पुनर्जन्म, — उमा वर्मा

वह मेरे पड़ोस में मेरे घर के सामने ही रहती थी ।शीला मौसी माँ की सबसे अच्छी दोस्त और बहुत करीबी थी।उन्ही की बेटी थी वह ।बहुत शान्त, बहुत सौम्य ।तीखे नाक नक्शे पर हल्का साँवला रंग उसकी खूबसूरती को बढ़ा देता था ।उसपर लम्बा छरहरा बदन किसी को आकर्षित करने के लिए काफी था ।बचपन से एक साथ खेलते कूदते कब हम बड़े हो गये यह पता भी नहीं चला ।हमारा स्कूल तो पहले एक ही था ।पर बाद में कालेज अलग हो गया ।

दोनों के आने जाने का समय भी बदल गया था ।अक्सर मै अपने घर की बालकनी में खड़ा होता जब वह कालेज जा रही होती ।हर इतवार को बालों को धोकर सूखने के लिए छत पर खड़ा होती तो मैं बस उसे ही देखता रहता ।उसे रोज सुबह देखने की मेरी आदत बन गई थी ।वह धीरे-धीरे मुझे बहुत अच्छी लगने लगी थी ।कभी कभी हम एक दूसरे के यहाँ होते और ताश कैरम और लूडो की बाजी होती तो मैं जानबूझकर हार जाता ।

और उसके चेहरे की विजयी मुस्कान देखकर मुझे बहुत खुशी मिलती ।कभी कभी बड़ो के उपस्थिति में भी उनकी नजरों को बचाकर एक दूसरे को देख लेते ।लेकिन डर भी बहुत लगता कि कहीँ चोरी न पकड़ी जाय।मै उसे चाहने लगा था ।लेकिन मन की बात किसी से कहते डर लगता कि कहीँ गलत अर्थ न लगा ले वह लोग ।जिनके नजर में मै बहुत अच्छा और नेक इनसान था ।लगता था कि अच्छा मौका मिला तो अपनी माँ को अपनी चाहत के बारे में बता दूँ ।लेकिन हमेशा डर बना रहता कि हमारे परिवार के दोस्ती पर जरा भी आंच नहीं आए।

फिर आखिर एक दिन मौका मिल ही गया ।माँ और मौसी  पड़ोस में कथा पूजा में गई थी ।यह अच्छा मौका था ।वह भी अपने घर में अकेले थी।उसदिन कालेज भी बंद था ।पढ़ाई के सिलसिले में हम पुस्तकों का लेनदेन किया करते थे ।तो वही बहाना और अवसर था ।मै सीधे उसके घर में कोई पुस्तक लौटाने गया ।वह रसोई में चाय बना रही थी ।मैंने झट उसके हथेलियों को अपने हाथ में लिया “” शैली,मै तुमसे बहुत प्यार करता हूँ “”।




 उसने शर्मा कर हाथ खींच लिया ।” अम्मा आ जाएगी ,छोड़ो भी “– ” आ जाने दो ना अम्मा को, वह भी तो जाने, हम कितना चाहते हैं तुम को “।” क्या तुम नहीं चाहतीं? बोलो शैली? वह शर्मा गई ।उसके चेहरे पर खुशी की लालिमा बिखर गई ।वह मेरे सीने से लगी थी ।कितने देर तक हम एक दूसरे से चिपके रहे, जब शीला मौसी के आने की आहट लगी तो घबरा कर अलग हो गए ।तब फोन का जमाना नहीं था ।चोरी छिपे हम पत्रों  के माध्यम से अपने मन के भाव प्रकट कर लेते थे ।फिर बात कुछ दूसरी हो गई ।मै पढ़ाई के लिए बाहर जाने वाला था ।

उसने मेरे जाने की सुनी तो रो रो कर आँखे सुजा ली ।मैंने एकान्त पाते ही उसे समझाया ” देखो शैली, मै कुछ अच्छा बन जाता हूँ तो तुम्हारे माँ, पापा से बात कर करके तुम्हारा हाथ मांग लूँगा ।तुम मेरा इन्तजार करना, करोगी ना? उसने रोते हुए सिर हिलाया ।मै चला गया ।इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने ।तीन साल बीत गए ।उसके खत आते ।मै भी जवाब देता ।उसने बताया कि उसकी शादी तय की जा रही है ।माँ, पिता  अब और इन्तजार नहीं कर सकते हैं ।” शैली, तुम मना कर दो उन्हे “-” कैसे कहूँ, नहीं कह सकती” उनकी भी तो कुछ जिम्मेदारी है मेरे लिए ।तुम्हारे तरफ से तो कोई बात ही नहीं हुई अब तक।फिर सुना उसकी शादी हो गई ।

उस रात मै बहुत रोया ।काश,तुम हिम्मत करके कह देती।मेरी चाहत को तुम समझ नहीं पाई शैली ।मै तुम्हारे बिना जिन्दा नहीं रह सकता ।लेकिन वह ससुराल चली गयी ।माँ से ही उसका समाचार मिलता रहा था कि वह अपने घर में खुश थी ।उसे बहुत अच्छा  परिवार मिला है ।इत्यादि ।मै जितना सुनता उतना दुखी होता ।फिर समय के साथ मन को समझा लिया कि चाहत ये नहीं होती कि किसी को खुश देख कर दुख मनायी जाय।चाहत का अर्थ उनकी खुशी मे खुश  होने का होता है ।पता नहीं वह कितनी खुश थी ।छह महीने और बीत गए ।फिर एक दिन माँ की चिठ्ठी मिली ” शैली खत्म हो गई है ” ।” कब ? कैसे? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था ।




वह खुश थी तो चली कैसे गई ।क्या हो गया था उसे? मुझे मेरे प्रश्नों के उत्तर कभी नहीं मिल पाया ।कहते हैं कि ईश्वर दुख सहने की शक्ति दे देता है ।मै भी धीरे-धीरे सामान्य होने लगा था ।अब मै एक अच्छी कंपनी में सेटल हो गया था ।और एक दिन माँ ने कहा ” बेटा,अब तू भी कोई अच्छी सी लड़की पसंद कर ले।मै भी तेरा घर बसा कर निश्चित हो जाउँ ” माँ को भी मेरी चाहत के बारे में कुछ कुछ मालूम था ।लेकिन पापा कड़े थे इसलिए वह कभी बोल नहीं पाई ।हमारी जाती के बीच में दीवार थी।वह ब्राह्मण और मै कायस्थ ।

मेरी भी शादी हो गई मेरे माता-पिता के पसंद से ।मेरे लिए शैली को भूलना आसान नहीं था ।पर गृहस्थी की गाड़ी तो चलानी थी ।सो खुश होने का नाटक कर लिया ।एक साल बीत गए ।पत्नि बहुत अच्छी और समझदार थी ।मेरे किसी भी क्रिया कलाप में कभी टोक टाक नहीं करती थी ।आफिस के तरफ से एक बार सिंगापुर जाने का आदेश मिला ।चाहता था कि पत्नी को भी साथ ले जाऊँ पर उसने इन्कार कर दिया ।

मै अकेला ही जहाज में सवार हुआ ।बगल की सीट पर वही थी।मेरी आँखे धोखा नहीं खा रही थी ।यह शैली थी।यह कैसे हो सकता है ।उसे तो दुनिया छोड़े साल भर से अधिक हो गया है ।यह मै क्या देख रहा था ।बिल्कुल वही रूप रंग, वही कद काठी ।पहनावा भी वही ।तभी उसने कहा ” आप रवि है ना? ” इलाहाबाद वाले? शायद आप सिंगापुर जा रहें हैं ।मै भी वहीं  जा रही हूँ ।चलिए साथ अच्छा रहेगा ।फिर पहुचने पर वह उतर कर न जाने कहाँ चली गयी ।समय अपनी रफ्तार से भागता रहा ।मै दो बच्चों का पिता बन गया ।मेरे पड़ोस में नये दम्पति आ गए थे ।बहुत सज्जन व्यक्ति थे।।मेरी पत्नी का खूब पटता था उनलोगों से ।




उनकी एक शादी शुदा बेटी थी जो मायके आई हुई थी ।डिलेवरी के लिए ।पहला बच्चा  था  तो माँ से अधिक कौन संभालता।ससुराल में सास नहीं थी ।तीन महीने के बाद उसकी बच्ची का जन्म हुआ ।मै भी पत्नी के साथ अस्पताल गया उसे देखने ।बहुत प्यारी बच्ची थी ।चेहरा कुछ पहचाना सा लगा ।फिर मै अपने काम में व्यस्त हो गया और भूल गया इस बात को ।पड़ोसी की बिटिया अपने घर चली गयी ।उन लोगों से इतना अपनापन हो गया कि सारे समाचार का आदान-प्रदान होता रहता ।पाँच साल के बाद उनकी बेटी मायके आई ।

उसने जो बताया वह आश्चर्य जनक था ।उसने कहा– मेरी बेटी अपना नाम शैली बताती है कहने लगी ,मुझे वहां जाना है रवि के पास ।जिद पकड़ कर बैठ गयी तो हमें हार कर लाना पड़ा ।फिर वह अपने घर जाना ही नहीं चाहती थी ।दिन रात हमारे पास, हमारे यहाँ रहती ।अकेले में मुझे रवि पुकारती।मुझे बहुत अजीब लगता ।उसके नैन नक्शे  बिलकुल  शैली जैसे लगने लगे थे।हार कर उसका एडमिशन नाना के यहाँ कराया गया ।उसकी उम्र और पढ़ाई आगे बढ़ने लगी ।अकेले मौका पाते ही मुझे कहती ” आप तो रवि हो न? ” मुझे आप के पास रहना है ।यह कैसी विचित्र समस्या हो गई ।मै परेशान था ।कहते हैं कि चाहत ऐसी होती है कि व्यक्ति मृत्यु के बाद भी अपने करीबी के यहाँ जन्म लेना चाहता है ताकि उस अपने को देख सके महसूस कर सके।तो क्या यह मेरी चाहत ही उसे यहाँ खींच लाई थी ।लेकिन वह मेरी पत्नी की समस्या बन गई थी ।कोई भी लड़की किसी विवाहित पुरुष के आगे पीछे डोलती रहेगी तो भला किस स्त्री को अच्छा लगेगा ।इसका एक ही समाधान था ।हमने दूसरे शहर में बदली करा लिया ।वह हमारे जाने का सुनकर बहुत रोयी।लेकिन मै क्या दिलासा दे सकता था उसे ।अब यही एक उपाय था मेरे घर परिवार के लिए ।इसी में सबकी भलाई थी।ट्रक आ गया ।सामान लदा  गया ।वह सूनी आँखों से देखती रही ।चाहत कभी घसीटी नहीं जा सकती उसे भोगना पड़ता है, जीना पड़ता है ।वह  तो जी रही थी और मैं? मेरे प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं है ।— ” चाहत “” 

उमा वर्मा ।राँची ।

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