इतना भी दूर मत जाओ – डॉ. पारुल अग्रवाल : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : सुरुचि अपने नाम के अनुसार ही बहुत प्यारी और हर बात और काम में रुचि लेने वाली लड़की थी। वो हमेशा हंसती-  बोलती सबके दुख-दर्द में भी काम आती थी। अपनी उपस्थिति से वो थोड़ी ही देर में किसी भी उदास माहौल को खुशनुमा कर देती। वो भजन और गाने-बजाने में भी पारंगत थी।

ऐसे ही किसी रिश्तेदार के यहां भजन संध्या का कार्यक्रम था जिसमें सुरुचि भी अपनी माताजी के साथ गई हुई थी। वहां पर कुछ जानने वालों ने सुरुचि को भी भजन सुनाने के लिए कहा। सुरुचि ने जैसे ही राधाकृष्ण का सुंदर भजन अपनी आवाज़ में सुनाना शुरू किया वहां उपस्थित सभी लोग मंत्रमुग्ध होकर सुनने लगे। वहां उपस्थित लोगों में सुमित्रा जी भी थी। उनको सुरुचि में अपने बेटे का भविष्य दिखाई दिया। उनके मन ने कहीं ना कहीं कहा कि यही लड़की उनके बेटे वैभव के लिए उपयुक्त जीवन संगिनी सिद्ध होगी। 

उनका बेटा वैभव जिसकी गिनती शहर के बहुत बड़े उद्योगपति में होती थी। जिसने बहुत कम उम्र में अपने पिता को खो दे दिया था। सुमित्रा जी के संस्कार और परवरिश ने वैभव को बिखरने नहीं दिया था, जिसका परिणाम था कि आज वो पूरी दुनिया का सामना करने में पूर्णतया समर्थ था। यहां तक तो सब देखने-सुनने में ठीक था पर वैभव को शादी नाम के शब्द से भी नफरत थी।

असल में उसे एक लड़की से प्यार हुआ था पर शादी होने से पहले ही वो लड़की वैभव को धोखा देकर विदेश चली गई थी। अब सुरुचि को देखकर सुमित्रा जी के मन में कहीं ना कहीं वैभव का घर बसाने और अपने पोती-पोता खिलाने की इच्छा बलवती हो गई थी। उन्होंने अपने एक रिश्तेदार के द्वारा सुरुचि माता-पिता से बात की।

उन लोगों को शादी से कोई एतराज़ नहीं था। अब सुमित्रा जी को सिर्फ वैभव को मानना था। उन्होंने किसी तरह से सुरुचि का फोटो वैभव के सामने रखा। फोटो देखते ही वैभव बुरी तरह चिढ़ गया। 

सुमित्रा जी को इस बात का पूरा अंदाज़ा था। उन्होंने अपने बुढ़ापे की दुहाई देते हुए और अपनी कसम देते हुए आखिर वैभव को शादी के लिए तैयार कर ही लिया। वैभव ने सुमित्रा जी की ज़िद के आगे हथियार तो डाल दिए थे पर साथ-साथ ये भी कहा था कि वो इस शादी में कोई उम्मीद न रखें।

सुमित्रा जी को तब भी ऐसा लगा कि शायद एक बार शादी हो जायेगी तो वैभव अपना अतीत भूल जायेगा। उन्होंने जन्म पत्री भी मिलवा ली। दोनों के काफ़ी गुण मिल रहे थे। इस तरह सुरुचि वैभव की दुल्हन बनकर सुमित्रा जी के घर आ गई। सुरुचि की कभी वैभव से बात तो हुई नहीं थी वैसे भी ये चट मंगनी पट विवाह वाला मामला था।




सुरुचि के प्रति वैभव का व्यवहार बहुत रूखा था। वो उससे सीधे मुंह बात भी नहीं करता था, पर सुरुचि अपने व्यवहारनुसार फिर भी उससे बात करने की कोशिश करती रहती। सुमित्रा जी सब देख रही थी वो भी वैभव को समझाने की कोशिश करती पर वो उनकी बातों को भी अनसुना कर देता। जबसे शादी हुई थी तबसे वैभव ने कंपनी में ही अपना अधिकतर समय बिताना शुरू कर दिया था।

सुरुचि को तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर उसकी क्या गलती है जो वैभव उसके साथ ऐसा व्यवहार करता है। एक दिन ऐसे ही कंपनी की वर्षगांठ का आयोजन था। सुमित्रा जी ने सुरुचि को भी तैयार होने के लिए कहा। सुरुचि बहुत खुश थी उसको लगा आज शादी के बाद पहली बार इसको वैभव के साथ कहीं जाने का मौका मिला है।

इसी खुशी में वो अपनी पसंदीदा साड़ी पहनकर अच्छे से तैयार होकर वैभव का इंतज़ार करने लगी। वैभव जब घर पहुंचा और सुमित्रा जी ने कंपनी के आयोजन में सुरुचि को भी ले जाने के लिए कहा तब वैभव ने उसके तैयार होने के तरीके का मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि ऐसी बहनजी टाइप लड़की को अपने साथ ले जाकर वो पूरी दुनिया के सामने हंसी का पात्र नहीं बन सकता।

वो तो इसके भाग्य खुल गए जो ऐसी दो कौड़ी की लड़की की शादी इतने बड़े घर में हो गई। वैसे भी ऐसी लड़कियां अमीर घर के लोगों को फासने के सारे हुनर जानती हैं। ये सब बातें सुनकर सुरुचि एकदम हैरान रह गई। आज उसके आत्मसम्मान को बहुत चोट पहुंची थी। 

वो फूट-फूट कर रोने लगी। उसने वैभव से कहा कि किसी भी रिश्ते की बुनियाद दो आपसी लोगों की समझ पर टिकी होती है। एक तरफा रिश्ता कभी भी नहीं चलता।मैंने अपनी तरफ से आपके नज़दीक आने की बहुत कोशिश की पर आप मेरे से दूर ही रहे। कभी भी किसी रिश्ते में इतनी दूर नहीं चले जाना चाहिए कि पास आना मुश्किल हो जाए।

ये कहकर वो रोते-रोते अपने कमरे में जाकर अपना सामान बांधने लगी। इधर सुमित्रा जी भी सुरुचि की इस हालत के लिए अपने को ज़िम्मेदार मान रही थी। उनको आज सुरुचि के साथ वैभव की शादी के अपने निर्णय का बहुत अफसोस हो रहा था। वो इतनी तनाव में थी कि उनका रक्तचाप बढ़ गया और वहीं चक्कर खाकर गिर गई।

वैभव तो वैसे ही ये सब होने से पहले पार्टी के लिए घर से निकल गया था। सुरुचि जब अपना सामान लेकर अपने मायके जाने के लिए बाहर आई तब उसने सुमित्रा जी को मूर्छित अवस्था में देखा। उसने तुरंत एम्बुलेंस और उनके डॉक्टर को फोन किया। डॉक्टर और एम्बुलेंस के आने में थोड़ा समय था,इस दौरान उनको प्राथमिक चिकित्सा दी।

जिससे उनकी हालत स्थिर रही। एम्बुलेंस के आते ही उनको हॉस्पिटल लेकर गई। वहां सभी डॉक्टर जानने वाले थे उनको तुरंत चिकित्सा मिली। डॉक्टर ने सुरुचि को कहा कि समय पर इलाज़ मिलने से आज इनकी जान बच गई पर हम लोगों को इनको किसी भी अप्रिय घटना से दूर रखना है। 




उधर वैभव को भी खबर दी गई। वो दौड़ा-दौड़ा हॉस्पिटल पहुंचा। सुमित्रा जी के होश में आते ही जैसे ही वो उनसे मिलने पहुंचा तब उन्होंने उससे बात करने से ही मना कर दिया। उन्होंने डॉक्टर से सुरुचि को अपने पास रहने के लिए बोला। अभी उन्हें लगभग दस दिन तक हॉस्पिटल में रहना था। वैभव मन मसोसकर घर आ गया।

वैसे भी डॉक्टर ने उसको सुरुचि ने इस संकट की घड़ी में सुमित्रा जी को किस तरह से संभाला था,वो सब बता दिया था। आज वैभव को अपने आप के ऊपर बहुत शर्म आ रही थी। उसको लग रहा था कि उसकी मां की इस बिगड़ती हालत का ज़िम्मेदार वो खुद है। घर आकर आज नींद उसकी आखों से कोसों दूर थी।

रह रहकर उसको आज सुरुचि का वो देखभाल और सबके प्रति अपनेपन वाला व्यवहार याद आ रहा था। उसको याद आ रहा था कि सुरुचि के आने के बाद मां कितनी खुश रहने लगी थी। थोड़े दिन में ही सुरुचि ने उनका अकेलापन दूर कर दिया था। 

अब वैभव को सुरुचि की वो बात भी याद आ गई थी कि इतना भी दूर नहीं जाना चाहिए कि पास आना मुश्किल हो जाए। बस यही सोचकर उसने फैसला लिया कि वो सुरुचि और मां से अपने किए की माफी मांग लेगा और अपने अतीत को पूरी तरह भुला देगा। ये सब सोचते हुए उसके चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कान छा गई।

सुबह होते ही वो हॉस्पिटल पहुंचा और सुमित्रा जी के कमरे में जाकर उनके चरणों में बैठकर माफी मांगने लगा। मां का दिल था,आखिर पसीज ही गया। इतने में सुरुचि वहां से जाने लगी,तब वैभव ने पीछे से जाकर उसका हाथ पकड़ा और शरारत भरी मुस्कान अपने चेहरे पर लाते हुए कहा कि अभी शायद इतना भी दूर नहीं गया था। अब मै पूरी ज़िंदगी तुम्हारा होकर रहना चाहता हूं। उसकी इस बात को सुनकर सुरुचि का चेहरा भी प्यार की आबोहवा से लाल हो गया।




दोस्तों कैसी लगी मेरी कहानी? अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। मेरा तो सिर्फ इतना कहना है कि कभी भी अपने अतीत को अपने आने वाले कल पर हावी ना होने दें क्योंकि जो भी है वो सिर्फ आज है।

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

1 thought on “इतना भी दूर मत जाओ – डॉ. पारुल अग्रवाल : Moral stories in hindi”

  1. कहानी बहुत इमोशनल वर अच्छी थी।

    पढ़कर आनंद आया

    और ऐसे कहानियां लिखते रहे।

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