साडी कैसी लग रही है? – उषा भारद्वाज

 क्या हुआ बहू ? – सावित्री  ने अपनी जगह पर बैठे- बैठे अपनी बहू रितु की तेज आवाज सुनकर पूछा । 

 कुछ नहीं मां – प्रकाश उनके बेटे ने अपने रूम से जवाब दे दिया। 

सावित्री चुप होकर बैठ गई । थोड़ी देर बाद अक्कू के रोने की आवाज सुनाई पड़ी ।

 क्या हुआ बेटा ?- सावित्री अपने पोते का रोना सुनकर व्याकुल होकर वहां  आ गई, जहां वह  रो रहा था ।

अरे क्यों रो रहा है बेटा, क्या हो गया ? 

लेकिन अक्कू बिना दादी की बात सुने रोता रहा । सावित्री ने देखा, उसने अपने ऊपर सब्जी  गिरा ली थी ।

“अरे बेटा कोई बात नही, चुप हो जाओ ।”

तब तक रितु आ गई ।” कितनी बार इसको मना किया प्लेट लेकर मत चला करो लेकिन यह मानता ही नही, और सब्जी अपने ऊपर गिरा ली ।-उसकी शर्ट उतारते उतारते रितु बडबडाती जा रही थी । 

 कोई बात नहीं ,हो जाता है, बच्चा ही तो है – सावित्री ने रितु को समझाते हुए कहा।

तभी पीछे से प्रकाश की आवाज आई – मम्मी आप ऐसे समय मत बोला करिए ,यह बहुत शरारती होता जा रहा है।सावित्री चुप हो गई और अपने कमरे में चली गई ।

   थोड़ी देर बाद अक्कू  उनके पास आया – दादी क्या कर रही हो ? दादी मेरे साथ खेलोगी ।

 मैं तुम्हारे जैसा कैसे खेल पाऊंगी ।

अभी कुछ ही मिनट बीते थे कि रितु की आवाज आयी – अक्कू चलो होमवर्क करना है। अक्कू मुंह बना कर वहां से खेलने का वादा करके चला गया ।

सावित्री सोचने लगी जब प्रकाश छोटा था जेठ- देवर उनका परिवार, सब एक साथ ही रहते थे । प्रकाश को छोटे से बड़े होने तक कभी प्यार से कभी समझा कर पढ़ाई के लिए प्रेरित किया यहां तक कि छोटे-छोटे काम जिससे बच्चे आत्मनिर्भर बने वह भी सिखाया । 

 एक दिन, रितु और प्रकाश मकान बनवाने के विषय में बात कर रहे थे सावित्री भी वही बैठी थी उन्होंने कुछ बोलना चाहा। तभी रितु ने कहा -“मम्मी आप नहीं जानती हैं, आजकल का डिजाइन बदल चुका है ।



सावित्री चुप हो गई।

 प्रकाश ने कहा – मम्मी अब सब  बदल गया है।

 सावित्री चुप हो गई। इसीतरह अक्सर कोई बात हो जाती थी ।,और फिर सावित्री को चुप होना पड़ता।

    धीरे-धीरे सावित्री ने अपने आपको अपने कमरे तक ही सीमित कर लिया था । सुबह उठती स्नान ध्यान करतीं  और फिर अपने कमरे में आ जाती कभी गीता पढतीं, अक्कू कभी आता तो उससे थोड़ी देर बात करती। टीवी देखती उसमें भागवत, भजन सुना करती थी ।

लेकिन कितनी देर ……वह तो पिंजरे में बंद पक्षी की तरह हो गई थी , जो पंख होते हुए उड़ नहीं सकती थी।  पिंजरे में बंद पक्षी बोलता है तब उसको सब बड़े प्यार से सुनते हैं , लेकिन वह तो बोल भी नहीं सकती थी। उनका मन  होता था मगर अपनी बात किससे करें ?

गर्मी की छुट्टियां शुरु हो गई थी । हमेशा रितु अक्कू को लेकर अपनी गीता दीदी के पास देहरादून जाती थी। लेकिन इस बार वह नहीं जा पा रही थी। इसलिए गीता अपने बच्चों के साथ दो-चार दिन  के लिए आई थी । सावित्री अपने कमरे में बैठी सब सुन रही थी । गीता थोड़ी देर बैठी। फिर बोली- रितु आंटी नहीं दिखाई पड़ रही है । 

रितु ने कहा- वह अपने कमरे में हैं।

 गीता उठी और सावित्री के कमरे में आई- आंटी प्रणाम! अरे ! गीता आओ बैठो। पास पड़ी कुर्सी की तरफ इशारा किया बैठने के लिए।

 और सुनाइए कैसी हैं?

 मैं ठीक हूं बेटा , बुढ़ापा तो है ही। – सावित्री अपने मन की पीड़ा को छिपाते हुए बोली ।

तुम बताओ तुम कैसी हो ?

मैं ठीक हूं आंटी । गीता ने उनको बड़े ध्यान से देखते हुए उत्तर दिया।

      दो दिन बीत गए थे। गीता ने रितु से पूछा- आंटी को कोई प्रॉब्लम है क्या? 2 साल पहले जब मैं आई थी तब तो बहुत हंसती-बोलती थी । सबके बीच में आकर बैठती थी ।

लेकिन इसबार तो वो एकदम खामोश सी हो गई हैं।

 बीमार है क्या ? -गीता ने सावित्री की चुप्पी का रहस्य जानना चाहा।

 रितु ने कहा – नहीं दीदी वह बीमार नहीं है। वह ठीक हैं और वह बोलती भी हैं ।



  लेकिन  रितु मैं 2 दिन से आई हूं मैंने देखा कि वो एक बार भी मेरे पास खुद से आकर नहीं बैठी हैं और मैंने उनको अपने कमरे से भी बहुत कम निकलते देखा है।- गीता ने ऋतु की बात को ना मानते हुए कहा ।

“पता नहीं पहले तो खूब बोलती थी बीच-बीच में हम लोग बात करते थे उसमें भी अपनी राय देने लगती थीं , और फिर अब वो बूढ़ी हो गयी हैं। उनके समय और आज के समय में बहुत परिवर्तन आ गया। दीदी अब वैसा कुछ भी नहीं रहा जैसे पहले होता था”। -रितु ने वहीं पर बात खत्म करनी चाही।

  तू बुरा ना मान तो एक बात कहूं,  जो इंसान पहले इतना बोलता था । हर काम करने के लिए आगे बढ़ता हो अगर वह बिना बीमारी के, बिना किसी समस्या के चुप हो जाए एक ही जगह बैठ जाए तो  इसकी वजह कोई छोटी नहीं हो सकती है ।- गीता ने कहा। 

 गीता फिर बोली- रितु मैं तुझे जानती हूं तुम्हें ज्यादा किसी दूसरे का बीच में टोका टोकी पसंद नहीं है इसके लिए सिर्फ यही  कहूॅगी। माना कि परिवर्तन हो गया है समय में, माना कि हर चीज बदल रही है लेकिन तुम उनके अनुभवों से नये आइडियाज ले सकती हो, उनको छोटी-छोटी बातों में शामिल करो । उनको एहसास दिलाओ कि तुमको उनकी जरूरत है ।  इस उम्र में इंसान  जब कुछ नहीं कर पाता तब किसी- किसी को अपना जीवन व्यर्थ लगने लगता है । आंटी की खामोशी का यही कारण हे।

कहां की बात लेकर आप बैठ गईं ।- रितु ने बीच में  गीता को टोकते हुए कहा ।

मगर गीता चुप नही हुई क्योंकि उसने सावित्री को इस उम्र में भी बच्चों की तरह चहकते हुए सुना था वो बोली- तुमने देखा है घर में भाभी मम्मी को हर छोटे छोटे काम में शामिल कर लेती हैं। पौधों के बारे में कुछ पूंछना हो या अचार कैसे रखा जाता है?   इसतरह की बहुत सी बातें इंसान को उसके महत्व का एहसास कराती हैं। 

रितु चुपचाप गीता की बातें सुनती रही । उसको यह एहसास हो गया था कि उससे बहुत बड़ी गलती हुई है। 

दूसरे दिन सावित्री जैसे ही रोज के कार्यों से निवृत्त होकर अपने कमरे में आयीं। पीछे से  रितु चहकती हुई बोली-  मम्मी देखिए ये साड़ी कैसी लग रही है ? 

सावित्री के कानों में रितु के ये शब्द मिश्री की तरह घुल गए उनके होठों पर एक मुस्कान आ गई वो बड़े प्यार से बोली- “बहुत सुंदर लग रही है । इसका रंग तुम पर बहुत अच्छा लग रहा है ।” इतना सुनकर रितु खिलखिला कर हंस दी जिसे देखकर सावित्री भी कुछ समय पहले की तरह हंस पड़ी दोनों सास बहू की हंसी मिल गई।

 

उषा भारद्वाज

 

 

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