राजा साहब (भाग 3 ) – रश्मि प्रकाश

दस दिन किसी तरह बीत गए बच्चों को भी गाँव में मन लगने लगा था…हर दिन खेतों पर जाना.. ताजी ताजी सब्ज़ियाँ तोड़ कर लाना… नए नए अनुभव लेकर अब उनके जाने का दिन आ गया था।

राजा साहब चाहकर भी बच्चों को रोक नहीं सकते थे क्योंकि सोहम और सोहा के स्कूल जो खुलने वाले थे। जाने की सारी तैयारी हो चुकी थी बस वो निकलने ही वाले थे कि एक आदमी दौड़ते हुए आया और बोला,“ वो चौधरी साहब की पत्नी की तबियत ख़राब हो गई है उन्होंने किसी राजा को अपने घर आने कहा है.. राजा कौन है इस गाँव में जरा बता सकते हैं?”

राजा साहब घबराते हुए आगे आए और बोले,“ जी मैं ही राजा हूँ आप चलिए मैं आपके पीछे पीछे आता हूँ… हरिया बच्चों का ध्यान रखना… आज इनको जाने ना देना… मैं जाकर आता हूँ ।”

हरिया ने राजा साहब का हाथ पकड़ कर रोकने की कोशिश की पर राजा साहब ने उसके हाथ पर आश्वासन का हाथ रख उस आदमी के पीछे पीछे चल दिए।

राजा साहब की सांसे धौंकनी के समान तेज हो रही थी.. मन किसी आशंका से घबरा रहा था.. जी कर रहा था अभी जाकर उससे मिल ले पर ये अकुलाहट वो सीने में दफन कर चेहरे पर गंभीरता लिए उसके पीछे पीछे चला जा रहा था।

एक गाँव पार हुआ दूसरे गाँव के बाद ही तो उसका गाँव आएगा । वो रॉकेट की गति से अपनी चाल चल रहा था लग ही नहीं रहा था ये साठ साल का आदमी होगा।

झपटते हुए चलते चलते वो आदमी बोला,“ बस राजा साहब ये सौ मीटर बाद चौधरी साहब की कोठी आ जाएगी ।”

सुनते ही राजा साहब की चाल और तेज हो गई ।

भव्य कोठी के सामने पहुँच कर वो आदमी बाहर से आवाज़ देने लगा,“ हुक्म साहब , राजा साहब आ गए हैं..भीतर लिवा लाऊँ ।”



तभी उस घर के दरवाज़े पर विष्णु नज़र आया।

“आप ही राजा साहब है ? ” उसने पूछा

“हाँ “के जवाब में राजा साहब को इशारे से अंदर आने कहकर वो उस महिला के कमरे की ओर बढ़ने लगा।

“ ये क्या दशा बना लिया है… अभी तो दस बारह दिन पहले ही हरिया मिल कर गया था तब तो बोल रहा था सब ठीक है पर ये तो… सूख सी गई है.. लगता ही नहीं ये वहीं हैं..।” उसको देखते मन ही मन राजा साहब की आँखों में आँसू आ गए

“ विष्णु दो घड़ी इनसे बात कर लेने दे बेटा, तब तक इनके लिए कुछ भिजवा दे।” उस महिला ने कहा

विष्णु के जाते राजा साहब का दिल किया जल्दी से उसका हाथ पकड़ कर पूछे ये क्या हाल बना लिया है पर प्रत्यक्ष में वो बस निरीह भाव से उसे देख पास रखे मोढे पर बैठ गए ।

“ कुछ बोलोगे नही राजू… अब तक मुझसे नाराज़ हो?” महिला ने बहुत धीमे से स्वर में कहा

“ क्या बोलूँ रज्जु … तुमने कुछ कहने सुनने का मौक़ा दिया ही कहाँ… बस अपनी सरपट भागने की आदत में हम सब को छोड़कर आगे निकल गई । उस दिन हरिया आया तो कह रहा था तुम ठीक हो पर तुम तो जरा भी ठीक नहीं लग रही… अचानक से क्या हुआ तुम्हें.. चौधरी साहब के जाने का दुख सहन नहीं हो रहा होगा समझ सकता हूँ… पर अब जाने वाले को याद कर के अपनी सेहत बिगाड़ना कहाँ तक सही होगा? ”राजा साहब की मायूसी उनकी आवाज़ में साफ झलक रही थी

तभी कमरे में एक नौकर आकर चाय नाश्ता रख गया और बोला,“ साहब बीबी जी ने कई दिनों से कुछ ना खाया हो सके तो तनिक इनको भी साथ में खिलाए दो… लगता है आपको बहुत अच्छे से जानती है तभी सब आपकी पसंद का बनवाया है।”

राजा साहब उसकी बात सुनकर कभी रज्जु को देखते कभी नाश्ते की ओर… शक्कर पारे, दही बडे, नमकपारे ना जाने क्या क्या बनवा दिया था।

“आज भी तुम्हें सब कुछ याद है? भूली नहीं हो कुछ भी …!” राजा साहब ने कहा

“ अपने आप को भूल भी जाऊँ राजू तुम्हें कैसे भूल जाऊँ… ! लरजती आवाज़ में रज्जु ने पूछा

राजा साहब ने रज्जु को देखा वो आज फिर अपने नाखून को कुतरने लगी थी ये आदत उसकी पहले से ही थी जब भी दिल दिमाग़ में हलचल होती नाखून सीधे मुँह में जाता।

“ क्या सोच रही हो? अच्छा मुझे क्यों बुलाया ये भी नहीं बताया?” राजा साहब ने पूछा

राजा साहब (भाग 4)

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राजा साहब (भाग 2 )

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