प्रेतात्मका का प्रतिशोध (  भाग दो   ) – गणेश पुरोहित

रामप्रकाश को बैठे-बैठे ही बहुत गहरी नींद आ गई। जब उसकी आंख खुली तब सुबह हो गई थी। तकरीबन आठ-नो घंटे की भरपूर नींद के बाद उसे ताजगी महसूस हो रही थी। एक दिन पहले की रात को वह एक दु:स्वपन समझ कर भुलना चाहता था, परन्तु उस रात के घटनाक्रम की स्मृतियों ने उसके जेहन पर ऐसी अमीट छाप छोड़ी है, जिसे भुलाना उसके लिए असम्भव है। उसने अपनी तन्द्रा को एक  झटका दिया और आस-पास देखने लगा।  जो लोग उसके आस-पास बैठे थे, वे  शायद अपने-अपने गन्तव्य स्थानों पर उतर गये थे। अब दूसरे सहयात्रि बैठे थे, जिनके मन में उसके प्रति . कौतुहल नहीं था।

     टॉयलेट के आईर्ने में जब उसने अपना हुलिया देखा तो  वह स्वयं अपने आप पर शर्मिंदा हो गया। किसी गरीबी भिखारी जैसा लग रहा था वह। उसने मुंह धोया। बिखरे बालों को हाथ से संवारने की कोशिश की, परन्तु संतुष्टि नहीं मिली। एक नि:श्वास ले कर बाहर निकला। हां, संतुष्टि उसे इस बात पर थी कि वह जिंदा है। सांसे चल रही है। पिता का नालायक और आलसी बेटा घर से बहुत दूर जा चुका है। उसे तकलीफ इस बात की थी कि एक प्रेतात्मा उसके भीतर बैठी है, जो उसे एक अनजाने सफर की ओर धकेल रही है। अब तक उसका सफर बहुत रोमांचक रहा था, पर आगे क्या होगा, उस बारें में सोच कर वह चिंतित नहीं था, क्योंकि उसे अहसास हो रहा था कि आगे वाला घटनाक्रम भी रोमांच से भरपूर होगा और उसे खूब आनन्द आयेगा।

      किसी बहुत बड़े शहर के आने का आभास हो रहा था। जहां वह पहले नौकरी करता था, वह तो बहुत छोटा शहर था। उसके गांव के रेलवे स्टेशन से मात्र तीन घंटें का सफर पूरा कर पहुंचा जा सकता था। अब इतने बड़े शहर में वह कहां जायेगा और क्या करेगा, यह उसके लिए एक पहेली बन गई थी। जो शहर आया वह बम्बई था। रेलवे स्टेशन की भीड़ को देख उसकी आंखें चकरा गई। उसने अपने जीवन में इतनी विशाल भीड़ व अफरातफरी कभी नहीं देखी थी।




     स्टेशन पर गाड़ी जैसे ही रुकी रामप्रकाश तेजी से यात्रियों की भीड़ को चीर कर  प्लेटफार्म पर आ गया। तेज कदमों से वह ब्रिज पर चढ़ गया और लम्बा ब्रिज पार कर स्टेशन से बाहर आ गया। बाहर टेक्सियों और ऑटो का भारी जमावड़ा था।  वे सभी सवारियों के लिए लपक रहे थे, परन्तु उसकी ओर किसी ने नोटिस नहीं किया। वह उस तरफ बढ़ा जहां दूर एक टेक्सी खड़ी थी, जिसके ड्राइवर को सवारियों की गरज नहीं थी। ड्राइवर आगे का फाटक खुला छोड़ आंखें बंद किये गाने सुन रहा था। वह टेक्सी के पास आया। उसने ड्राइवर को उठाया और उसे पीछे की सीट पर पटक दिया। तेजी से कार का फाटक बंद किया और ड्राइवर  प्रतिरोध करे उसके पहले ही टेक्सी तेज रफ्तार से भीड़ को चीरती हुई सड़क पर भागने लगी।

    ड्राइवर इस असम्भावित घटना के लिए तैयार नहीं था। जब उसे माजरा समझ आया तब वह फुर्ती  से उठा और उसके पास सीट पर बैठ कर  चिल्लाते हुए  बोला, ‘ टेक्सी रोक नहीं तो पुलिस को फोन करता हूं। रामप्रकाश ने गाड़ी रोकी। उसे फिर उठाया और पीछे की सीट पर पटक दिया। उसने हड़बड़ाहट में मोबाइल से एक फोन लगाया और हांपते हुए बोला, ‘ मेरी टेक्सी लेकर एक चोर भाग रहा है……. उधर से आवाज ‘ आई, तुम कहां  हो ?’ …….. ‘मैं अंदर ही हूं यार !..’……जवाब सुन कर सामने वाला खिलखिला  दिया। ……. ‘ वाह! क्या मजेदार बात है। जनाब अगरबती लगा कर सुबह सुबह भजन सुन रहे थे और चोर उनकी टेक्सी ले कर भाग रहा है …….अबे,  मूरख ! मुझे फोन लगाने के बजाय पुलिस को फोन लगा, टेक्सी का डिटेल दें और उसे अपनी लोकेशन की जानकारी दें, ताकि पुलिस उसको रोक सके। ’




      वह  काल डिटेल में नम्बर ढूंढने लगा। पुलिस का नम्बर लगते ही एक दो घंटी गई और बेटरी खत्म हो गई।   ‘..धत! बेटरी को अभी खत्म होना था।……..गाड़ी धीरे चला मेरे बाप !  गाडी की पूरी किश्ते भी नहीं चुका पाया हूं। ……..ऐ ! एक बात बता, कहीं तू मेरा किडनेप तो नहीं कर रहा है……… यदि ऐसा कर रहा है तो अपना इरादा बदल दें, क्योंकि मेरे परिवार के पास सम्पति के नाम पर यह गाड़ी ही है, वह भी बैंक में गिरवी पड़ी है।….सच कह रहा हूं, इसके अलावा मेरी कोई सम्पति नहीं है। ‘ वह थोड़ी देर चुप रहा फिर धीमे से बुदबुदाया, पता नहीं सुबह सुबह किस मनहूस का मुंह देखा, जो आज ऐसा दिन देखना पड़ रहा है।

      टेक्सी किसी कम्पनी के ऑफिस के गेट के बाहर रुकी। रामप्रकाश फाटक खोल नीचे उतरा और तेजी से लगभग दौड़ता हुआ गेट के अंदर दाखिल हो गया। उसकी चपलता किसी कमांड़ो की तरह थी।  टेक्सी ड्राइवर  लपक कर अपनी सीट पर  आ गया और स्टेरिंग हाथ में लेते ही तेजी से गाड़ी को पीछे घुमा दिया। आफत टल गई, भगवान ! अब जल्दी से यहां से भागता हूं। पता नहीं, वह फटिचर कौन था ? दुबला-पतला मरियल, पर उसकी ताकत…. ?    स्सालें ने सौ किलो वजन के आदमी को ऐसे उठा कर पटक दिया जैसे कोई कागज का पुतला हों।

     सिक्युरिटीगार्ड़  को यह नज़ारा अजीब सा लगा। वह  जोर से  चिल्लाया, ‘अबे, ओ, कहां घुसा जा रहा है ? ‘  कहता हुआ वह उसके पीछे भागा, किन्तु रामप्रकाश लगभग दौड़ता हुआ अगले शीशे के फाटक को खोल ऑफिस के भीतर दाखिल हो गया। सिक्युरिटीगार्ड़ ने दूसरे गेट पर खड़े सिक्युरिटीगार्ड़ की ओर देखता हुआ बोला, ‘अरे, इस मवाली को रोको, यह जबरन अंदर घुस रहा है !’




     शीशे के गेट के अंदर खड़े हुए सिक्युरिटीगार्ड़ ने अपना हाथ आगे कर उसे रोकने की कोशिश की, परन्तु उसने पलट कर गार्ड़. का नाक पकड़ कर इतनी तेजी से दबाया कि दर्द से छटपटाता हुआ वह नीचे बैठ गया। उसकी हरकत से रिशेप्सनिस्ट खड़ी हो गई। उसने इंटरकोम पर किसी को घटना की सूचना दी, तब तक रामप्रकाश लिफ्ट के अंदर जा चुका था। उसने चोथी मंजिल पर पहुंचने का बटन दबा दिया।

     लिफ्ट से बाहर आते ही रामप्रकाश सामने वाली केबिन का गेट खोल अंदर चला गया। यह किसी बड़े आदमी का शानदार ऑफिस था। वह व्यक्ति लेपटॉप की स्क्रीन पर आंखें गड़ाये हुए था।  उसे अपने ऑफिस में बिना अनुमति के किसी के घुस आने का आभास नहीं था। परन्तु जब उसकी निगाहे सामने खड़े एक भिखारी जैसे युवक पर पड़ी तो वह लगभग चीखते हुए बोला , ‘ कौन हो तुम ?….. इस तरह मेरे ऑफिस में क्यों घुस आये ?……. गेट आऊट ! ‘

    रामप्रकाश पर उसकी डाट का कोई असर नहीं हुआ। उसने जैसे ही इंटरकोम उठाया रामप्रकाश ने उसके हाथ से छीन लिया और उसे जोर से फर्श पर पटक दिया। उसके गाल पर कस कर एक तमाचा जड़ दिया।

     उसे एक फटिचर आदमी से ऐसी उम्मीद नहीं थी। उसने चीखते हुए कहा, ‘यह क्या गुंडागर्दी है !….. मैं तुम्हें अभी पुलिस के हवाले करता हूं। ‘ कह कर वह क्रोध से फुंफकारता हुआ उठा, पर रामप्रकाश ने उसके कंधे पर हाथ रख कर उसे  फिर कुर्सी पर बिठा दिया। उसके हाथों में बहुत ताकत थी। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है।




     ‘ तुम जानना चाहते हो कि मैं कौन हूं, तो देखो,’……..कह कर उसने अपनी आंखें उसके चेहरे पर गड़ा दी। जैसे ही रामप्रकाश की आंखों में उसने उभरी तस्वीर को देखा, उसके पांवों के नीचे से जमीन खिसक गई। उसका सर अचानक चकराने लगा। उसके मुहं से अनायास ही निकल गया, ‘ओह, गॉड !….. इटस नॉट पासिबल ! ” उसे घबराहट होने लगी। माथे पर यकायक पसीने की बुंदे तेरने लगी। उसने टेबल पर रखा हुआ गिलास उठा, पानी पीना चाहा, परन्तु रामप्रकाश ने पानी का गिलास उसके हाथ से छीन कर फर्श पर पटक दिया। बैचेनी से वह आंख बंद किये कुर्सी पर ही एक ओर लुढ़क गया।

     रामप्रकाश ने अलमारी खोली। फाईल  ढूंढ़ी। लेपटॉप ढूंढ़ा। दो फाइले, लेपटॉप और टेबल पर रखी कार की चाबियां उठाई और केबिन से बाहर हो गया। केबिन के बाहर भीड़ खड़ी थी। एक आध लोग केबिन के अंदर घुस गये और बाहर खड़े लोगों ने उसे पकड़ कर उसे सिकयुरिटी गार्ड़ के हवाले कर दिया। उसने अपने हाथ को हल्का सा झटक दिया, जिससे गार्ड़ लड़खड़ा कर  फर्श पर गिर पड़ा। तभी एक व्यक्ति केबिन से तेजी से बाहर निकला और लगभग चिल्लाते हुए बोला, ‘ एम्बुलेंश बुलाओ, आनन्द साहब बैसुध हो गये हैं !’

     रामप्रकाश लगभग दौड़ता हुआ बगल की सी​िढ़या उतर गया। केबिन के बाहर खड़े लोग लिफ्ट से नीचे पहुंचते उसके पहले ही वह विजिटर्स हॉल में आ गया। नीचे का माजरा भी कुछ वैसा ही था। कई सारे लोग अपने-अपने कार्यालय से बाहर आ कर वहां एकत्रित हो गये थे। पुलिस को बुला लिया गया था। उसने अपनी आंखें बंद की और  हॉल में रखे हुए एक सोफे पर इत्मीनाना से बैठ गया। उसके चेहर पर तनाव नहीं था, शांति थी।

     पुलिस इंस्पेक्टर ने कांस्टेबल को आदेश दिया, ‘ पकड़ कर लाओ इस मरदूद को। ‘ एक कांस्टेबल ने उसका हाथ पकड़ा। झटके से उसका हाथ छूट गया और हाथ में झन्न-झन्नाहट होने लगी। वह लगभग रुआंसा हो कर बोला, ‘ सर ! इस आदमी के शरीर में करंट है !’




     ‘अरे, बेवकूफ ! किसने तुम्हें पुलिस में भर्ती कर दिया। इसके शरीर का करंट में अभी बाहर निकालता हूं। ’ यह कहते हुए रामप्रकाश को थप्पड़ मारने के लिए उसने जैसे ही हाथ उठाया, पर उसका हाथ हवा में ही कांपने लगा। उसने अपने हाथ को झटके से ठीक करने की कोशिश की पर यह क्या- हाथ न नीचे हो रहा था और न ऊपर उठ रहा था, वह  बीच में ही झन्नझन्ना रहा था। इंस्पेक्टर को कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसे लग रहा था, ऐसे ही झन्न-झन्नाता हुआ उसका हाथ टूट कर अलग हो जायेगा। नहीं…नहीं, ऐसा नहीं होगा। वह स्वत: ही बुदबुदाया और दूसरे हाथ से उस हाथ को नीचे करने की कोशिश करने लगा, पर वह अपनी कोशिश में असफल रहा।

      लिफ्ट से सीईओ आनन्द को लाया गया था। उनके आस-पास भीड़ एकत्रित हो गई थी। स्ट्रेचर के साथ-साथ चल रहे डाक्टर से कोई पूछ रहा था, ‘आनन्द साहब को कोई गम्भीर चोट तो नहीं लगी ?’

    ‘ नहीं ।’ डाक्टर ने प्रश्न पूछने वाले की ओर मुखातिब हो कर जवाब दिया, ‘ इन्हें हार्ट अटैक हुआ है। शरीर पर किसी तरह के  चोट के निशान नहीं हैं।’

       एम्बुलेस के स्टार्ट  हो कर फाटक से बाहर निकलने के बाद रामप्रकाश उठा। उसने चारों ओर निगाह दौड़ाई- सभी उसी की ओर देख कर गुर्रा रहे थे। उसके चेहर पर  तनाव नहीं था। भय नहीं था। क्रोध और उतेजना  नहीं थी।  उसका चेहरा पूरी तरह शांत था। वह निगाहे नीची किये, धीमे कदमों से चलता हुआ ऑफिस की फाटक से बाहर हो गया।




      तभी एक व्यक्ति लगभग चिल्लात हुए बोला, ‘ इंस्पेक्टर साहब इसे पकड़िये  …… यह आदमी आनन्द सर के साथ मारपीट कर उनके ऑफिस से जरुरी फाइले और लेपटॉप ले कर जा रहा है। हम इस आदमी के खिलाप  एफआईआर………..’

  इंस्पेक्टर ने उसकी बात बीच में ही काटी और दर्द से छटपटाते हुए बोला, ‘ भाड़ में जाये आपकी कम्पनी और आपकी एफआईआर…….मेरा हाथ खराब हो गया, उसकी आपको कोई. चिंता ही नही। मुझे पेरेलेसिस हो गया, उसकी आपको परवाह ही नहीं।  उधर देखों मेरा सिपाही भी अपने हाथ को ले कर बैठा- बैठा रो रहा है।………’राम सिंह !’ उसने अन्य सिपाही, जो रामप्रकाश के नज़दीक नहीं गया था, उसे पुकारते हुए लगभग चीखते हुए बोला, ‘अरे, मेरा हाथ नीचे कर भाई. !’

     कांस्टेबल राम सिंह ने अपनी पूरी ताकत से साहब का हाथ नीचे करने में लगा दी। हाथ तो नीचे हो गया पर झन्न झन्नाहट अब भी हो रही थी। इंसपेक्टर ने अपने दोनो सहायकों को साथ चलने के लिए कहा और स्वयं बुदबुदाने लगा, ‘पुलिस इंसानों के खिलाप एफआईआर दर्ज कर कार्यवाही करती है, भूतों के खिलाप नहीं। …….वह आदमी थोड़े ही था…….. कोई. भूत था, जो किसी रंजिश की वजह से आप लोगों के ऑफिस में घुस आया था।     रामप्रकाश कार ड्राइव कर ऑफिस के गेट से बाहर निकल गया। सभी उसकी ओर देखते रहे, पर किसी ने रोकने की कोशिश नहीं की। उसके बाहर निकलते ही एक सन्नाटा छा गया। कोई. कुछ नहीं बोल पाया। किसी को माजरा समझ नहीं आया। सचमुच अचंभित करने वाला घटनाक्रम था, जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। थोड़ी देर में भीड़ वहां से हट गई.। सभी अपने अपने ऑफिस में जा कर बैठ गये। मैड़म आज ऑफिस नहीं आई. थी। आनन्द सर की हालत का भी उसे पता नहीं था। पर कोई. हिम्मत कर मैड़म को सूचना नहीं दे पाया। दरअसल सभी के मन में घटनाक्रम को देखते हुए एक अजीब सा भय समा गया था।

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