रिश्तो के भी रंग बदलते हैं – संगीता अग्रवाल : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : दाह संस्कार की तैयारी चल रही थी आखिरकार सासु माँ  देह त्याग ही गई … ससुर जी  तो  शादी के दूसरे साल ही स्वर्ग सिधार गए थे

अगल बगल के पड़ोसी और रिश्तेदार सभी आ चुके थे जल्दी करो जल्दी करो का शोर …..

मैं रागिनी घर की एक मात्र बहु कोने मे खड़ी सब तमाशे देख रही थी….

देख रही थी कैसे रिश्ते रंग बदलते है कैसे लोग अपने रंग दिखाते है..

जो बेटी-  दामाद माँ जी से मिलने ना आये वो कैसे दहाड़े मार रो रहे है !

आप सोच रहे होंगे ऐसे मौके पर ऐसी बातें ……

असल मे माँ जी  को लकवा मार गया  था l 9 महीने बिस्तर पर रहीं .. बेटा जितना फर्ज़ निभा सकता था निभाया पर कमाने बाहर भी तो निकलना होता…….

तो मैने माँ जी  को उम्र  के इस पड़ाव पर गोद ले लिया… चौक गए!

जी हाँ जब माँ जी  के सुसु -पॉटी से ले खाने -पीने के काम कर रही उनकी नालायक बहु तो वो मेरे बच्चे समान ही तो हुई  !

माँ जी  को अपनी बड़ी बेटी- जमाई मे बड़ी ममता थी कुछ जमा पूंजी तो थी नही पर जो भी पेंशन आती हर महीने वो आते और पैसो का रोना रोकर ले चले जाते  l

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और यही बेटी – जमाई इन 9 महीनों की बीमारी मे झाँक कर भी नही देखे की माँ जी  किस हाल मे हैं…..

माँ जी  बार बार बुलाती रही  संदेशे भिजवाते रही ।

पर उन्हें नही आना था ना आए। आखिरकार कल रात मैने ही कहा क्या मैं नही हूँ आपकी बेटी….



तब आशीषों की बहार करते अपने व्यवहार की माफ़ी मांगते(क्योंकि माँ जी  ने मुझे बहु का दर्जा कभी दिया ही नही एक बार तो हाथ भी उठा दिया था) माँ जी  सो गई गहरी नींद जिसमे ना बेटी  – जमाई की बेरुखी थी ना कोई गम ।

आज वही बेटी जमाई माँ जी  की लाश के पास बैठे रो रहे जो जीते जी उनसे मिलने से भी कतराते रहे…..

मन तो कर रहा था भगा दूँ उन्हे पर ये हक नहीं शायद बहु जो हूँ ।

पर अब रिश्तों के रंग बदल गए  थे… माँ जी को ले गए आखिरी क्रियाएँ निपटाने पर बाबूजी के साथ कुछ रिश्ते भी खत्म l

अब मेरे लिए वो अतिथि है घर के बेटी – जमाई नही क्योंकि ये रिश्ता तो माँ जी  की चिता के साथ जल गया l अब मेहमान नवाजी तो रहेगी पर दिल मे वो प्यार नही….

जो अपने जन्म दाता का नही वो मेरा क्या होगा l

हर बार बहु गलत नही होती ये सत्य है l

ये एक सत्य कथा है बस कुछ बदलाव किये गए है

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