सफर भोर का — गोमती सिंह

भड़ांग भिड़िग उसको पटकती उसको चिल्लाती हुई डाक्टरनी मिसेज खन्ना ने अपने बच्चे के लिए टिफ़िन बनाई और बच्चे को तैयार करके उसके जूते का लेश बांध ही रही थी तभी खड़ंग से गेट की आहट हुई, तब मिसेज खन्ना का गुस्सा और बढ़ गया।

फिर वह क्रोधित लहजे में और कहने लगी ” ये कलमुंही गंगा आ गई होगी,इसको तो भोर में ही आना रहता है। “

सोंचती हूँ बच्चे को स्कूल भेज कर थोड़ा आराम कर लूँगी तो अब इस ‘ बाई ‘ के पीछे लगे रहने की टेन्शन।

इतने में गंगा वहीं ड्राइंग रूम में नाॅक करनें लगी । मिसेज खन्ना ने दरवाजा खोला और खोलते ही भड़क गई -क्यों री गंगा तुम्हें नींद नहीं आती क्या ? क्यों इतने भोर में चली आती हो?कम से कम आठ बजे आया करो । तब गंगा सहमी सी आवाज़ में बोली-क्या हुआ दीदी! किसी दुसरे घर का काम निपटा कर आऊँ क्या?साढे सात  बजे आने से आपके लिए जल्दी हो जाती है और  नौ बजे आने से देरी हो जाती है। आठ बजे आपके घर पहला काम करूँगी तो बाकी सब घरों का काम निपटाते हुए दोपहर के एक बज जाते हैं।

    अगर आपको उचित लगे तो साढ़े आठ बजे दुसरे नंबर पर आपके यहाँ कर लूँगी। 

समय की नज़ाकत देखिए- गंगा नौकरानी है दूर झोपड़ पट्टी से छ: बजे अपने छोटे छोटे बच्चों को छोड़कर आती है ; सर्वप्रथम मिसेस खन्ना का घर पड़ता था, फिर वह एक डाक्टरनी का घर था इसलिए वहां उसी के मन मुताबिक समय पर आना पड़ता था।

नज़ाकत इस बात की कि साढ़े सात बजे आने से जल्दी  हो जाती थी और नौ बजे आने से देरी हो जाती थी। 


बीच के समय में गंगा बाई ऐसे फंसती थी जैसे मछली के लिए  मछुआरे  का लगाया काँटा हो।

गरीब मजबूर होते हैं तो सिर्फ पेट के आगे ।

   मगर रोज-रोज के खिच खिच के कूढन से गंगा इतना बोल गई

“क्या सिर्फ आपके घर के काम करनें से मेरा गुजारा थोड़े ही चलता है दीदी ! ” मुझे तो और चार घरों का काम करना रहता है। 

इसका इतना बोलना था कि डाक्टरनी और भड़क उठी बोली – जबान लड़ाना सीख रही है करमजली! श्रीमती जी ऐसे चिल्लाने लगी जैसे कोई कर्जदार आयी है।  बरसते हुए बोली – ” क्या समझती हो अपने आप को, तुम जैसी बीस -बीस गंगा खड़ी कर सकती हूँ। 

आ ही गई है तो जा बच्चे को बस स्टैंड तक छोड़ कर आ ।

गंगा बच्चे का बैग उठाई बच्चे का हाँथ पकड़ी और चुप चाप चली गई। 

वस्त्र ,आभूषण अमीरों की चीज है वह गंगा जैसी स्त्री को कहाँ मिल सकती है । लेकिन तीखे नयन नक्स की कमी नहीं थी उसके पास । वह मेहनती सांवली सी प्राकृतिक सुंदरता वाली स्त्री थी । अगर उसको शिफान की पिंक कलर की साड़ी पहना दी जाय तो उसकी खूबसूरती में चार चांद लग जाए ,लेकिन यह गंगा के लिए कोरी कल्पना मात्र है।

गंगा बच्चे को बस स्टैंड तक छोड़ कर आई फिर पूर्व निर्धारित काम में लग गई। 

अपना काम निपटा कर चुपचाप चली गई। 

गंगा सीधे सड़क में  एक मोड़ छोड़ कर दुसरे मोड़ में घुस गई ।


दुसरे मैडम का क्वार्टर था ,गेट खोली चप्पल उतारी,दरवाजा खुला था वह सीधे पीछे आँगन में चली गई।  धूप का समय हो रहा था ‘बर्तन में मक्खी भिनभिना रही थी ,वह बिना नांक मुंह सिकोड़े डोंगे पतीले का ढक्कन खोलने लगी ,किसी में सब्जी सड़ी हुई थी किसी में चांवल सुखा हुआ था जिसे देखकर गंगा का मन पसीज गया,सोचने लगी कह दे दीदी से कि खाना ज्यादा बन जाता है तो सड़ने से पहले मुझे दे दिया करें।

लेकिन इतना कैसे गिर जाती ; जिस खाने को देखकर कुत्ते भी मुंह फेर ले उसे अपने बच्चों के लिए कैसे मांगती ।

खैर, उसने यहाँ भी अपना काम निपटा कर चुपचाप जाने लगी । तब उसकी मालकिन बोली- क्यों गंगा! आज उदास क्यों लग रही हो ? कहीं झगड़ा हो गया क्या? अच्छा बैठ चाय पी ले ।

 फिर चाय पीते वक्त गंगा बोलने लगी – क्या बताऊँ दीदी!डाक्टरनी खन्ना बहुत चिल्लाती हैं, वहाँ का काम छोड़ भी नहीं सकती क्योंकि बच्चों के लिए सर्दी-खांसी की दवा मुफ्त में मिल जाती है ।हम गरीबों के लिए तो यह बड़ी राहत की बात है।हाँ गंगा! कुछ भी हो वहाँ का काम मत  छोड़ना ।

तुम्हारे छोटे छोटे बच्चे हैं ये दवा -पानी खरीदना तुम्हारे बस की बात नहीं है।  थोड़ी सी बीमारी पर टैबलेट का ढेर और पैसों की मार अच्छे -अच्छों की कमर तोड़ देता है । गंगा चाय पीकर कप धोकर जाने लगी तब उसे कुछ बचे खुचे खाद्य पदार्थों की पोटली थमा दी गई जिसे पाकर गंगा गदगद हो गई। 

 अभी उसका भोर का सफर पूरा नहीं हुआ था, इसी तरह और दो चार घरों का काम निपटा कर कहीं से कुछ कहीं से कुछ बटोरती हुई  वह मेहनत कश महिला अपने झोपड़ पट्टी पहुंच गई।

माँ के आने की आहट से उसके बच्चों की टोली आ गई किसी को रोटी मिली  किसी को ब्रेड किसी को इडली इस तरह सुबह के भूखे अपने बच्चों के चेहरे में किलकारियां देख कर दिनभर का थकान छूमंतर हो गया।  और गंगा का भोर का सफर पूरा हुआ। 

।।इति।।

-गोमती सिंह

स्वरचित, पूर्णतः मौलिक रचना

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