प्रायश्चित – सीमा सिंघी : Moral Stories in Hindi

 आज सिया मेरे पीछे पड़ गई कहने लगी ! दादी हम होटल जा रहे हैं ! मम्मी पापा भी जा रहे हैं! आप भी चलो!

 मैं तुरंत सिया से बोल उठी! नहीं बिटिया अब इस उम्र में होटल कहां जाऊंगी ?तुम लोग बाहर खा कर आओ ! मैं अपने लिए घर पर ही कुछ बना लूंगी कहकर मैं अपने कमरे में जाने लगी!

  सिया कहां मानने वाली थी ! वह फिर कहने लगी ! दादी होटल में सब कुछ मिलता है ! आपको सादा खाना है तो वह भी मिलेगा ! आपका जो मन करे! वही ऑर्डर करना  मगर आज आपको हमारे साथ चलना ही होगा ! यह सब मुझसे कह ही रही थी अचानक मेरा बेटा समीर आ गया! 

 सिया फिर अपने पापा से कहने लगी ! पापा दादी होटल नहीं जा रही है!  इसका मतलब यही हुआ ! जब आप और मम्मी बूढ़े हो जाएंगे तो आप भी होटल नहीं जाओगे !आप और मम्मी घर पर ही  बनाकर खाएंगे !

 तब मुझे अकेले ही जाना होगा होटल? ऐसा क्यों होता है पापा ? जब मम्मी पापा बूढ़े हो जाते हैं ! उनके के लिए घुमना बाहर होटल में जाना क्यों बंद हो जाता  है ! 

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उनका भी तो मन करता होगा ना पापा! सोचिए पापा जब आप बूढ़े हो जाएंगे तो क्या आपका मन नहीं करेगा?? मेरे साथ जाने का?

 समीर से कुछ कहते नहीं बना । वो मन ही मन सोचने लगा। सिया ठीक ही तो कह रही है। जब से पापा इस दुनिया से चले गए हैं । मां ने लगभग बाहर जाना बंद सा कर दिया है।

 मैं सुनीति को गलत क्यों ठहराऊं । मेरी तो मां है, मुझे ही सोचना चाहिए था मगर क्यों मैं नहीं सोच पाया। 

जबकि वह तो बचपन में मेरे बिन कहे मेरी पसंद ना पसंद का ख्याल रखती आई है। हर इतवार के दिन मुझे पिताजी के साथ कभी भी पार्क ले जाना नहीं भूलती थी। 

आज जब मुझे मां को ले जाना चाहिए था तो मैं अपनी जिम्मेदारी भूल ही गया । समीर अपनी मां को कभी भी साथ ना ले जाने का प्रायश्चित करते हुए वह फिर प्यार से सिया से बोल उठा ! हां बिटिया चाहे हम जिस उम्र में भी हो ! तुम्हारे साथ समय बिताने का घूमने का हरदम मन रहेगा! मैं समझ गया हूं दादी का भी मेरे साथ वैसे ही मन करता होगा 

मगर दादी ने कभी कहा नहीं! मेरी भूल है ये ! मैंने ही दादी से कभी होटल या बाहर घूमने हमारे साथ जाने को नहीं कहा! 

 ये सच है सिया घर पर रह रहे बुजुर्गों के सिमटते हुए दायरे के लिए जिम्मेदार खुद हम हैं  ! जैसे ही वह थोड़े वृद्ध होने लगते हैं !हम उन्हें एक दायरे में बांधने लगते हैं  ! 

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वो भी ना चाहते हुए भी लाचार होकर बंधते जाते है मगर अब और नहीं आज के बाद हम जहां भी जाएंगे! दादी भी हमारे साथ जाएगी!

 अचानक सुनीति ने भी  कमरे में प्रवेश करते हुए कहा ! हां मां मुझे भी आप क्षमा कर दीजिए ! मैंने कभी गौर  ही नहीं किया !आप की भी इच्छा तो रही होगी! 

चलिए फटाफट तैयार हो जाइए !आप गुलाबी सिल्क वाली साड़ी पहनना ! वह आपके ऊपर  बहुत जचती है ! कुछ देर बाद ही हम सब तैयार होकर होटल के लिए निकल पड़े !

आज मेरा मन बहुत खुश था ! चलो  मेरे जैसी वृद्ध को अब सिमटकर नहीं रहना पड़ेगा !

 मुझे लगा आज मैं आसमान में उड़ने लगी हूं क्योंकि उड़ने को बच्चों के पंख जो मिल गए थे!

समीर भी अपनी मां के सुकून भरे चेहरे को देखकर बहुत खुश था और हो भी क्यों ना ?? आज उसका खुद का अनजाना मन  प्रायश्चित के सफर पर चल जो पड़ा  था । 

 

 

स्वरचित 

सीमा सिंघी  

गोलाघाट असम

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