सुबह से ही मां का रो रोकर बुरा हाल था।सुमेश को शाम तक बॉर्डर पर पहुंचने का हुक्म आ गया था।सुमेश एक महीने की छुट्टी लेकर घर आया था उसकी शादी जो थी।
एक हफ्ते ही तो हुए है शादी के अभी तो नववधू सुलभा हिल स्टेशन घूमने जाने की तैयारियां कर रही थी। अभी तो सुलभा की दुल्हन वाली झिझक और हाथों की मेहंदी दोनों ही ताजे थे।
पूरा घर अजीब से गहरे सन्नाटे में डूबा हुआ था।
अपने मेहंदी वाले हाथों में चाय के दो गिलास और नाश्ता लेकर सुलभा आहिस्ता से बैठक कक्ष में आई जहां सुमेश मां के पास बैठ उनका हाथ थाम हिम्मत बंधा रहा था।
चूड़ियों की खनखन और पाजेब की रुनझुन उस सन्नाटे के बीच मानो दरवाजे से अन्दर आने की अनुमति मांग रहे थे।
लीजिए मां जी चाय पी लीजिए रात से आपने कुछ खाया नहीं है नई बहू की मंद मधुर आवाज सुनते ही मां ने चेहरा ऊपर उठाया और उसका हाथ पकड़ जोरों से रो पड़ी।
मेरी सलोनी सी बहू कितनी मनौतियों के बाद तो इस घर में आई है अभी तो इसकी मेहंदी का रंग ठीक से चढ़ भी नहीं पाया है और तेरे जाने की खबर आ गई है । मत जा बेटा कोई भी कारण बताकर मना कर दे।मुझे तो इस सुकुमार बच्ची की चिंता खाए जा रही है..मां की व्यथित वाणी सुन सुमेश व्याकुल हो कर सुलभा की तरफ अपराधी भाव से देखने लगा।
मां जी मुझे गर्व है कि मैं देश की रक्षा करने वाले वीर सैनिक की पत्नी हूं ।मातृभूमि के# नमक का हक अदा करने का समय आ गया है। अगर आप इस वक्त मेरा मुंह देख घर पर ही रुके रहे तो मैं जीवन भर किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रह पाऊंगी अपनी ही नजरों में गिर जाऊंगी ।हम सब इस कर्तव्य निर्वहन में आपके साथ हैं आप तुरंत जाइए अप्रत्याशित दृढ़ फौलादी स्वर सुन सुमेश के साथ मां के रोंगटे खड़े गए थे।दोनों आंखें फाड़ नई नवेली वधू का लौह स्वरूप देखते रह गए।
भारत माता की जय सुमेश के हाथ अपने आप सेल्यूट की मुद्रा में आ गए थे और मां की आंखों में अब आंसू की जगह बेटे के साथ साथ अपनी बहू के लिए गर्व के भाव चमकने लगे थे।
लघुकथा#
नमक का हक अदा करना /ऋण चुकाना#मुहावरा आधारित लघु कथा
लतिका श्रीवास्तव