सबको खुश रखा जा सकता है क्या? – रोनिता कुंडु : Moral Stories in Hindi

काजल! हमारा खाना हो गया है, तुम खाना खाकर कल के लिए चने भिगो देना, याद है न क छोले भटूरे बनाने हैं, रसोई में आकर लक्ष्मी जी ने अपने बर्तनों को सिंक में रखते हुए अपनी बहू काजल से कहा, तभी उनकी नज़र काजल की थाली में जाती है तो वह हैरान होकर कहती है, आज शायद भिंडी बनी थी, फिर तुम्हारी थाली में यह कौन सी सब्जी है?

काजल: मम्मी! आपको पता ही तो है मैं मुझे भिंडी बिल्कुल पसंद नहीं, इसलिए दो आलू उबालकर अपनी पसंदीदा आलू लहसुन की सब्जी बनाई है अपने लिए, बस उसी से खा रही थी। 

लक्ष्मी जी:  अच्छा, तो अब घर की बहुएं भी पसंद नापसंद करने लगी है! अरे घर में हमेशा पुरुषों की पसंद को ही मान दिया जाता है और उनकी पसंद को ही अपनाना भी पड़ता है, इसके दो फायदे होते हैं, एक तो एक ही खर्चे में सारा कुछ निपट जाता है और दूसरा घर में बरकत भी आती है और जिस घर में बहू की जीभ लंबी होती है ना, उस घर को तो अब भगवान ही बचाए, शुरुआत से इस घर में ऐसा ही हुआ है, तो आगे भी ऐसा ही होगा। अगर तुम्हें कोई खाना नहीं पसंद तो घर में अचार रखा हुआ है उसी से खा लेना, पर खबरदार जो कुछ अलग से बनाया और खर्च बढ़ाया तो? 

काजल को आए हुए अभी कुछ ही महीने हुए थे इस घर में, पर उसे इतना तो पता चल ही गया था कि उसके पसंद को यहां कोई महत्व नहीं देने वाला नहीं था। हां कभी-कभी उसका पति अमित उसकी पसंद की चीज़ छुपा कर बाहर से ले आता था, पर मां के खिलाफ जाने की हिम्मत तो उसमें भी नहीं थी। पर वह काजल को चाहता बहुत था, इसलिए काजल अपनी सास की बातों को कभी-कभी नजरअंदाज भी कर देती थी,

यह सोचकर कि चलो पति तो अच्छा है। पर उसका तिरस्कार उस घर में आए दिन ही होता था। अगले दिन छोले भटूरे बनाए गए और काजल को छोले उतने अच्छे नहीं लगते थे, पर वह आज यह अमित की फरमाइश थी इसलिए उसने सोचा चलो जो उनकी पसंद वह मेरी भी पसंद, जैसे ही उसने छोले भटूरे बना लिए, उसकी ननद नंदिनी कमरे से बाहर निकल कर कहती है, मम्मी आज खाने में क्या बना है?

स्लम डॉग्स – रवीन्द्र कान्त त्यागी

लक्ष्मी जी:  छोले भटूरे, भूल गई कल ही तेरे भैया ने तो कहा था? 

नंदिनी:  हां तो इसमें याद रखने वाली कौन सी बात है? छोले भटूरे भैया की पसंद है, मेरी नहीं, इतना तेल मसाला मुझे नहीं खाना, भाभी आप मेरे लिए पोहा बना दो, मुझे नहीं खाने छोले भटूरे! 

काजल:  पर नंदिनी! खाना बन चुका है। तुम्हारे भैया भी आते ही होंगे। आज भर खा लो क्योंकि अभी कुछ भी बनाने में काफी समय लग जाएगा।

लक्ष्मी जी:  कुछ भी नहीं, वह पोहा कह रही है उसे बनने में कितना समय लगता है भला? ज्यादा से ज्यादा 10 मिनट? जब वह कह रही है उसे छोले भटूरे नहीं खाने तो, जो वह कह रही है वही बना दो ना? 

काजल: पर मम्मी, इससे एक्स्ट्रा खर्च नहीं होगा! आपने तो कहा था कि जो इस घर के पुरुषों को पसंद, औरते वहीं खाती है फिर अब? 

लक्ष्मी जी:  औरतों से मेरा मतलब था बहू से! अब बेटियां अपने मायके में अपनी पसंद का नहीं खाइंगी, तो क्या ससुराल में खाएंगी? समझ रही हो ना नंदनी? कल इसे मैंने चटोरापन करते हुए रंगे हाथों जो पकड़ लिया था ना, तो उसी के लिए इतना बहस कर रही है, सुनो काजल! घर की बहू से ही घर की बरकत होती है, उन्हें हर वक्त एडजस्ट करना आना चाहिए, तभी बचत और बरकत दोनों होगी, समझी! अब जाओ और पोहा बना दो नंदिनी के लिए।

इन सब के बाद काजल बड़ी उदास हो गई, सारा काम निपटाकर वह बेड पर लेटी, पर अमित से कोई बात नहीं कर रही थी। उसके रूवासी भरे चेहरे को देखकर अमित उससे उसका कारण पूछता है। जिससे काजल कहती है, बहू घर के सारे काम करें, सबका ध्यान रखें, सबको प्यार और सम्मान दें, पर फिर भी यह उसके पिता का घर नहीं, यह बात उसे बार-बार याद दिलाया जाता है, तो वह क्या करें? वह जानती है यह उसके पिता का घर नहीं है, यह वह यह भी जानती है कि वह इस घर की बेटी नहीं है, पर बहू तो है? और बहू भी इंसान ही होती है।

अमित उसे बिठाकर बड़े ही प्यार से एक मुस्कान के साथ कहता है, सही कहा तुमने, यह तुम्हारे पिता का घर नहीं है, पर पति का तो है, जिस तरह तुम अपने पिता के घर में रहती थी

रंग भरिये अपने ख़्वाबों में… – संगीता त्रिपाठी 

 यहां भी रह सकती हो, बस एक शर्त है,

काजल: शर्त? और वह क्या? 

अमित:  सबको खुश नहीं कर सकती तो खुद को खुश रखो, बाकी तुम्हारा पति संभाल लेगा। बस मैं मां और नंदिनी के सामने तुम्हारी तरफदारी नहीं करूंगा, क्योंकि पापा के जाने के बाद उनका इकलौता सहारा में ही हूं, पर मैं तुम्हें भी रोकूंगा नहीं, क्योंकि तुम्हारे पापा ने भी मेरे भरोसे ही तुम्हें छोड़ा है। पता है काजल, यूं तो लड़कियां अपने पिता के घर में शेरनी होती है,

पर ससुराल में अच्छी बहू की डिग्री पाने के लिए वह एक भीगी बाली बनकर रह जाती है और फिर उसे धीरे-धीरे दबा दिया जाता है। बेचारे पति फंस जाते हैं बीच में, तो मैंने सोचा मैं भी कहूंगा औरतें अपने झगड़े खुद ही सुलझा ले, ऐसे में तुम भी अपनी करना और उनकी बातों को एक कान से डालकर दूसरे से निकाल देना। धीरे-धीरे दोनों को एक दूसरे से फसाद करने में मजा जब नहीं आएगा, तो सब कुछ सामान्य सा हो जाएगा। 

काजल:  पर इन सबसे घर की शांति का क्या होगा? यह कोई समस्या क्या समाधान हुआ भला? आप भी ना? 

अमित: फिर घर की शांति बनाए रखने के लिए तुम्हें तिरस्कार सहते रहना होगा। आखिर मन की शांति भी ज़रूरी है ना? तिरस्कार कब तक सह पाओगी? यह कहकर अमित तो सो गया पर काजल की नींद ले गया। वह सोच रही थी कि आखिर वह क्या करें? जो अमित की बात पर अमल करें तो रोज़ाना घर में क्लेश होगा, जो ना करें तो उसकी मन की शांति चली जाएगी, आखिर वह करें तो क्या करें? काफी सोचने के बाद उसने कुछ तय किया।

अगली सुबह जल्दी उठकर सबके उठने से पहले उसने चाय नाश्ता तैयार कर लिया, यूं तो कब क्या बनेगा यह लक्ष्मी जी ही तय करती थी, पर आज काजल ने किसी से कुछ पूछे बिना उपमा बना दिया और सबको चाय के साथ परोस भी दिया, क्योंकि उसका उपमा खाने का मन था।

लक्ष्मी जी: उपमा? पर आज तो मैंने तुम्हें चीला बनाने को कहा था ना? 

काजल:  हां पर मम्मी रात में इन्होंने ही कहा चीला नहीं उपमा बनाना, अब घर के पुरुष की बात कैसे टालु?

मुझे तुम्हारे पैसे नही तुम्हारा वक्त चाहिए!  – मनीषा भरतीया

फिर रात में राजमा चावल बना दिया जबकि कढ़ी चावल की बात थी, तो इस पर भी काजल ने अमित की फरमाइश बताकर पल्ला झाड़ लिया। लक्ष्मी जी जब अमित से पूछने जाती है तो अमित कहता है, यह औरतों के परपंच में मुझे मत घसीटो मां, जिसे जो खाना है खाओ, पर चैन से जीने दो वरना मैं अबसे बाहर खाने लगूंगा। अमित के इस बात से लक्ष्मी जी घबरा जाती है और सोचती है बेचारा सच ही तो कह रहा है, दिन भर बाहर की परेशानी झेलता है और फिर घर में क्लेश से परेशान हो जाता है।

क्या फर्क पड़ता है जिसे जो पसंद बनाएं और खाए, अब मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगी, मेरा बेटा कितना परेशान लग रहा है, उसके बाद लक्ष्मी जी जाकर काजल से कहती है, अमित जो कहे वही बनाना, हम सब वही खा लेंगे। बेकार में बेचारे को परेशान कर रखा है हमने। इस बात को सुनकर काजल मन ही मन मुस्कुरा रही थी और अमित के इस सुझाव के लिए उसका तो मन कर रहा था, उसके गले लग जाए, पर इस खुशी का इजहार यूं सबके सामने करना तो खतरनाक होता, इसलिए वह अभी के लिए अपनी खुशी को दबाकर अपने कामों में लग जाती है।

दोस्तों, अगर हर पति अमित की तरह हो जाए, तो शायद लक्ष्मी जी जैसी सास को कुछ हद तक सुधारा जा सकता है और काजल जैसी बहू भी पिता के घर को भूलकर पति के घर के सुख को महसूस कर सकती है। 

धन्यवाद 

रोनिता कुंडु 

#तिरस्कार कब तक

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