दिन भर रसोई घर में ही लगी रहती हो,सारा वक्त बर्बाद कर देती हो अपना। खाना बनाने के लिए कामवाली क्यों नहीं लगाती हो…. पड़ोसन कंचन जी रेनू को सुना रहीं थीं। रेनू को घर के कामों में बहुत रूचि थी ।क्या किसको चाहिए पसंद ना पसंद और घर को सलिके से रखना उसको अच्छा लगता था।यही वजह थी उसका बाहर आना – जाना कम होता था।
मोहल्ले में किटी पार्टी तो ज्वाइन किया था पर कम ही जाती थी। सभी सहेलियां उसका मजाक बनातीं थी कि कंजूस है…घर के कामों में क्यों दिन भर लगे रहना। कामवाली कितना ही लेती है। रेनू हंस कर टाल देती क्योंकि घर का काम वो मजबूरी में नहीं करती थी बल्कि उसको पसंद था।
एक बार सब्जी लेने बाजार जा रही थी मोहल्ले की एक सहेली कांता बोल पड़ी कि आजकल तो सब ऑनलाइन मिल जाता है क्यों इतना मेहनत करती हो? आज रेनू से भी नहीं रहा गया और वो बोल पड़ी कि पता है कांता खाना बनाना भी एक कला है और जब हम दिल से किसी अपनों के लिए कुछ बनाते हैं तो हम उससे जुड़ते हैं।
तुमने कहा ना की सब्जी लेने क्यों जाना।सच बताऊं तो मुझे अच्छा लगता है जब मैं अपनी पसंद की सब्जी देख परख कर, थोड़ा मोलभाव कर के लाती हूं और साथ ही सब्जी मंडी वाले दुकानदारों से मेरा एक रिश्ता बन जाता है।जब कई दिनों के बाद जाती हूं तो वो मुझसे पूछते हैं कि आपकी तबियत तो ठीक थीं क्या हुआ दीदी आप कितने दिनों बाद दिखाई दी।ये सब सुनकर मुझे अच्छा लगता है।
फिर ये सब्जियां मैं बड़े चाव से बनातीं हूं।जब सब मिलकर एक मेज पर एक ही खाना खाते हैं तो कहीं ना कहीं आपस में बातचीत का जरिया होता है खाने की मेज। जब कभी बाहर से खाना मंगाया जाता है तो सब अपने – अपने मनपसंद भोजन को मंगाते हैं जहां मेज पर ही समानता नहीं दिखाई देती है
और कल को जब ये बच्चे बड़े हो कर बाहर पढ़ाई लिखाई या नौकरी के सिलसिले चले जाते हैं तो यही मां के हांथ के खाने को याद करते हैं और आने पर अपनी फरमाइश का खाना मांगते हैं। यही रसोई घर में तैयार खाना कहीं ना कहीं उनको मुझसे जोड़ता है और उनकी बचपन की यादों में एक खास जगह रखता है।
कामवाली तो अपनी ड्यूटी करतीं है ,कई बार वो बेमन से कुछ भी बना कर चली जाती है जहां खाने की बरबादी और पैसे की बरबादी तो होती ही है कोई पेट भर कर खाना भी नहीं खाता है। मैं ऐसा नहीं कह रहीं हूं की कामवाली नहीं रखनी चाहिए।ये सबकी अपनी-अपनी पसंद है। मुझे अच्छा लगता है कि मैं अपने परिवार के लिए कुछ करूं।
कांता के पास रेनू की बात का कोई जवाब नहीं था और सचमुच में रेनू की बातों में कितनी गहराई थी।हम लोग बिना सोचे-समझे किसी के बारे में अपनी धारणा बना लेते हैं।
कोई काम इंसान अपने शौक से करता है तो वो उसकी मजबूरी नहीं है।हम लोग हमेशा अपने ही चश्मे से दुनिया देखा करतें हैं। रेनू को लेकर कांता के मन में बहुत ही सम्मान बढ़ गया था।
सच ही तो है जब बच्चे बाहर चले जाते हैं तो उनको घर का खाना कहां मिलता है और घर में जितना साफ सुथरा और पौष्टिक आहार बनता है वो बड़े से बड़े होटलों में भी नहीं मिलता है।
रेनू को मसालों की भी बहुत जानकारी थी किसमें कितना और क्या पड़ेगा सभी रेनू से ही पूछते थे।एक बार घर की परिस्थितियां खराब हो गई तो एक गृहिणी घर को संभालने में कैसे मददगार बने। रेनू भी बहुत परेशान थी कि वो तो बाहर जा कर नौकरी नहीं कर सकतीं हैं और किसी के आगे हांथ फ़ैलाना उसे बिल्कुल भी मंजूर नहीं था।
एक दिन पड़ोसन आई तो उसने देखा कि रेनू बहुत परेशान है तो उसने सलाह दी कि रेनू तुम कितना अच्छा खाना बनाती हो और थोड़ी दूर पर एक हास्टल चलता है,
वहां बच्चों को खाने की बहुत दिक्कत है अगर तुम कहो तो मैं बात करूं। तुम टिफिन बना कर उनको भेजना शुरू करो।घर का घर में रहोगी और चार पैसे भी हांथ में आएंगे। रेनू को सुझाव अच्छा लगा और उसने झठ से हां कर दिया।
पाक कला के शौक ने आज रेनू को बहुत सफलता दिलाई थी। बच्चों को भी घर जैसा खाना मिलने लगा था और रेनू के पैसे की मदद से परिवार की समस्या भी समाप्त होने लगी थी। रेनू का काम खूब चल निकला था।अब तो उसने कई लोगों को काम भी दे दिया था।वो सब देख रेख करती और सारा स्टाफ काम करता।जो लोग रेनू का मजाक बनाते थे और उसको ताने मारा करते थे अब सभी उसको बड़े आदर से पुकारा करते थे।
रसोई घर केवल रसोई घर नहीं रह गया था वो खाने का मंदिर बन गया था, जहां थाली में भोजन ही नहीं अपनों का प्यार और स्वाद भी परोसा जाता था।आज रेनू ने एक छोटे से रेस्तरां का भी उद्घाटन किया था और उसका नाम रखा था ‘ घर जैसी थाली ‘ । सचमुच किसी भी काम की कीमत लगाने के बजाय उसके प्रति समर्पण और अपनापन जब जुड़ जाता है
तो वो काम नहीं पूजा बन जाता है।जो भी बच्चे घर से दूर रहते हैं उन्हें अच्छा खाना बाहर भी मिलता है तो घरवालों को भी तसल्ली मिलती है। इसी रसोई घर से शुरू होने वाला शौक आज एक ऊंचाईयों के मुकाम को छू लिया था और रेनू का काम के प्रति समर्पण आज भी वैसे ही था।
प्रतिमा श्रीवास्तव
नोएडा यूपी