“मैंने तुमसे कह दिया ना कि तुम अपने मायके में किसी से बात नहीं करोगी। अगर तुम्हारे मन में मेरे लिए थोड़ी भी इज्जत है ना तो मुझे अच्छा लगेगा अगर तुम जो मैंने कहा है वो करो तो।” विशाल ने निशा को झुझलाते हुए हिदायत दे डाली।
“लेकिन इसमें मैं कहां से आ गयी। जो भी हुआ है वो भैया और आपके बीच हुआ है ना। और ऐसी छोटी मोटी नोक झोक तो होती रहती है परिवार में।” निशा बात को आगे नहीं ले जाना चाहती थी।
“छोटी मोटी बात वो मुझे तुम्हारे सामने मेरे बिजनेस को लेकर दुनिया भर का ज्ञान दे गया। भूल गया कि जिसकी वजह से उसकी रोजी रोटी चल रही है ना वो काम मैंने ही सिखाया था उसे अहसानफरामोश कही का।” विशाल चिल्लाते हुए बोला।
“तो जब तुम्हारा बिजनेस में तुमहारे साथ कोई नहीं खड़ा था तब वो भी तो दरवाजे दरवाजे खुद गया तुमहारे बिजनेस का प्रचार करने। बात अगर अहसानों की है तो दोनों बराबर खड़े है।” निशा ने अपनी प्रतिक्रिया दी।
“हाँ तुम्हारा भाई जो है तुम तो उसका पक्ष ही लोगी। लेकिन पति की इज्जत प्यारी नहीं तुमहे।” विशाल झुझलाते हुए बोला।
“देखो बिना सर पैर की बात मत करो। कल जो भी तुम्हारी बहस हुई है वो बिजनेस से समबन्धित थी जिसका पर्सनल रिलेशन से कोई वास्ता नहीं है। और दूसरी बात बिजनेस को पर्सनल रिलेशन में मत जोडो।” निशा ने समझदारी का परिचय देते हुए कहा।
“मतलब तुम मेरा कहा नहीं मानोगी। तो ठीक है तुम मतलब रखों उनसे मेरा कोई समबन्ध नहीं उन लोगों से।” विशाल गुस्से में निशा की तरफ देखतें हुए बोला।
“अगर बात ऐसी हैं तो मैने तो बहुत पहले ही यहाँ पर अपने रिश्तो (ससुराल पक्ष )की तिलांजली दे देनी चाहिए थी। कयोंकि मुझ पर तो वयकितगत तौर पर शुरू शुरू में तानेबाजी हुई है। जिसका मेरे मन को भी बहुत बुरा लगा था मैंने तो आपसे जिक्र भी नहीं किया। ना ही आपसे ये कहा कि अपने परिवार से रिश्ता तोड़ लो। हो जाता है परिवार है तो कभी अच्छा कभी बुरा होता रहता है। वक्त के साथ सब ठीक भी हो जाता है। अब इसमें रिश्ते तोड़ने या बात ना करने वाली बात कहाँ से आ गयी?” निशा ने आराम से तथ्य के साथ समझाने की कोशिश की।
“लेकिन मुझे उसकी कुछ बातें हद से ज्यादा बुरी लगी। कुछ भी बोलता है।” विशाल का गुस्सा कुछ नर्म आवाज की तरफ बढ़ा।
“हाँ ठीक है वो आप उससे जरूर कहिये। मेरे हिसाब से वो भी आप से माफी मांग लेगा। इसमें सबको उसमें घसीटने की क्या जरूरत? जो मसला तुम दोनों के बीच हुआ। देखो जैसे आप मेरे पति ही नहीं माँ पापा के बेटे भी हो मैं अपने किसी ऐसे मुद्दे में जो हम दोनों के बीच हुआ है आपको उनसे रिश्ते तोड़ने की बात कहके बेवकूफी का परिचय नहीं दे सकती। ऐसे ही आप भी यह समझो कि मैं सिर्फ आपकी बीवी नहीं उस घर की बेटी भी हूँ।” निशा ने रिश्तो के प्रति अपनी समझदारी का परिचय देते हुए कहा। तभी विशाल के फोन की घंटी बजी उसने उठाते हुए निशा की तरफ देखा।
“साॅरी जीजू कल कुछ ज्यादा ही हो गया मेरा। वो थोडा बिजनेस आजकल हल्का चल रहा है दिमाग में टेंशन भरी पडीं थी आप पर निकाल दी।” शौर्य (निशा का भाई) बोला।
“हो जाता है कभी कभी। मेरा भी ऐसा ही रहता है बिजनेस में ये सब चलता रहता है। और तू बता क्या कर रहा है ?शाम को आजा बैठते हैं मिलना भी हो जायेगा। और तेरे कान भी खीचने है कल की गलती के लिए।” कहते हुए विशाल हंसने लगा। फोन रखते ही उसे देख कर हंस रही निशा को देखते हुए बोला” अब हंसो मत ज्यादा। हो जाता है कभी कभी ले लेते है कुछ बातों को अपने अहम् पर। जबकि बात ना बात की दुम।”
निशा मुसकुराते हुए रसोई की तरफ मुड़ी थी कि विशाल ने सामने से आकर उसको गले लगाते हुए बोला “आज बचा लिया तुमने मेरी बात को नहीं मानकर। थैंक्स मेरी जिंदगी में आने के लिए।” निशा भी विशाल की आगोश में उसको खामोशी से थैंक्स बोल रही थी उसकी बात को समझने के लिए।
दोस्तों किसी ने सही कहा है रिश्ते कभी भी अपनी मौत नहीं मरते उनकी मौत होती है गलतफहमी और अहम् के खंजर से। इन दोनों हथियारों को चलाने से पहले सोचियेगा जरूर कहीं हम किसी रिश्ते का कत्ल तो नहीं कर रहे। मेरी मानिये इन्हे आपके विवेक की म्यान से कभी बाहर मत आने दीजिये।
आपकी दोस्त
स्मिता सिंह चौहान