रिश्तों की डोर मत टूटने दीजिये – संगीता अग्रवाल 

” भाभी आप जरा चुन्नू को देख लेंगी मुझे इनके साथ बाजार जाना है कल की पूजा का सामान लेने !” नंदिता अपनी जेठानी वंदना के कमरे में आ बोली।

” नंदिता तुम्हारा बेटा बहुत शैतान है मैं थकी हूं इसलिए उसे संभालना बस की नहीं अभी तुम ऐसा करो उसे भी साथ ले जाओ !” वंदना ने कहा और अपनी बेटी को थपकी दे सुलाने लगी।

” ये क्या कह गई भाभी मेरा बेटा पर हमारे घर में बच्चों का बंटवारा कबसे हो गया । हमेशा से तो मैने भाभी के बच्चों को अपने बच्चे माना है । भाभी बेफिक्री से अपने बच्चे मेरे पास छोड़ जाती थीं और आज जब पहली बार मैं अपने बच्चे को भाभी के पास छोड़ कर जा रही हूँ तो वो मेरा बच्चा है ।” नंदिता वंदना की बात सुन सोचने लगी । सोचते सोचते वो अपने कमरे मे आ गई जहाँ एक साल का चुन्नू सोया हुआ था।

वंदना और नंदिता वर्मा खानदान की दो बहुएं जहाँ वंदना की शादी को दस साल हो गये थे और उसके दो बच्चे थे वहीं नंदिता की शादी को दो साल हुए थे और उसके एक बेटा था। नंदिता जब अनुज की पत्नी बन ससुराल आई तो उसने दिल से सब रिश्तों को अपनाया यहां तक की वंदना का सात साल का बेटा चिराग और तीन साल की बेटी परी तो उसे छोटी माँ कहकर बुलाते और और वो भी दोनों का माँ की तरह ख्याल रखती थी। जब तक वंदना अकेली थी सास के भरोसे बच्चे छोड़कर कहीं नहीं जा पाती थी पर नंदिता के आने के बाद वो बेफिक्र हो कभी शॉपिंग पर तो कभी दोस्तों के साथ घूमने चली जाती थी यहाँ तक की नंदिता के बेटा होने के बाद भी वो जेठानी के बच्चों को भी बराबर प्यार देती तो पर वंदना नंदिता के बेटे से इतना प्यार नहीं करती थी हालांकि नंदिता ने इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया पर आज जो हुआ वो नंदिता को जरा अच्छा नहीं लगा।

खैर नंदिता चुन्नू को लेकर अनुज के साथ बाज़ार चली गई।

” छोटी माँ हमारे लिए क्या लाई !” बाज़ार से आते ही वंदना के दोनों बच्चे भागे आये।

” देखो क्या लाई मैं तुम्हारे लिए !” ये बोल नंदिता ने चिराग को गाड़ी और परी को गुड़िया पकड़ा दी दोनों बच्चे उन्हें ले खेलने लगे।



” मम्मी जी पूजा का सब सामान आ गया है देख लीजिये और बता दीजिये कुछ ओर तो नहीं चाहिए ?” नंदिता सास को सामान देती हुई बोली।

” बहु इसमे रुई की बत्ती तो है नहीं !” सास चंदा जी थोड़ी देर बाद बोलीं।

” ओह्ह पता नही कैसे भूल गई मैं !” नंदिता बोली।

” मैं अभी बच्चो को कपड़े दिलाने जाउंगी तब ले आउंगी !” वंदना ने कहा।

शाम को वंदना बच्चों को ले बाज़ार चली गई और कपड़े लेकर लौटी पर ये क्या घर मे तीन बच्चे और कपड़े बस दो के आये। जबकि व्यापार एक है तो खर्च भी एक ही जगह है सबका तब भी।

” बड़ी बहु तुम चुन्नू के कपड़े नही लाई ?” नंदिता का उखड़ा चेहरा देख चंदा जी ने पूछा।

” मम्मी जी वो क्या है ना मुझे उसके लिए कुछ समझ नहीं आया इसलिए मैं सिर्फ अपने बच्चो के दिला लाई !” वंदना ने लापरवाही से जवाब दिया।

” सही किया भाभी आपने वैसे भी सब अपने अपने बच्चों की जिम्मेदारी उठायें वही ठीक है बेकार में क्यों दूसरों के बच्चों को अपना समझना !” आखिरकार नंदिता चुप ना रह सकी ओर बोल पड़ी।



” बहु ये तुम दोनों क्या बोल रही हो बच्चों के बीच अपना पराया कहाँ से आ गया इस घर में !” चंदा जी बोलीं।

” मम्मी जी ये अपना पराया भाभी लेकर आई हैं मैने तो तीनो बच्चों में कोई अंतर नहीं किया यहां तक कि जब मेरे चुन्नू नहीं हुआ था तब भी भाभी के बच्चों को अपने बच्चे माना, नहीं जानती थी जब मेरे बच्चा होगा तो मुझे सुनना पड़ेगा कि वो मेरा बच्चा है । आज दिन में भाभी ने मुझे यही कहा अपना बच्चा खुद संभालो और अब भी …मम्मीजी रिश्ता कोई भी हो एक तरफा नहीं निभता बल्कि दो लोगों की बराबर भागीदारी से निभता है अब जब भाभी के मन में अपना पराया आया है तो अब मैं भी उसी तरह निभाउंगी रिश्ता !” नंदिता बोली।

” वो …वो तो मैने इसलिए कहा था कि चुन्नू शैतान है और उस वक़्त मुझे आराम करना था !” वंदना झेंपते हुए बोली।

” भाभी अब प्लीज इन बातों को यहीं खत्म किया जाये वही अच्छा है बस अब आप अपने बच्चे संभालिये मैं अपना क्योंकि हम दोनों के बीच विश्वास की पतली सी जो डोर थी हम अपने बच्चों को ले एक दूसरे पर विश्वास करते थे वो तो टूट गई !” अब हमारे रिश्ते की डोर ना टूट जाये !” ये बोल नंदिता चुन्नू को लेकर अंदर आ गई।

चंदा जी ने दोनों बहुओं को समझाने की कोशिश की लेकिन अब उस डोर में वो गांठ तक नहीं लगा पाई। दोनों के पतियों ने भी हर संभव कोशिश की पर कुछ नही कर पाए। अब दोनों साथ रहती हैं पर नंदिता ने भी वंदना के बच्चों की जिम्मेदारी लेनी छोड़ दी जिससे ज्यादा नुकसान वंदना को ही हुआ क्योंकि अब वो बेफिक्र हो कही जा नहीं पाती पर वो बड़े होने के दम्भ मे नंदिता के सामने अपनी गलती भी नहीं मानती है।

दोस्तों अक्सर यही होता है जरा सी बात घर में बहुत बड़ी बन जाती है और रिश्तों के बीच की डोर को तोड़ देती है । रिश्ते एक तरफा कब तक टिके रह सकते निभाने तो दोनों को बराबर पड़ते हैं भले वो रिश्ता कोई भी हो। यहाँ बात कुछ नहीं थी पर वही इतनी बड़ी बन गई और वंदना की नासमझी ने देवरानी जेठानी के बीच के प्यारे रिश्ते को तो खत्म किया ही बच्चों के बीच भी दीवार खींच दी।

क्या आप मेरी कहानी से इत्तेफाक रखते हैं यदि हाँ तो प्लीज अपने घर मे रिश्तो की डोर को टूटने मत दीजिये क्योंकि रिश्ता कोई भी हो अनमोल होता है।

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल 

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