रिश्तों के सही मायने – डॉ.बीना कुण्डलिया : Moral Stories in Hindi

   जब किसी की अच्छाई पर बात करनी हो तो शायद ही कोई बोलता हो, सभी खामोश रहते हैं। लेकिन किसी की बुराई करनी हो तो गूँगें भी बोल पड़ते हैं। इसके बावजूद भी बुराई कितनी भी बड़ी हो वह हमेशा अच्छाई के सामने छोटी ही होती है। और जहां तक विश्वास की बात है…. विश्वास है रिश्तों की साँस और विश्वास ही बनाए रिश्तों को खास …. रिश्तों में नित नवीन ऊर्जा संचार कर स्फूर्ति भरने के लिए एहसास का होना भी जरूरी है। क्योंकि एहसास ही रिश्तों को एक दूसरे से जोड़े रखता है। वरना जीवन्त पर्यन्त इंसान आपस में जुड़े तो रहते हैं मगर ज़िन्दगी बोझ की भांँति ढोते रहते हैं।

     अवनि की शादी हाल ही में हुई थी परिवार की इकलौती बेटी घर में मां बाबा भाई भाभी। अपने ही सहकर्मी राजम से जिससे बर्ष भर पहले ही मुलाकात हुई थी । दोनों के परिवार से रजामंदी मिल गई तो विवाह भी बहुत धूमधाम से सम्पन्न हुआ था। 

मायके में तो उसका एक ही नियम ऑफिस से घर पहुँच कर कपड़े बदलकर हाथ-मुंह धोकर सीधे डिनर कर बेड में घूस जाना होता था। छुट्टी के दिन ही दोस्तों के साथ मूवी देखना बाहर डिनर करना ठीक वैसे ही जैसे मुंबई में आॅफिस जाने वाली ज्यादातर लड़कियों का रूटीन रहता ही है। 

वैसे भी हफ्ते में पाँच दिन तो काम की व्यस्तता में रहते बस छुट्टी के दिन ही आराम मिलता वरना तो दो तीन घंटे रोज सफर में ही निकल जाया करते थे। उसको बस वीकेंड का ही इंतजार रहता । 

शादी के कुछ दिन तो बहुत मसरूफियत से निकले घूमना फिरना सैर- सपाटा आज शादी के बाद पहला दिन था दोनों के ऑफिस जाने का, उसकी सुबह- सुबह की भागदौड़….. वैसे भी अवनि को खास जल्दी उठने की आदत तो थी नहीं आॅफिस जाने से कुछ देर पहले उठकर सीधे तैयार हो नाश्ते की टेबल पर आ जाती भाभी जो थी घर पर…. सब कुछ समय से तैयार मिलता वरना तो लेट होने पर ‘माँ अनुराधा जी का पूर्व तैयार लैक्चर चालू हो जाता उससे बचने के लिए भाभी जल्दी उठकर यथा सम्भव सब तैयार रखती भाभी एक वर्ष पूर्व ही विवाह कर आई थी घर में, विवाह पूर्व तो नौकरी करती थी मगर विवाह पश्चात माँ ने छुड़वा दी थी और सारे घर की देखभाल की जिम्मेदारी सौंप दी थी उन पर ।

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    अवनि और राजम ऑफिस पहुंच अपने- अपने काम में व्यस्त हो जाते हैं। सहकर्मी बीच में उनको छेड़ते आपस में मजे ले रहे थे । दिन कैसे बीत गया दोनों को पता ही नहीं चला आॉफिस आफ होते ही दोनों घर के लिए निकल पड़े ।

ससुराल पहुँच कर अवनि देखती है…. उसकी सासू ‘माँ ने रात का सारा खाना अच्छे से तैयार कर रखा होता है सभी सदस्य खुशी खुशी  मिलजुल कर रात का खाना खाते हैं दिन भर की अपनी दिनचर्या पर चर्चा करते हैं। हंसी मजाक ठहाके का दौर जब रूकने का नाम ही नहीं लेता तब आवनि की सासूमां ही कहती है चलो बस भी करो अब तुमको कल आॅफिस नहीं जाना है क्या ?

  अवनि बर्तन समेटने लगती है जिसमें सासू माँ बराबर भागीदारी निभाती है, अवनि आश्चर्य चकित देखती रहती है। सासूमां एकदम सहज व्यवहार कर रही चेहरे पर कोई शिकन के भाव ही नही…..?  क्योंकि उसके घर में तो माँ अनुराधा जी और वो खाना खाकर सीधे सोने चले जाते थे। भाभी ही सारा काम करती उसने तो कभी जरूरत ही नहीं समझी थी सहायता करने या पूछने तक की भी। कि भाभी कोई सहायता चाहिए… ऊपर से माँ उल्टा भाभी को आवाज देकर कभी चाय कभी काफी का हुक्म सुना दिया करती थी। उसका मन सब याद कर ग्लानि से भर जाता है सोचती है वो कितनी गलत रही है। भाभी के बारे में तो उसने कभी सोचा ही नहीं…’खैर जो हुआ सो हुआ, अब माँ के घर जल्दी ही जाकर सब ठीक करना होगा उसे, इससे पहले की रिश्तों में दूरियां आ जाये।

 अरे किन ख्यालों में खो गई अवनि…. अरे ओ अवनि…बेटा थक गई है क्या …? सासू माँ की आवाज सुनकर अवनि चौक पड़ती है  , नहीं कुछ नहीं माँ बस ऐसे ही सोच रही परसो छुट्टी पर मांँ के घर हो आती हूंँ…” हां, हां क्यों नहीं…?  अवश्य चली जाना सासू मां बोली “ । इसमे़ इतना सोचने वाली क्या बात है ।

अवनि जल्दी जल्दी अपने कमरे में आकर सबसे पहले भाभी को फोन लगाती है ।

  अवनि… “कैसी हो भाभी “ ?

    भाभी..हांँ ठीक ही हूँ… अवनि तुम अपनी सुनाओ तुम कैसी हो… । 

  कैसा चल रहा ससुराल में, सब ठीक-ठाक है न ..?

 अवनि ने महसूस किया भाभी बोल तो रही,मगर उनके बोलने में उनकी उदासी का स्वर स्पष्ट सुनाई दे रहा था‌, अवनि ने आज पहली बार महसूस किया भाभी की आवाज में दर्द, वो समझ जाती है जरूर ‘माँ ने झिड़का होगा किसी बात पर, ये माँ भी न, काश भाभी को समझ पाती..

अवनि कहती हैं “ भाभी आप हर बात को इतनी आसानी से कैसे ले लेती हो”!!

वे सच में ‘हैंडसम’ थे 

 भाभी.. “अवनि.. जब अपना वजूद किसी भी मूल्य पर बदला नहीं जा सकता तो उसको सहन करने की आदत डालने में ही भलाई है, मैंने दर्द को मुस्कुराकर सहन करना सीख लिया और तुम सब लोगों को लगता कि मुझे तकलीफ़ ही नहीं होती “।

भाभी की बातें सुनकर अवनि का दिल रो पड़ता है वह समझ चुकी है कि….

” किसी की भी सहनशीलता एक खींचे हुए रबड़ की तरह ही होती है जिसे यदि सीमा से ज्यादा खींचा जाये तो उसका टूटना तय ही है “ ।

उसने दिल खोलकर भाभी को स्नेह मान देने की सोची वो अच्छी तरह समझ चुकी थी माँ के बाद भाभी का ही स्थान है। परसो आने का वादा कर फोन बंद कर दिया अब उसमें और सब्र की सीमा नहीं थी। दूसरा दिन भी यथा सम्भव बीत जाता है अगली जल्दी सुबह वो माँ के घर पहुंच जाती है।

  माँ उसको देखकर बहुत खुश होती, बहू को आवाज लगाती है.

  “अरी कहां मर गई “! कान में रूई ठूसे बैठे रहती है सारा दिन 

    देख अवनि आई है… चाय नाश्ता तैयार कर जल्दी। 

सासूमां अनुराधा की आवाज सुनकर बहु दौड़ती हुई आती है माफ करना माँ कपड़े डालने गई थी छत पर …. 

अवनि अपनी माँ की तरफ देखती है और अपने ससुराल में सासू माँ के व्यवहार अपनी सास का उदाहरण देकर अपनी माँ को समझाती है । बताती है उसकी सास कितनी सुलझी हुई महिला हैं और कितने प्रेम से उसके साथ पेश आती हैँ ।

 कद्र करो ‘माँ.. भाभी की, उनको समझा करो।

आपके इतने कठोरता से बोलने के बाद भी वो आपके साथ कितना अच्छे से पेश आती हैं ।

दूसरों के काम में कमियां खोजना बहुत आसान है लेकिन जब हमें अपनी कमियां दिखने लगती है उसको सुधार करने से ही जीवन में सुख शान्ति सफलता भी आयेगी ।

 बेटी अवनि की बातें सुनकर अवनि की माँ के मुख पर रूपहली सी आभा बिखर जाती है वह भावात्तिरेक हो कांपने लगती हैं। कुछ क्षण सोचने के बाद बोलती है तुम सही कह रही हो अवनि मेरी बहू बड़ी उदार कृपालु और प्रेमी हैं। कितना ख्याल रखती है सबका, दिन भर घर संभालते- संभालते थक जाती होगी मगर कभी कुछ कहती नहीं । किसी से कोई शिकायत नहीं करती ।

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 अनुराधा जी अच्छी तरह समझ चुकी थी प्यार आदर पाने के लिए उनको भी वह सब जताना होगा। अच्छे से सब जताने से ही भावनाओं का जुड़ाव बढता है……  उनको अपनी बहू पर विश्वास करना होगा जो की रिश्तों की नींव है जिसकी जड़ें कमजोर होने से बातचीत के रास्ते कमजोर हो जाते हैं।और फिर रिश्ता टूटकर ही दम लेता है। नहीं उसको अपना घर तोड़ना नहीं है…उसको अपने बेटे का घर बसते देखना है…..वह बहू को आवाज लगाती हैं उसके आते ही उसे गले से लगा लेती हैं। कहतीं हैं बेटा.. मैं बहुत ग़लत थी मुझे अपनी सोच पर अफसोस होता है…आज अवनि ने मेरी आंँखें खोल दी है।

अवनि कहती हैं…..’माँ रिश्ते मधुर हों तो जीवन सुखमय बन जाता है। रिश्तों में खटास व्यक्ति को तोड़कर रख देती है इसके पीछे व्यक्ति का अहम सोच व व्यवहार जिम्मेदार होता है ‌। सच्चे रिश्ते वक्त मांगते हैं और बदले में सारी जिंदगी लौटा देते हैं। 

रिश्तों की दौलत वक्त के साथ कभी घटती नहीं है अपनी सासू माँ पर उसे गर्व था जिन्होंने सुन्दर विचारों से उसको अवगत कराया अहसास कराया, जिससे आज उसकी माँ का  घर बर्बाद होने से बच सका ।

 तब तक उसके बाबा और भाई भी आ जाते हैं घर का माहौल खुशनुमा देखकर सबमें खुशी की लहर दौड़ जाती है और अब अवनि की ‘माँ के घर भी ठहाकों की आवाज सुनाई देगी अवनि के चेहरे पर  सन्तुष्टि के भाव थे ।

     लेखिका- डॉ.बीना कुण्डलिया

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