रेलवे स्टेशन –   रूद्र प्रकाश मिश्र

रात के कोई नौ बजे होंगे । बहुत डरी – सहमी सी वो इधर – उधर देख रही थी । भीड़ के हर एक चेहरे में मानो कुछ ढूँढ रही थी वो । प्लेटफार्म पर आते  – जाते हर लोगों की तरफ वो एक सवाल भरी निगाहों से देखती , शायद कुछ कहना चाह रही थी पर फिर चुप ही रह जाती ।

                         थोड़ी देर बाद उसने एक युवक की तरफ देखते हुए पूछा  – बाबू , एक बात सुनोगे । युवक ने उसकी तरफ हिकारत भरी नज़रों से देखा , फिर झटकते हुए कहा – नहीं , किसी और को सुनाओ । वो डर कर चुप हो गई । तभी ट्रेन आ गई । लोग अपने  – अपने डब्बों की तरफ भागने लगे । वो बुढ़िया भी अचानक ही उठकर जोर  –  जोर से आवाज़ लगाने लगी ,,, दिवेश ,,,, दिवेश ,, । वो अपनी हर सम्भव शक्ति से अपना बैग उठाए हुए हर डब्बे के पास जाकर जोर – जोर से आवाज लगाती  –  दिवेश ,,,, ओ बेटा ,, दिवेश ,,,,,। थोड़ी देर पहले जिस युवक ने उसे भगा दिया था , वो चुपचाप बैठकर उसको देख रहा था ।

                   ट्रेन के चले जाने के बाद प्लेटफार्म फिर धीरे –  धीरे पहले की तरह शांत होने लगा । वो बुढ़िया परेशान , थकी  – हारी सी कदमों से धीरे  – धीरे एक जगह जाकर बैठ गई । वो युवक उठकर उसके पास गया और पूछा  – क्या हुआ है ? बुढ़िया ने उसकी तरफ डरी सी नज़र से देखा , फिर बोली –  हाँ बेटा । मेरी बात सुन लो । युवक उसके पास बैठ गया और बोला , बताओ । मेरा बेटा उस तरफ जाने वाली गाड़ी से गाँव का टिकट लेने गया है । उसने एक तरफ इशारा करते हुए कहा । युवक ने आश्चर्य से पूछा  –  गाड़ी से कहाँ का टिकट लेने गया है तुम्हारा बेटा , टिकट तो स्टेशन के बाहर टिकट खिड़की पे मिलता है । बुढ़िया ने उत्तर दिया  – ना बेटा उसने कहा है कि आगे स्टेशन पे गाँव का टिकट मिलता है । फिर उसने पूछा  – आगे का स्टेशन क्या ज्यादा दूर है ? चार घंटे हो गए , अब तक वो वापस नहीं आया है । अब युवक के मन में कुछ संदेह हुआ । उसने सहानुभूति भरे स्वर में पूछा  –  तुम्हारा बेटा क्या करता है अम्मा ,, बुढ़िया बोली  –  बहुत बड़ा बाबू है । अभी एक महीने से उसी के साथ तो रह रही थी । युवक ने पूछा  –  तुम्हारा गाँव कहाँ है ? बुढ़िया बोली –  काफी दूर है ।। दो दिन लग गए थे यहाँ रेल से आने में । युवक ने फिर पूछा  – घर में और कौन –  कौन हैं ?  बुढ़िया बोली  –  मैं , मेरा बेटा , और बहू । ‘ वो ‘ तो रहे नहीं ।। हम काफी गरीब थे बेटा , बहुत मेहनत की है अपने बेटे को लिखाने – पढ़ाने में । फिर उस बुढ़िया ने पूछा  – तुमको कहाँ जाना है बेटा ? युवक ने कहा – मैं यहीं नौकरी करता हूँ । छुट्टी में अपने गाँव जा रहा हूँ । बुढ़िया ने फिर कुछ चिंतित स्वर में कहा  –  रात भी कितनी हो गई , देखो ना वो खाना भी यहीं मेरे ही पास रख गया है । पता नहीं , कितनी देर में आएगा । भूख भी लग गई होगी उसको । उसने फिर युवक को कुछ खाने का सामान निकाल कर दिखाया । चार या पाँच रोटियां थी , लपेटी हुई और एक बंद डब्बे में थोड़ी सब्जी ।



                           अब युवक की समझ में सारी  बात आ गई । उसने बुढ़िया की तरफ दया भरी नज़रों से देखा , जो अपने बेटे के आने की राह देख रही थी । उस बेचारी को अब तक ये पता नहीं था कि उसका बेटा उसको इस भीड़ भरे अनजाने जगह में छोड़ कर भाग गया है । उस युवक के ट्रेन को आने में अभी भी करीब एक घंटा था । उसने उस बुढ़िया को कहा – खाना खा लो अम्मा , रात के दस बज रहे हैं । बुढ़िया बोली – नहीं बेटा , पहले  दिवेश आ जाए । वो खा लेगा , फिर मैं भी खा लूँगी ।

        तभी गाडी की सीटी सुनाई पड़ी । बुढ़िया अपना बैग उठाकर फिर खड़ी हो गई । लोगों ने कहा  – कहाँ जा रही हो अम्मा ,, ये गाड़ी यहाँ नहीं रूकती है ।

        दिवेश ,,,, ओ बेटा ,, दिवेश  ,,,,,

                    अरे ,,,,, रोको उसको ,,,,,   मगर शायद तब तक देर हो चुकी थी ।लोग भाग कर आए । उस बुढ़िया का क्षत – विक्षत शरीर पटरी पर बिखरा पड़ा था । उसका सामान ,, और वो खाना भी , जो उसने अपने कभी ना लौट कर आने वाले बेटे के लिये हिफाजत से रखा था । लोग तरह – तरह की बातें कर रहे थे ।

      थोड़ी देर में उस युवक के ट्रेन के आने की घोषणा हो गई ।

                 गाडी रात के सन्नाटे को चीरती हुई तेजी से भागी जा रही थी । वो युवक चुपचाप अपने बर्थ पर बैठा हुआ था । डब्बे में कहीं ‘ मन्नाडे ‘ का गया हुआ बहुत ही मशहूर गीत बज रहा था ” तुझे सूरज कहूँ या चँदा , तुझे दीप कहूँ या तारा  ।।।

          रूद्र प्रकाश मिश्र

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