सोना ने बहुत अच्छी तरह से रज्जु की देखभाल की ज़िम्मेदारी उठा ली थी। सोहम और सोहा शाहर जाने के इंतज़ार में बस अब दिन गिन रहें थे क्योंकि उनकी पढ़ाई का नुक़सान हो रहा था.. संग लाई किताबें पढ़ तो रहे थे पर स्कूल के दोस्तों को याद करते रहते थे गाँव में जो बच्चे थे उनसे बातचीत करते पर वो अपनी बोली ज़्यादा बोलते जो इन दोनों बच्चों के समझ ना आती पर रज्जु दादी से मिलकर उन्हें बहुत अच्छा लग रहा था। अपनी दादी को कभी देखे नहीं थे और दादी का प्यार बस किताबों में पढ़ा था पर अब रज्जु से मिलकर वो दादी की कमी पूरी कर रहे थे। रज्जु को आए अभी पाँच दिन भी ना हुए थे कि एक दिन उसकी सांसे उखड़ने लगी। राजा साहब घबरा गए थे। रज्जु की साँसें उससे मिलने के लिए मानो अटकी पड़ी थी।
हरिया ने लाख समझाया ,“ जो बात सालों पहले हमने दबा दी उसको बाहर निकालने की ज़रूरत नहीं है ।अब तुम बोल कर कोई गलती मत कर देना.. पता नहीं फिर क्या क्या बात बाहर निकल कर आ जाएगी।”
राजा साहब के समझ नहीं आ रहा था रज्जु को क्या बोले.. पर अब रज्जु की हालत गंभीर हो गई थी.. शायद सांसे बस उससे मिलने के लिए अटकी पड़ी थी ।
राजा साहब का दिमाग़ काम नहीं कर रहा था एक तो रज्जु की हालत बिगड़ रही थी उपर से वो अपने घर में नहीं थी ..हरिया ने कहा था ,“कैसे भी उसे अपने घर भिजवा दिया जाए… चौधरी साहब के ख़ानदान में कहीं इस बात को लेकर हमारी बदनामी ना हो जाए कि हमने उनके घर की अमानत का ध्यान नहीं रखा।”
राजा साहब ने रज्जु के लिए वैध से दवा करवाई और हालत में थोड़ी सुधार आते संतोष के साथ उसके घर भिजवा दिया।रज्जु जानती थी राजू जानबूझकर कर साथ नहीं आया है ।
रज्जु के जेहन में बार बार ये ख़्याल आ रहा था राजू ने मुझे क्यों नहीं उसके बारे में कुछ बताया क्यों मुझे मेरे घर भेज दिया.. साथ आता तो कम से कम मैं ज़िद्द कर के पूछ तो लेती पर अब वो मुझसे मिलने कभी नहीं आएगा…
अचानक बग्घी एक झटके से रूकी तो रज्जु अपने आपको संभाल ना पाई… संतोष ने उसे सहारे से ठीक से सीट पर बिठा दिया..
“ आप कही खोई हुई है क्या आपको कुछ पता नहीं चला? सामने से एक बैलगाड़ी आ गई थी तो बग्घी को थोड़ा किनारे करना पड़ा। अब आप ठीक से बैठ जाए।” संतोष ने कहा
“ हाँ बेटा आजकल ना जाने किन ख़्यालों में खोई रहती हूँ ।”रज्जु ने कहा
थोड़ी देर में रज्जु की कोठी आ गईं।
रज्जु को उसके कमरे तक पहुँचा कर संतोष जैसे ही निकलने को हुआ विष्णु आकर बोला,“ आप आज यही रूक जाए… घर जाते जाते अँधेरा हो जाएगा फिर बग्घी से जाना मुश्किल होगा।
“आप चिंता ना करें मैं खेतों से होता हुआ चला जाऊँगा।” संतोष ने कहा
पर रज्जु और विष्णु के बहुत कहने पर संतोष वही रूक गया।
पता नहीं रज्जु संतोष को जाने नहीं देना चाहती थी या होनी को कुछ और मंज़ूर था।
मुँह अँधेरे उठ कर संतोष अपने घर जाने को निकलने ही वाला था कि विष्णु आकर बोला,“ भाई छोटी माँ कीं साँसें ज़ोर ज़ोर से चल रही है समझ नहीं आ रहा रात को तो अच्छी भली थी अब अचानक से क्या हो गया ।”
संतोष के कदम वही रूक गए वो उल्टे पाँव रज्जु के कमरे में भागा,“ माँ क्या हुआ आपको… आप क्या सोच रही है जो बात है मुझसे कहिए ना… मन में ना रखें ।”
रज्जु चढ़ती उढ़ती साँसो में बोली ,“ राऽऽ जूऽऽऽ को बुऽऽलऽऽ वाऽऽऽ दोऽऽ।”
विष्णु ने एक आदमी को उसी वक़्त गाँव जाने कह दिया… गाँव में बात आग की तरह फैल गई .. लगता है अब चौधराईन नहीं बचेगी…।
राजा साहब (भाग 5)
राजा साहब (भाग 3 )