
सबक – नीरजा कृष्णा
- Betiyan Team
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- on Mar 04, 2023
“रेवा, आज तुमसे मिल कर बहुत अच्छा लग रहा है। मुझे वो समय याद आ रहा है…जब मिनी के पापा के देहांत के बाद तुम कैसी बावली सी हो गई थीं।”
रंजना आज काफ़ी वर्षों के बाद अपनी मित्र से मिल रही थी। उस समय की रेवा तो कहीं गुम हो चुकी थी। आज वो उसके आत्मविश्वास से भरे व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हो रही थी। मिनी अभी ऑफिस से लौटी नहीं थी। तब तक दोनों चाय और समोसों का आनन्द ले रही थी…तभी रंजना कहने लगी,”आज तुम्हें इस रूप में देख कर मन गदगद् हो गया है। ये चमत्कार कैसे हुआ…बताओ ना।”
वो चाय का कप पकड़े रह गई थी। आँखों में आँसू छलक आए थे। रंजना उसकी ये हालत देख कर सकपका सी गई। धीरे से बोली,”मैं भी कितनी मूर्ख हूँ। कितना गलत सवाल करके तुम्हारा दिल दुखा दिया। चलो छोड़ो, चाय पियो। ये समोसा भी ठण्डा हो रहा है।”
रेवा तुरंत चैतन्य होकर बोली,”अरे नहीं नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। तुमसे अपनी आपबीती शेयर करके मन हल्का हो जाएगा।”
दोनों हँसते हुए चाय पीने लगी। तभी रेवा बोल पड़ी,”अचानक राजेश की मृत्यु ने तो मुझे हिला ही दिया था। मैं हर समय सहमी सी, डरी सी रहती थी।”
“हाँ, वो सब तो मैंनें देखा था। मैं बहुत परेशान भी रहती थी।”
“हाँ,तुम्हारे और अम्माजी के प्यार ने हिम्मत दी थी। फिर तुम विदेश चली गईं। मैं खाली समय में महापुरुषों की जीवनी पढ़ा करती थी। अम्माजी के जाने पर दूसरा बड़ा झटका लगा था।”
रंजना ने लपक कर उसका हाथ पकड़ लिया था और धीरे धीरे सहलाने लगी थी। वो अपनी ही रौ में बोले जा रही थी,”मैं महापुरुषों के जीवन के उतार चढ़ावों से सबक लेकर उतारों को तो नज़रअंदाज कर देती थी और चढ़ावों पर ध्यान केन्द्रित कर देती थी। ये अम्माजी ने सिखाया था।”
तभी कॉलबजी और मिनी हँसते हुए घर में घुसी थी। दौड़ कर उसके गले लग गई थी। रेवा प्यार से उसको देखते हुए बोली,”अब तो तुम सब समझ ही गई होगी। मेरा ये कायाकल्प सिर्फ इसलिए हो पाया… मैं एक सशक्त बेटी की सशक्त माँ बन चुकी थी।”
नीरजा कृष्णा
पटना