रिश्ता दिलों का…….!!!! – सरगम भट्ट

 

आज काव्या आलमारी करीने से लगा रही थी , उसी में उसकी एल्बम मिल गई “…!! जिसको ना जाने कब से उसने देखा भी नहीं था।

       एल्बम पलटते हुए उसकी नजर एक फोटो पर जाकर टिक गई !

कितनी प्यारी थी वो , लगता ही नहीं था वह किसी और की बेटी है “…!! आखिर उस से दिल का रिश्ता जो जुड़ गया था ।।

अब तो बड़ी हो गई होगी , पता नहीं मुझे याद भी करती है या भूल गई …!!

मैं भी क्या क्या सोचती हूं , अब तो भूल ही गई होगी ,”.! आखिर पन्द्रह साल पुरानी बात हो गई ।

सोचते हुए वह अतीत में चली गई , उसकी नई नई शादी हुई थी  “,..! और शादी के तुरंत बाद और पति के साथ पोस्टिंग की जगह आ गई थी ।

वहीं बगल में ही विशाल के साथ ऑफिस में काम करने वाले ,”……! आलोक जी का भी परिवार रहता था ।

आलोक उनकी पत्नी शीला और एक प्यारी सी चार साल की बिटिया , ” कुमकुम ” बहुत प्यारी थी वो जो एक बार देख ले नजर भी ना हटा पाए ।

जबसे काव्या यहां आई थी , कुमकुम रोज शाम उसके पास आ जाती और उसके साथ देर तक खेलती रहती ।

कुमकुम के साथ धीरे-धीरे काव्या और शीला में भी दोस्ती हो गई ।

जिस दिन कुमकुम नहीं आती काव्या का दिल नहीं लगता , काव्या खुद ही चली जाती कुमकुम से मिलने ।

दोनों एक दूसरे से दिल से जुड़ चुके थे , अगर बताई ना तो कोई जान ही नहीं पाता था कुमकुम काव्या की बेटी नहीं है ।


कुमकुम काव्या को बिल्कुल अपनी मां की तरह मानती , काव्या भी कभी कुमकुम के पसंद की चीजें बनाती “.. तो कभी कुमकुम के लिए बाजार से खिलौने ले आती ।

कुल मिलाकर दोनों एक दूसरे के लिए बहुत खास हो गई थीं।

ऐसे ही तीन साल बीत गए , कुमकुम अब सात साल की हो गई “…!! अब तो काव्या भी मां बनने वाली थी ।।

एक दिन कुमकुम रोते हुए आई , काव्या ने पूछा क्या हुआ तो और जोर से रोने लगी ,… रोते-रोते काव्या से लिपट गई ।

काव्या ने किसी तरह कुमकुम को चुप कराया , फिर भी वह सिसक रही थी “..! रोते-रोते उसने बताया पापा का ट्रांसफर कानपुर हो गया है , परसों वह लोग यहां से चले जाएंगे ।

सुनकर काव्या का दिल धक से रह गया , कैसे रह पाएगी वह कुमकुम के बिना ।

तीन दिन बाद वह दिन भी आ गया जब “…! जब सब लोग तैयार होकर निकल रहे थे , आखरी बार सपरिवार मिलने आए थे और शायद कुमकुम भी। कुमकुम और काव्या दोनों एक दूसरे से गले लग , घंटों रोते रहे । उसके बाद उनकी ट्रेन का समय हो गया था तो , किसी तरह कुमकुम को शांत करा कर  ले गए।

काव्या वही खड़ी ना जाने कितनी देर तक रोती रही, विशाल आकर उसे अंदर ना ले गया होता तो शायद वही रोते रोते सो जाती।

 

लेकिन कहा है किसी के जाने से जिंदगी नहीं रुकती, धीरे-धीरे काव्या सहज हो गई थी , कुमकुम के बिना रहने की आदत डाल चुकी थी।

धीरे-धीरे समय बीतता गया उसे भी एक प्यारी सी बेटी हुई, अब वह अपनी बेटी की परवरिश में बिजी हो गई थी “,..लेकिन कुमकुम को भूली नहीं थी।

मैं कब पंख लगा कर उड़ जाता है पता ही नहीं चलता”,!!! बेटी होने के तीन साल बाद एक बेटा हुआ । अब उसकी बेटी ध्रुवी नवीं में आ चुकी थी, बेटा कुश छः में।

बच्चों की आवाजों से उसकी तंद्रा भंग हुई, देखा तो बच्चे स्कूल से आ चुके थे।

एक उम्मीद के साथ हुआ फिर बच्चों में बिजी हो गई, शायद कभी कुमकुम से मुलाकात हो जाए।

समाप्त

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