प्रेतात्मका का प्रतिशोध (  भाग तीन   ) – गणेश पुरोहित 

 रामप्रकाश जिसने आज तक कभी साइकिल नहीं चलाई थी, पर आज वह बम्बई की सड़को पर कार दौड़ा रहा है। वह आत्महत्या करने घर से निकला था, पर आज बम्बई की सड़कों पर एक लग्ज़री कार में घूम रहा है। सब कुछ अचम्भित करने वाला नज़ारा है, जिसे रामप्रकाश मूक दर्शक की तरह बैठा हुआ देख रहा है। घटनाक्रम तेजी से घटित हो रहा है, जिसे रोकना उसके बस में नहीं है। शरीर रामप्रकाश का है, किन्तु इसका उपयोग कोई और कर रहा है। वह अपने जीवन से ऊब गया था और जीवनलीला समाप्त करने का मकसद ले कर आधी रात को उस भूतहा तालाब में गया था, पर उसे क्या मालूम था, उसके शरीर से प्राण नहीं निकलेंगे। शरीर रहेगा, पर रामप्रकाश उस शरीर में कहीं भीतर दुबक कर बैठा रहेगा। शुरु-शुरु में उसे बहुत भय लगने लगा था। उसे लगा था-उसकी बर्बादी का नया मंजर आरम्भ होने वाला हैं। कहीं गफलत में वह जेल में नहीं ठूंस दिया जाय। यदि ऐसा हो गया तो उसकी जमानत देने भी कोई नहीं आयेगा और उसे ता उम्र जेल में सड़ना पड़े़गा। पर अब उसे लग रहा है, जो भूत महाशय उसके शरीर में घुस कर बैठे हैं, वे कोई साधारण व्यक्ति नहीं है। वे जब तक उसके भीतर रहेंगे, उसको कोई आंच नहीं आने वाली है। जीवन ज्योति बुझते -बुझते इतनी प्रकाशवान हो जायेगी, इसकी उसने कभी कल्पना ही नहीं की थी।

     कार समुंद्र के किनारे पर रेंगती सड़क पर भागी जा रही थी। सड़क पर दौड़ रहे कारों के काफिलें के बीच वह किसी सिद्धहस्त ड्राइवर की तरह कार चला रहा था। जबकि वह जानता है उसके शरीर में बैठी  प्रेतात्मा यदि बाहर निकल जाय तो वह उसका मूल्य इस बम्बई.शहर में दो कोड़ी का नहीं रह जायेगा। सड़क पर कार चलाना छोड़ वह यहां पैदल भी नहीं चल पायेगा। हुलिया भिखारियों जैसा और जेब में एक रुपया तक नहीं। न उसे कोई. यहां काम देगा और न ही खाना। वह यहां से अपने गांव कैसे जायें, इसकी भी उसे कोई जानकारी नहीं है। यदि प्रेतात्मा ने कहीं उसे बीच मझधार में ही छोड़ दिया तो उसके लिये भूखे मरने या जेल में सड़ने के अलावा कोई चारा नहीं रहेगा। पर उसे संतोष इस बात का है कि अब तक कोई. अनहोनी नहीं हुई है। उसकी सांसे चल रही है। सांसे कब तक चलती रहेगी, यह जानने की उसे जिज्ञासा भी नहीं है।




      शहर के कोलाहल से दूर एक शानदार बंगले के बाहर आ कर कार रुक गई। दो मंजिला गुलाबी रंग का यह बंगला बहुत खूबसूरत था। बाहर छोटा सा लान था। कार देखते ही गार्ड़ ने दरवाज़ा खोल दिया, किन्तु अजनबी ड्राइवर और पिछली सीट पर साहब को नहीं देख कर थोड़ा सहम गया। उसने कुछ पूछना चाहा, उसके पहले ही कार तेजी से आगे बढ़ी और गैरेज में जा कर रुक गई। कार के भीतर से फुर्ती से एक अजीब से हुलिये वाला आदमी निकला और तेज कदमों से चलता हुआ, बंगले का गेट खोल अंदर आ गया और तेजी से सि​िढ़या चढ़ कर पहली मंजिल पर आ गया।  उसका हाथ काल बेल पर गया। गार्ड़ दौड़ता हुआ उसके पास आ गया। दरवाजा खुला। नौकरानी ने दरवाजे पर ही खड़े रह कर पूछा, ‘कौन चाहिये?’

      उसने जवाब में नौकरानी को एक ओर धकेला और तेजी से बंगले के अंदर प्रविष्ट हो गया। गार्ड़ उसकी ओर झपटा। गार्ड़ ने उसका हाथ कस कर पकड़ लिया और चिल्लाते हुए बोला, ‘बाहर निकलो और मुझ से बात करों ! ‘ वह पीछे पलटा। गार्ड़ को किसी सामान की तरह उठा लिया और दरवाजे से बाहर फैंक दिया। गार्ड़ दर्द से कराहता हुआ बोला, “अरे, भाई ! ….हम कह रहे हैं, मैम साहब घर में नहीं है….।”

       वह बिना कोई जवाब दिये अंदर दाखिल हो गया। घर के नौकर दौड़ कर वहां आ गये, पर गार्ड़ की हालत देख कर सभी सहम गये। वह भीतर आ कर ड्राइंग रुम के सोफे पर बैठ गया और आंख बंद कर कुछ सोचने लगा। तभी एक नौकर बोला, ‘ओ, भैया !  कुछ बोलो तो सही, तुम्हें क्या चाहिये ?’ जब घर में मालिक लोग है ही नहीं, फिर तुम यहां क्यों बैठे हो ?” 




     प्रत्युत्तर में वह फिर कुछ नहीं बोला। नौकर आपस में फुसफुसाते रहें और वहीं खड़े रहे। कुछ ही देर बाद एक महिला ने घर में प्रवेश किया। लम्बी, छरहरी, मजबूत कद काठी की सुन्दर औरत थी, जिसकी भृकुटी तनी हुई थी और चेहरे पर अहंकार छलक रहा था।  वह ड्राइंग रुम में एक अजनबी को बैठा देख लगभग चीख कर बोली, ‘ यह कौन है ? यहां क्या कर रहा है ? तुम लोग देख क्या रहे हो, इसे बाहर निकालो !.’………..’प्रेम सिंह !’ वह  गार्ड़ की ओर मुखातिब हो कर बोली, ‘ क्या तुम सो रहे थे, तब यह मवाली घर के अंदर आ रहा था ? ‘

     रामप्रकाश  अब भी आंखें बंद किये अविचलित बैठा रहा। उसने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। किन्तु महिला ने जैसे ही आगे बढ़ कर उसका हाथ पकड़ा उसने उसका हाथ झटक दिया। महिला धड़ाम से फर्श पर गिर पड़ी। नौकरों ने आ कर उसे उठाया। महिला जोर-जोर से चिल्लाते हुए बोली, ‘देखते क्या हो, पुलिस को फोन करो ! यह कोई गुंड़ा है। चोरी की नीयत से धर में घुसा है।’

    कुछ क्षण वो आंख बंद किये ही निर्विकार बैठा रहा। फिर उसने आंखें खोली। उसकी आंखों में आग बरस रही थी। वह अपनी लाल-लाल आंखों से उस महिला को  घूरता रहा। उस औरत को देख कर उसका चेहरा तमतमा गया था। वह उठा और उसने उस महिला को जोर से धक्का मार कर फर्श पर गिरा दिया। फिर उठाया और उसे सोफे पर पटक दिया।  महिला की आंखों में आंखे डाल कर बोला, ‘ तेरे ये नौकर मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते।….. मैं इनके सामने ही तूझे नोच डालूंगा, समझी !’  महिला ने जैसे ही उसकी आग बरसाती आंखों में उभरी आकृति को देखा, उसके मुंह से एक चीख निकल कर रख गयी।  उसकी आंखें बंद हो गई। आवाज भर्रा गई । वह कुछ नहीं बोल पाई। रुआंसी हो कर सिसकने लगी।




  ‘ तुम अब अपने आप से भयभीत हो गई हो।  तुम्हारा अहंकार और धन का रुतबा कहीं गायब हो गया है, क्योंकि तुम्हारे भीतर एक चोर छीपा बैठा है, उसे मैं जगाने आया हूं- समझी तुम। ”  कहते हुए फिर उसने उसके बालों को पकड़ कर बेरहमी से झकझोर दिया।

    वह नि:शब्द रही। उसकी आंखें बंद थी। बंद आंखों की कोर से आंसू ढुलक रहे थे। घर के नौकर इस असम्भावित घटनाक्रम को उत्सुकता से देख रहे थे। अपनी मालकिन की हालत देख कर वे असहाय हो कर खड़े थे। थोड़ी देर पहले आग बगुला हो रही स्त्री निष्चेट पड़ी थी। उसका सारा अभिमान और क्रोध कहीं लुप्त हो गया था।

     तभी गार्ड़ के साथ ड्राइंगरुम में दो कांस्टेबल और एक इंस्पेक्टर ने प्रवेश किया।  इंस्पेक्टर को ऐसे गमगीन माहौल की कल्पना नहीं थी, क्योंकि जो व्यक्ति इतने बड़े आदमी के बंगले में घुस आया था, वो दुबला पतलासा फटिचर आदमी था। उसे अचरज इस बात पर हो रहा था कि ऐसे आदमी के सामने सभी लोग इस तरह बेबस क्यों खड़े हैं ?

  ‘अबे, ओय, कौन है तू ? और यहां कैसे घुस आया ?’ …..




    जवाब में रामप्रकाश चुप्पी साधे रहा। वह सिर झुकाये अपनी हाथों की उंगलियों से खेलता रहा। इंस्पेक्टर ने आव देखा न ताव और रामप्रकाश के गाल पर खींच कर एक थप्पड़ झड़ दिया। परन्तु उसके थप्पड़ का रामप्रकाश पर कोई असर नहीं हुआ। वह वैसे ही पूर्ववत बैठा रहा, किन्तु इंस्पेक्टर के हाथ में इतना तेज दर्द उठा कि वह जमीन पर गिर कर लौटने लगा। दोनो सिपाहियों ने अपने साहब को उठाया और रामप्रकाश की ओर देख कर गुर्राने लगे।

    अब रामप्रकाश ने अपना मौन तोड़ा-  ‘ इंस्पेक्टर ! ‘ मैं इस घर में जबरन घुस आया और इस घर में रह रहे सदस्यों के साथ मार-पीट की है। इस संबंध में आप इन लोगों के बयान ले कर मुझे गिरफ्तार कर सकते हो। … थोड़ी चुप्पी के बाद वह बोला, ‘चलिये मैं स्वयं आपके साथ थाने चलता हूं। ”  कहता हुआ बाहर निकल गया। इंस्पेक्टर दर्द से कराहता हुआ और दोनो सिपाही उसे दिलासे देते हुए बाहर निकले।

      रामप्रकाश ने जब गैरेज से कार निकाली तो एक सिपाही ने टोकते हुए कहा, ‘ हमारे साथ जीप में बैठो !’

    वह  जवाब में कुछ बोला नहीं, सिर्फ मुस्करा दिया और तेज गति से कार को बंगले से बाहर ले आया। कार को सीधे थाने के बाहर खड़ी कर दी। तेज कदमों से चलता हुआ वह इंस्पेक्टर के कार्यालय में आ, उसकी कुर्सी के सामने बैठ गया। बाहर तैनात एक सिपाही दौड़ता हुआ अंदर आया और चीखते हुए बोला, ‘ अबे ओ मरदूद ! बिना पूछे अंदर क्यों घुस गया ?’  जवाब में बिना प्रतिक्रिया व्यक्त किये वह चुपचाप बैठा रहा। उसने गुस्से से उसका हाथ पकड़ा और खींचते हुए उसे कुर्सी से उठाने लगा। परन्तु वह उससे हिला ही नहीं और ज्यादा ताकत लगाने से वह स्वयं नीचे गिर पड़ा । तभी इंस्पेक्टर ने ऑफिस में प्रवेश किया और सिपाही की तरफ देखते हुए बोला, ‘ इसे बैठा रहने दो !’




    इंस्पेक्टर अपनी कुर्सी पर बैठ गया। उसका हाथ अभी भी दर्द कर रहा था। वह उसकी तरफ गौर से देखने लगा। उसे वह आदमी एक अजीब सी पहेली लग रहा था। कुछ देर दोनो को बीच मौन छाया रहा। फिर मौन तोड़ते हुए इंस्पेक्टर बोला, ‘ अब बताओ, तुम कौन हो और क्या चाहते हो ? मैं तुम्हारे खिलाप कोई रिपोर्ट नहीं लिखूंगा, क्यांकि मैड़म ने फोनकर कहा है कि इस आदमी को छोड़ दिया जाय और इसके खिलाप कोई कार्यवाही नहीं की जाय।’

  ‘ परन्तु इंस्पेक्टर, मैं मैड़म को छोड़ने वाला नहीं हूं। मैड़म के साथ-साथ आपको भी नहीं, क्योंकि आप ही वह शख्स है, जिसने मैड़म से रिश्वत ले कर एक केस की झूठी रिपोर्ट बनाई है। “

   ‘ क्या मतलब है तुम्हारा ?’ इंस्पेक्टर उसकी बात सुनते ही तमतमा गया और कुर्सी से उठ कर लगभग चीखते हुए बोला।‘ मतलब साफ है इंस्पेक्टर-   अपराधी का साथ देने वाला भी अपराधी होता है….. चाहे वह सरकारी नौकरी में ही क्यों न हो।’

   प्रत्युत्तर में इंस्पेक्टर पुन: चीखते हुए बोला,  ‘अमर सिंह ! इस बदमाश को धक्के दे कर थाने से बाहर निकाल दो ! ‘ 




  दो सिपाही दौड़ कर आये और उसके नज़दीक पहुंचे, उसके पहले ही वह तमक कर खड़ा हो गया और टेबल पर जोर से घूंसा मारते हुए  इंस्पेक्टर के ही अंजाद में चीखता हुआ बोला, ‘  इंस्पेक्टर ! मुझे इस बात का जवाब चाहिये कि उद्योगपति मदन मल्होत्रा का मर्डर हुआ था या वह लापता है ?’

   उसके घूंसे से मजबूत टेबल टूट गई और उस पर रखी सारी फोईर्ले नीचे गिर गई। सिपाही जो उसको बाहर निकालने आये थे, पहले फर्श पर गिरी  फाईले उठाने लगे। इंस्पेक्टर आवाक हो कर उसे देखता रह गया। वह क्रोध से थर-थर कांपने लगा, पर कुछ बोल नहीं पाया। अगले ही पल उसे लगा, उसके पूरे शरीर में करन्ट दौड़ रहा है। वह दर्द से छटपटाता हुआ बोला, ‘ अरे मेरे बाप, आखिर तुम चाहते क्या हो ?’

     उसने फर्श पर पड़े हुए लेंड़ लाइन फोन को उठाया । एक नम्बर डायल किया और रिसिवर हाथ में ही पकड़े रहा। जब सामने से ‘ हलो ‘की आवाज़ आई तब उसने फिर सवाल पूछा, ‘ उद्योगपति मल्होत्रा लापता नहीं हुआ है, उसका मर्डर हुआ है। इंस्पेक्टर शर्मा, तुमने रिश्वत ले कर मामले को दबा दिया।……….बताओं, अपराधियों ने तुम्हें कितनी रिश्वत दी ? जब तक तुम बोलोगे नहीं,  तुम्हारे शरीर की ऐसी ही हालत रहेगी और तुम छटपटाते हुए दम तोड़ दोगे।….. सच उगल दो, अन्यथा तुम्हारी मौत निश्चित है। ….. तुम इसी थाने में मरोगे…… सब के सामने मरोगे।…….. साबित नहीं होगा कि तुम्हें किसने मारा और तुम कैसे मरे ?’  




    एक अजीब से घटनाक्रम के साक्षी थाने के कई कर्मचारी चारों ओर खड़े हो कर कौतुहल मिश्रित भाव से सारी स्थिति को समझने का प्रयास कर रहे थे।  सभी के सामने इंस्पेक्टर दर्द से कराहता हुआ बोला, ‘ हां, मल्हौत्रा का मर्ड़र हुआ था। …….मैंने ऊपर से आये आदेश पर  रिश्वत ले कर मामले को दबा दिया था।…..पर मैं सच कह रहा हूं, जो एक करोड़ रुपये मुझे रिश्वत में मिले थे, उसका नब्बे प्रतिशत भाग मैंने ऊपर बांटा है। ……….डीवाईएसपी से ले कर कमिश्नर तक मैंने धन पहुंचाया है।………अब मुझे बख्श दो मेरे माई बाप ……दर्द से मेरे प्राण निकल रहे हैं । “

    फोन किसी अखबार के दफ्तर में किया गया था, जो सम्भवत: टेप कर लिया गया था। ….. राम प्रकाश ने हाथ में पकड़े लेंड़ लाइन फोन को इंस्पेक्टर के मुहं पर दे मारा और तेज कदमों से चलता हुआ थाने से बाहर आ गया। थाने के सभी कर्मचारी सन्न रह गये। एक दुबला-पतला मरियल सा आदमी, जिसका हुलिया किसी भिखारी जैसा था, उन सभी के सामने एक विचित्र सा नाटक खेल कर चला गया और वे मूक दर्शक बने देखते रह गये।

     वह पुन: उसी बंगले पर आ गया, किन्तु गार्ड़ ने उसे रोकने का साहस नहीं किया। दरवाजा खोलते समय बाई ने कोई प्रश्न नहीं पूछा। वह भीतर प्रवेश कर गया और सीधा बेड़ रुम में दाखिल हुआ। पलंग पर सोई घर की मालकिन को उसने हाथ पकड़ कर उठा दिया और दरवाजे के बाहर का रास्ता दिखाते हुए बोला, ‘ आऊट !   फिर कभी इस कमरे में भूल कर भी घुसने की कोशिश मत करना……वैसे भी तुम्हें आगे पीछे जेल ही जाना है, इसलिए मैं तुम्हें घर से धक्के दे कर नहीं निकाल रहा हूं। “




     सुनते ही वह फफक पड़ी। उसकी आंखों से अविरल आंसुओं की धारा बहन लगी, पर जबान से  शब्द नहीं निकल पा रहे थे। उसके मन में कई सवाल उठ रहे थे, पर वह कुछ भी नहीं पूछ पाई । गर्दन झुकाये नि:शब्द कमरे से बाहर हो गई। अपनी बात कहें किसे ? उसने आनन्द के जाल में फंस कर गलती की। उसे रिश्वत दे कर जांच नहीं रुकवानी थी। यदि जांच होती तो यह तो मालूम हो जाता कि हत्या किसने की और क्यों की ? पति खोकर उसकी दौलत पाने की उसे कोई ख्वाहिश नहीं थी। अब इस मुसिबत से कैसे निपटे इसका  हल नहीं सोच पा रही थी। जिंदगी जीने की तलब ने उसे एक ऐसे मुकाम पर ला कर छोड़ा है, जिसके आगे घना अंधेरा है। रोशनी की  क्षीण किरण भी नहीं दिखाई दे रही है। वह बहुत ऊंचाई पर चढ़ कर इतरा रही थी, किन्तु अब ऊंचाई से धकेले जाने की कल्पना से ही सिहर उठी थी।

 रामप्रकाश आज एक शानदार बाथरुम में नहा रहा है। उसने जिंदगी में नहाने की ऐसी सुविधा पहले कभी नहीं देखी थी। मर जाता तो अब तक दूसरा जन्म हो जाता। तब भी शायद उसे ऐसी ​ज़िंदगी जीने को नहीं मिलती। यदि वह मर कर स्वर्ग में जाता, तब भी ऐसा सुख नहीं मिलता।  सेव करने के बाद जब उसने अपना चेहरा शीशे में देखा तो स्वयं चौंक गया। उसने अपने आप से कहा,  वाह, राम प्रकाश,  तेरे चेहरे से तो अब नूर टपकने लगा है। भूत महाशय ने तेरी जिंदगी ही नहीं, चेहरे की रंगत ही बदल दी है। अब रामप्रकाश वह गांव का मूर्ख, अज्ञानी, आलसी और निठल्ला रामप्रकाश नहीं रहा। उसके हाथों में इतनी ताकत है कि वह लोगों को उठा कर फेक सकता है। वह यदि किसी अखाड़े में कुश्ती लड़े तो बड़े से बड़े पहलवान को मिनटों में चित कर सकता है।….. पर भैया, सह सब भूत महाशय की कृपा है। जब वे तेरा शरीर छोड़ देंगे, तब तुम फिर वैसे ही गंवार रामसिंह बन जाओगे।

     उसने अपने फटिचर कपड़े बाथ रुम में ही पटक दिये। अलमारी मे उसके नाप के कपड़े तो नहीं थे, परन्तु उनमें से ही एक टी शर्ट और जींस निकाली और पहन ली। बालों को ढंग से कंघी करने के बाद वह कमरे से बाहर निकला तो उसका हुलिया देख नौकर एकदम चौक गये। उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि अनजान व्यक्ति इस मकान में किस अधिकार के साथ रह रहा है।




     वह खाने की मेज पर बैठ गया और नौकर से खाना परोसने के लिए कहा। नौकर कुछ समझ नहीं पाया। मालकिन के पास जा कर खड़ा हो गया और अजनबी के आदेश को मानने की अनुमति चाही। मालकिन ने स्वीकृति दे दी। बहुत दिनो बाद रामप्रकाश ने तृप्त हो कर खाना खाया। घटनाक्रम इतनी तेजी से घटित हो रहा था कि वह कुछ भी  समझ नहीं पा रहा था। भूख लग रही थी, पर खाना किससे मांगे और कैसे खायें, क्योंकि पेट भी तो खाली था। खैर, खाना खा कर वह उठा और फिर कमरे में आ गया। एक बात का उसे संतोष था कि प्रेतात्मा उसके बारें में भी सोचती है। देह किराये पर ले रखी है, परन्तु सांस चलती रहे, इसकी जिम्मेदारी भी ले रखी है। जबकि न हाथ पांव उसके बस में हैं और न ही दिमाग। जबान कब क्या बोल जाती है, उस पर भी उसका नियंत्रण नहीं रह गया। वह चुपचाप भीतर बैठा हुआ तमाशबीन दर्शक की तरह जो कुछ घटित हो रहा है, उसका मजा ले रहा था।

    कमरे में आ कर रामप्रकाश ने अल्मारी खोली और दस्तावेज देखने लगा। अचानक उसे कुछ याद आया। उसने अलमारी में रखा पर्स उठाया। पर्स नोटों से भरा था और उसमें क्रेडिट कार्ड़ रखे हुए थे। अलमारी में रखी चाबियां वो पहचान गया। उसने चाबियां जेब में डाली और कमरे से बाहर निकल गया। घर के नौकर और मालकिन उसे आश्चर्य चकित नज़रों से देखते रह गये। किसी को पहेली समझ नहीं आ रही थी कि आखिर यह आदमी है कौन और चाहता क्या है ?

    शॉपिंग मॉल में आ कर उसने अपने नाप के कपड़े और जूते खरीदे। फिर तेजी से कार चलाता हुआ ऑफिस बिल्डिंग में प्रवेश किया। गार्ड़ ने गेट खोल दिया और कोई. प्रश्न नहीं पूछा। रात हो गई थी। ऑफिस से कर्मचारी घर जा चुके थे। सिर्फ सिक्युरिटी के कर्मचारी ड्यूटी पर थे। ऑफिस बिल्डिंग के गेट पर तैनात कर्मचारी ने प्रश्नवाचक दृष्टि से उसे देखा, पर बिना.उत्तर दिये वह सिर्फ मुस्करा दिया। ऑफिस परिसर के भीतर आ गया। फिर लिफ्ट से चौथी मंजिल पर आ गया। ऑफिस केबिन की चाबी वह घर से ले कर आया था। उसने ताला खोला और ऑफिस के भीतर आ गया।




    ऑफिस वही था। कुर्सी वही थी, पर सुबह जो व्यक्ति इस कुर्सी पर बैठा था वह  अस्पताल में जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहा था। रामप्रकाश  इत्मीनान से उस कुर्सी पर बैठ गया। आंख बंद कर ली और गहरी सांस ले कुछ देर यूं ही सोचने लगा। आंखें खोली और उड़ती  दृष्टि पूरे ऑफिस पर डाली। कुछ देर बाद ऑफिस में रखी फाईले और दस्तावेज देखने लगा। उसे जिन पेपरस और फाईलों की जरुरत थी उन्हें ले कर पुन: नीचे आ गया।

     बंगले में कार प्रवेश करते ही उसने गार्ड़ को इशारे से अपने पास बुलाया और कार में रखा सारा सामान थमाते हुए ऊपर ले जाने का आदेश दिया। गार्ड़ ने अनमने भाव से उसका आदेश स्वीकार किया। कार गैरेज में रख वह गार्ड़ के आगे आगे चलने लगा। उसे दरवाजे की घंटी बजाने की आवश्यकता नहीं पड़ी। दरवाजा खुला हुआ था। घर के अंदर पूजा पाठ चल रहा था। वह दृश्य देख कर मुस्करा दिया और अपने कमरे में आ गया। गार्ड़ ने हाथ में पकड़ा हुआ सामान कमरे में रखा और बिना कुछ कहे गर्दन झुकाये चला गया।

     बंगले में मंत्रोचारण हो रहा था।  बीच- बीच में तांत्रिक जोर-जोर से अजीब तरह की आवाजे निकाल रहा था। अचानक तांत्रिक जोर से चिल्लाया –  ” प्रेतात्मा शीघ्र ही यहां आ कर अपना सिर पटकेगी। मैंने उसे वश में कर लिया है…………हो…ई….त ……’ यकायक उसकी आवाज मंद हो गई । वह जोर जोर से कांपने लगा। उसे लगा कोई उसके गाल पर जोर-जोर से तमाचे जड़ रहा है। वह उठा और रुआंसा हो कर बंगले से बाहर भागा। वह जाते जाते चिल्ला रहा था, ‘ बहुत ताकतवर जिन्न है…….मैं इसे बस में नहीं कर सकता……………’




     रामप्रकाश अपने साथ लाई. फाईलों और दस्तावेजों को देखने लगा। फिर लेपटॉप खोल कर देर तक कुछ देखता रहा। रात काफी बीत चुकी थी, किन्तु वह अपनी धुन में खोया हुआ था। यकायक कमरे में घर की मालकिन का प्रवेश हुआ। दरवाजे पर ही खड़ी  कुछ देर तक नज़ारा देखती रही, फिर आवेशित हो कर बोली, ‘  ओ, मिस्टर ! तुम किस अधिकार से यह सब कर रहे हो ? आखिर कौन हो तुम ? क्या चाहते हो हमसे ? ‘. उसकी आवाज़ लखखड़ा रही थी। वह नशे में द्युत थी।

    वह लेपटॉप की स्क्रीन पर आंखें गड़ाये बोला, ‘ आखिर मेरे सामने आने का साहस करने के लिए तुम्हें शराब पीनी पड़ी। ……लगता है अपने पति की मौत के बाद ज्यादा ही पीने लगी हो। ……. तुम शराब पति के गम में तो नहीं पीती………दौलत की खुमारी में पीती हो………पर आज तुम अपने पापों से डर कर पी कर आयी हो। ……… घर में तांत्रिक लाई थी, ताकि तुम्हारे पापों का भांड़ा नहीं फूट पाये, पर यह नामुमकिन है……सुबह जब तुम्हारी आंख खुलेगी, तब तुम बहुत बैचने हो जाओंगी…….अब जा कर सो जाओ ! शायद अब तुम्हें कभी सुख की नींद नसीब नहीं होंगी…..। ‘

‘ जब तक तुम मेरे सवालों के जवाब नहीं दोगे,  मैं नहीं सोऊंगी………..’

 ‘ ठीक है, मत सोओ -घर में जितनी बोतले रखी है, घटक जाओ। जेल में तुम्हें पीने को शराब भी नहीं मिलेगी………।”

 ‘ क्या मतलब है, तुम्हारा ? मैंने किसी का मर्डर किया है, जो जेल जाऊंगी ? “

     उसने लेपटॉप की स्क्रीन से आंखें हटाई और उसकी ओर देखते हुए बोला, ‘ यहां से चली जाओं, वरना मुझे धक्के दे कर तुम्हें बाहर करना पड़ेगा। ‘

     वह साहस कर आगे बढ़ी और उसका हाथ पकड़ कर बोली, ‘ बाहर निकलो मेरे धर से…….. वरना मैं…………..’

   ‘ तुम किस अधिकार से मुझे इस घर से बाहर निकाल रही हो ? क्या यह घर तुम्हारा है ? “

    ‘हां,  यह घर मेरा है। मेरे पति का है- मैं इस घर की मालकिन हूं ……..।’




     वह जोर से खिल खिला दिया। –   ” उस पति का जिसका तुमने खून करवा दिया………पत्नी जब पति को मरवा देती है, फिर उस पति की सम्पति पर  अधिकार नहीं रहता- समझी तुम……….!’ उसने लगभग डाटते हुए उससे कहा।

     सुनते ही वह आवाक रह गई। फिर हिम्मत जुटा कर बोली, ‘  तुम कैसे कह रहे हो, मैंने अपने पति का खून करावाया है……क्या प्रमाण है, तुम्हारे पास ? “

      प्रत्युत्तर में उसने उसके बाल कस कर पकड़े और सिर दीवार पर दे मारा…..। फिर चिल्ला कर बोला, ‘ मुझसे प्रमाण मांग रही है…..कुलटा ! बेहया !!…… भाग जा यहां से नहीं तो मैं तूझे उठा कर सड़क पर फेक दूंगा……. और कोई तुम्हें बचाने नहीं आयेगा। “

    उसके सिर से खून बहने लगा। वह फफक फफक कर रोती हुई कमरे से बाहर निकल गई। पैसे की सारी ताकत आज चकनाचूर हो गई। वह पुलिसबल लाकर इस आदमी को धक्के दे कर बाहर निकाल सकती है, पर नहीं निकाल पा रही है। यदि उस पर आरोप लगाये जाते हैं,तो महंगे से मंहगे वकील कर सकती है। यहां तक जजो को भी खरीद सकती है। परन्तु आज वह बेबस हो गई.। वह कुछ नहीं कह पा रही है। उसे लग रहा है, उसके द्वारा किये गये जघन्य अपराध से वह अब बच नहीं सकती। पैसे की ताकत से भी बड़ी होती है, ऊपर वाले की ताकत, जिसे आप खरीद नहीं सकते।  एक अदनासा आदमी उसके घर में घुस कर उस पर प्रहार कर रहा है। तीखे सवाल कर रहा है। उसके  जहर बुझे तीर झेल कर वह घायल पक्षी की तरह फड़-फड़ा रही है।

क्रमश:

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