राखी का अनमोल तोहफ़ा,, ना कभी देखा होगा ना सुना होगा,, – सुषमा यादव

,, मेरे प्यारे भैया,

कहां हो तुम ? जहां भी होंगे, अच्छे से ही होंगे,,

राखी का त्यौहार आ रहा है, तुम्हारी बहुत याद आ रही है, और उस राखी पर तुमने मुझे ऐसा अनमोल उपहार दिया शायद ही किसी भाई ने आज़ तक अपनी बहन को दिया होगा ,,

तुम्हें याद है,जब मैं तुम्हारे जीजाजी के साथ चली गई थी,तब तुमने सोचा कि दीदी को मैंने परेशान किया है इसलिए दीदी अपनी नौकरी छोड़ कर हमेशा के लिए हम सब से दूर चली गई, इसलिए तुमने हमारे पास आकर उसी कालेज में एडमिशन ले लिया और हमारे साथ ही रहने लगे थे,

मैंने बहुत समझाया कि मैं कुछ दिनों के बाद वापस लौट आऊंगी,पर तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं हुआ, और एक दिन रक्षाबंधन पर्व आया,, तुमने बड़े प्यार से कहा, दीदी, मैंने एक खूबसूरत राखी दुकान में देखी है,आप कहो तो मैं ले आऊं, मैंने भी खुश हो कर कहा था,, हां ले आओ, और तुम सच में बहुत ही खूबसूरत हथेली से बड़ी राखी आम के आकार की चमकीले रेशमी धागे से बुनी हुई,जरी सितारों से जड़ी हुई ले कर आये थे,

और मैंने बहुत ही प्यार से थाली सजा कर टीका आरती करके तुम्हारी कलाई में स्नेह रूपी वो राखी बांधी थी,, अपनी भरी हुई कलाई देखकर तुम्हारी खुशी देखते ही बनती थी, तुमने कहा था,, दीदी,आज मेरे पास आपको देने के लिए कोई उपहार, कोई भेंट नहीं है,पर मैं भगवान से प्रार्थना करता हूं कि वो मेरी जान लेकर भी आप की खुशियां आपकी गोद में डाल दे,, मैं मामा बनने वाला हूं,है ना, और मैंने शरमाते हुए कहा, भैया, ऐसा नहीं कहते,, तुम सबको छोड़कर मेरे पास भाग आये हो, मुझे बहुत मानते हो, मेरे लिए तुम सबसे बड़ा उपहार हो,, कुछ दिनों बाद मैं तो वापस लौट आई, तुम वहीं

पढ़ते रहे, सुना था कि वो राखी तुमने बहुत दिनों तक अपनी कलाई में बांध रखा था,,जब तक वो थोड़ी ख़राब नहीं होने लगी, फिर एक बाक्स में संभाल कर रख दिया था,

कुछ महीनों बाद तुम्हारा एक पत्र मिला, जिसमें तुमने फिर वही वाक्य लिखा था,,,मेरी जान चली जाए,पर आप की खुशी आपको मिल जाए ,,,, 

तुम कुछ दिनों की छुट्टी में यहां मां पिता जी के पास आये थे और मैं तुम्हारे जीजाजी के पास गई थी,पर हमारा दुर्भाग्य,कि बस स्टैंड में एक तरफ तुम उतर रहे थे, और दूसरी तरफ मैं तुम्हारे जीजाजी के साथ वापस लौट रही थी अपनी नौकरी ज्वाइन करने,काश उस समय फोन की सुविधा होती, तो हम मिल लेते,



खैर,,, तुम्हे एयरफोर्स ज्वाइन करना था, हमें तुम्हारा लेटर मिला, मैंने ख़ुशी से चिल्लाते हुए कहा,, बाबू जी, अम्मा जी, आप का बेटा तो आसमान में उड़ गया, और उसके कुछ दिनों बाद जाने क्या हुआ, कैसे हुआ,थाने से एक तार आया, फौरन आईये, आपका बेटा नहीं रहा,,पूरा घर रो रोकर पागल हो गया, मैं हतप्रभ रह गई,ये क्या हो गया, मेरे कारण बाबू जी अपने दोस्त के साथ वहां गये, और कोई नहीं जा पाया,

पता चला , ज्वाइन करने ट्रेन से जाते समय उसकी चपेट में आ गया,,

मुझे अपनी कोख भारी लगने लगी,, पागलों सी बाहर बारह बजे से तीन बजे तक घर के आगे पीछे बियाबान में चक्कर लगाती, शायद तुम दिखाई दे जाओ, कहते हैं कि अकस्मात मौत से आत्मा भटकती है,सब झूठ बोलते हैं, तुम तो सपने तक में नहीं आये, तुम्हारे जाने के ठीक बीस दिन बाद तुम मामा बन गये थे,पर उस पत्र की याद करके मैंने उस बच्ची को गोद में नहीं लिया, बाद में सबके बहुत समझाने पर एक महीने बाद मैंने उसे गोद में लिया, एयरफोर्स सेना ने तुम्हें बकायदा विधि विधान से सम्मानित किया और सलामी दी,

इतने सालों बाद भी तुम्हारा वो पत्र और वो अंतिम राखी अभी भी सहेज कर रखीं हूं, तुम्हारी वो

भानजी आज़ एक प्यारी सी बेटी की मां बन चुकी है, और तुम्हारा आशीर्वाद हमेशा उसके साथ रहता है, उसके जीवन के सभी कांटे तुम पलभर में चुन कर गुलाबों से उसका जीवन संवार देते हो,,

,, तुमने राखी का जो अनमोल उपहार अपनी बहन को दिया, शायद ही कोई भाई अपनी बहन को ऐसा तोहफा दे सका हो,,



,,तुम जहां भी रहो,सारी खुशियां तुम्हें मिले,, एक बहन की ये भगवान् से दुआ है,, भगवान् के चरणों में तुम्हे जगह मिले,,

मैं तुम्हें हर साल राखी बांधते आ रही हूं तुम्हारी तस्वीर पर, और तुम उसी तरह मुस्कुराते रहते हो,

कल फिर रक्षाबंधन का त्यौहार आ रहा है, मैं जा रहीं हूं, तुम्हारी  वैसे ही पसंद की राखी लाने, पर भैया मेरे,ये राखी बहुत रुलाती है, बहुत ही तड़पाती है,

तुम्हारी दीदी,

 #रक्षा 

सुषमा यादव, प्रतापगढ़ उ, प्र,

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

 

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