो…
देर क्यों लगा दिया…
जल्दी करो….
पूरे दिन वो बुचन पर हुक्म चलाती रहती….
बुचन ने इस बार सोचा था कि,बकरी बेच कर उनके रूपए चुका देगी और इस जलालत से मुक्त हो जाएगी परंतु…..
बच्चे जनने के क्रम में अत्यधिक रक्तस्राव के कारण बकरी मर गई और मां का दूध नहीं मिल पाने के कारण बच्चे भी….
बुचन की तो जैसे कमर हीं टूट गई…..
हेमंत जी ने बुचन को ढांढस बंधाया….
और फिर से कुछ रूपए दिए ताकि बुचन एक बकरी लाए….
बुचन हेमंत जी का बेहद सम्मान किया करती थी…
हर दुःख में वो उसके साथ खड़े रहते थे परंतु प्रमिला के मन में बुचन के लिए कोई दया का भाव नहीं था….
हेमंत जी ने तो कभी बुचन पर रूपए लौटाने का भी दबाव नहीं बनाया….
बुचन भी हेमंत जी की अच्छाई के कारण हीं उनके घर का हर कार्य अपना समझकर किया करती थी….
परंतु इस बार तो हद हीं हो गई जब प्रमिला ने फर्श साफ करने के लिए एक ऐसा लिक्विड दे दिया जिसके उपयोग की जानकारी नहीं होने के कारण बुचन का सारा हाथ झुलस गया….
बुचन के प्रति सहानुभूति रखने की बजाय प्रमिला उसे हीं हजार बातें सुनाने लगी…
तुम गरीब लोग होते हीं ऐसे हो…
पहले तो अपना दुखड़ा सुनाते हो…
फिर अमीर व्यक्ति से पैसा ऐंठते हो और उसके बाद……
प्रमिला गुस्से में बोलते जा रही थी…
बुचन की आंखों से दर्द भरे गर्म आंसू झर झर बहने लगे और उसके गालों को जलाने लगे…
आज अपनी बेबसी पर वो टूट सी गई थी…
अगले दिन बुचन फिर से वैसी ही स्थिति में पुनः काम पर पहुंची…..
प्रमिला ने हुक्म दनदनाते हुए कहा – देखो बुचन मुझे आज महिला संगठन के कार्यक्रम में जाना है तुम जल्दी से मुझे नाश्ता दे दो…
और मेरे जाने के बाद घर को समेटकर सारे कपड़े आलमारी में रख देना और घर में ताला लगाकर चाबी रख देना….
अपने दर्द को पीते हुए बुचन काम में लग गयी…
प्रमिला कांजीवरम की साड़ी और महंगा सैंडल पहन कर ढेर सारा मेकअप लगा कर निकल पड़ी…
बुचन अपने काम में लगी रही….
महिलाओं के उत्थान के लिए आयोजित कार्यक्रम में प्रमिला को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया था….
कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ….
बड़े-बड़े घरों की संभ्रांत महिलाएं कार्यक्रम में सम्मिलित होने के आई थीं….
हाथ में माईक थामे प्रमिला भाषण देने के जैसे हीं खड़ी हुई उसकी आंखें आश्चर्य से फटी रह गई …
बुचन उसकी एक महंगी वाली कांजीवरम साड़ी पहने और उसका पर्स लिए स्टेज की तरफ बढ़ी चली आ रही थी…
पास खड़े गार्ड ने उसे रोकने की कोशिश की तो प्रमिला ने इशारा किया कि,उसे आने दीजिए..
बुचन ने प्रमिला का पर्स देते हुए कहा – लीजिए मालकिन आप अपना पर्स घर पर भूल आई थी….
तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी साड़ी पहनकर यहां आने की…
प्रमिला नागिन की भांति फुफकारते हुए बोली….
दर्शक दीर्घा से स्वर उठने लगा – प्रमिला जी अपना भाषण शुरू कीजिए….
गुस्से की अधिकता प्रमिला के मुख से स्वर नहीं फूट रहे थे….
बुचन ने उसके हाथ से माईक छीनते हुए बोलना शुरू कर दिया….
मैं इस गुस्ताखी के लिए क्षमा चाहती हूं…
नारी उत्थान के लिए आयोजित कार्यक्रम में सम्मिलित हुए सभी लोगों को मेरा प्रणाम…
आप सोच रहे होंगे कि मैं कौन हूं तो…
मैं प्रमिला जी की कामवाली हूं…
यहां उपस्थित हर महिला से मैं कुछ पूछना भी चाहती हूं और कुछ बताना भी चाहती हूं…
क्या यहां उपस्थित हर महिला अपने से छोटी महिला को समान नजर से देखती हैं???
क्या आप कभी उनके दर्द को अपना समझती हैं???
क्या आपके घर काम करने वाली के लिए आप दया और सहानुभूति रखती हैं???
अगर नहीं तो फिर इस नारी उत्थान जैसे कार्यक्रम का क्या तुक है????
अगर आप हृदय से इस समानता को स्वीकार नहीं करती तो फिर क्या मतलब है इतना खर्च कर के इतना तामझाम कर के इतने बड़े कार्यक्रम का आयोजन करने की…
वहां मौजूद हर महिला बुचन की बातें सुनकर अपनी आंखें चुराने लगीं….
बुचन ने आगे बोलना शुरू किया – ये जो मेरी मालकिन हैं वो अपने कार्यक्रमों में तो खूब नारी समानता की बातें करती हैं परंतु अपने घर की नौकरानी से जानवरों जैसा बुरा सलूक करती हैं…
इतना कहकर बुचन रो पड़ी और अपना हाथ दिखाते हुए बोली-
महिला उत्थान और महिला समानता केवल कहने सुनने की बातें हैं…
इन बातों का वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं है..
ये मेरे जले हुए हाथ इस बात का प्रमाण हैं….
आखिर क्या है ऐसा मेरी मालकिन में जो मुझमें नहीं है….
मैं भी महंगी साड़ी पहन कर महंगा मेकअप कर के इनसे बेहतर दिख सकती हूं परंतु नहीं…
मेरे पास पैसे नहीं है…
ये अंतर इतना बड़ा है कि ये मेरे साथ इंसानियत का रिश्ता भी भूल गयी…
मैंने इनके अत्याचारों से तंग आकर अनेकों बार सोचा कि बस समझौता अब नहीं परंतु हर बार मेरी गरीबी मेरे आडे़ आ गई ..
हम गरीब लोगों के लिए समझौता वो हथियार है जिसके दम प्रश्र हीं हम जीवन की लड़ाईयां लड़ते हैं…
हम गरीबों की जिंदगी की खाई समझौते की पूल से पटी होती है हमें तो इतना भी कहने का अधिकार नहीं कि बस समझौता और नहीं…
इतना कहकर बुचन फूट-फूटकर रो पड़ी…..
डोली पाठक
पटना बिहार