प्रायश्चित- पूनम सारस्वत : Moral Stories in Hindi

जेल( लॉकअप )की अंधेरी कोठरी में बैठकर आंसू बहाने के सिवाय उसके पास कोई चारा भी नहीं था । ये आंसू पश्चाताप के थे या अपने अपमान के? वह खुद भी यह नहीं समझ पा रहा था। रह-रह कर दांत भिंच जाते और अपनी बेबसी पर अपनी ही मुठ्ठी को दीवार में मार देता।

वह कोस रहा था उस पल को जब उसने पहली बार उस लड़की को देखकर सीटी बजाई थी । उसे लगा था कि यहां किराए के मकान पर रहती है तो कौन सा इसका कोई समर्थक या बचाने वाला बैठा होगा?

उसकी इस धारणा के पीछे उसकी मां और मोहल्ले की आंटियों के आपसी वार्तालाप के वो अंश भी थे जो चलते फिरते उसके कानों में अक्सर पड़ते रहते थे।

अरे छिनाल है वो तो ,कौन सा वो उसका पति है ,झूठ बोलती है ,कहीं पति के रहते कोई औरत यूं आवारा सड़कों पर घूमती है?? कोई एक महिला कहती।

हां और क्या देखो तो कैसे कपड़े पहनती है,न किसी से  नमस्कार न दुआ सलाम न किसी से घुलना-मिलना। 

अरे घर गृहस्थी का वो क्या जाने ? न जाने कहां से आईं है? ये मयंक की मां का स्वर होता।

अरे नौकरी करती है तो क्या मोहल्ले में रहना है तो ढंग से रहो । हफ्ते हफ्ते भर इसका वो पति नुमा प्राणी पता नहीं कहां गायब हो जाता है?

ये किसी और का स्वर होता।

दूसरी कहती, अरे गायब कहां होगा, कहीं बीबी बच्चे रख छोड़े होंगे उनके ही पास जाता होगा।

 

ये अंतहीन कहानियां इन मोहल्ले की आंटियों के पास थी उसके बारे में । ये अलग बात है कि वह कहां जॉब करती है, नाम क्या है, कहां की रहने वाली है? किसी को भी नहीं पता था । 

पता हो भी नहीं सकता था क्योंकि वह सुबह निकलती और शाम को वापस आती। बस रात के समय जब वो टहलती तब ही दिखाई देती।

दरअसल वो जो जिस मकान में रहती थी उसके मालिक भी कभी यहां आकर नहीं रहे तो उन्हें यह भी नहीं पता था कि मकान किनका है और उन्होंने किराएदार कौन रख छोड़ा है ?

 इसलिए बस ऐसी मनगढ़ंत कहानियां ही मोहल्ले वालों के मनोरंजन का साधन थीं और इसलिए ही आवारा किस्म का मयंक समझने लगा था कि वह अगर उस पर फिकरेबाजी करेगा तो कोई रोकने टोकने वाला नहीं है।

पर अब जब गैर जमानती केस में फंसकर यहां हवालात में बंद है और किसी भी तरह से जमानत नहीं मिल रही है तो उसे समझ आ रहा है कि बाप के दम पर उसने गलत बिल में हाथ डाल दिया जो निकाले न निकल रहा है।

जब मयंक ने उसे देखकर सीटी बजाई तो वो वहीं खड़ी हो गई यह सुनिश्चित करने के लिए कि टारगेट वही है या नहीं?

और जैसे ही यह निश्चित हो गया कि टारगेट वह है,बोली हां ,भाई क्या समस्या है तेरी बता?

मयंक को तो सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि वह यूं रुककर पूछ लेगी। 

लेकिन अब क्या करे? तो हेकड़ी दिखाने के लिए कहने लगा यहां पर कुत्तों को खिलाना मना है।

अच्छा ,पर यहां कौन कुत्तों को खिला रहा है और फिर यह बात सीटी बजाकर बताओगे तुम?

उसने कड़क आवाज में पूछा।

अरे तो क्या हो गया?

क्या हो गया ? आइंदा ध्यान रखना नहीं तो जो होगा न वह तुम सोच भी नहीं पाओगे।

और वह आगे बढ़ गई।

तुम भी ध्यान रखना यहां कुत्तों को खाना डाला तो मैं क्या कर सकता हूं ये तुम भी नहीं जानतीं। उसने गीदड़ भभकी दी।

और ये बहस इतनी बढ़ गई कि अगले दिन परिणामस्वरूप वहां पर लाठी-डंडे चल गए । वो भी इसलिए कि मयंक और उसके परिवार वाले जिस परिवेश से आते थे वहां ये सब होना आम बात थी। उनके लिए डंडेबाजी करना यूं ही टाइमपास रहा है।

उस रात मयंक ने ये सारा किस्सा नमक मिर्च लगाकर घर जाकर सुनाया और माता पिता ने उसकी गलती पर ध्यान न देकर उस महिला के बहस करने को केंद्र बनाया।

 दरअसल आंखों में तो उनके भी खटकती थी वो।

उस दिन वो तो बस दो लोग थे जबकि मयंक का सारा परिवार ही साथ था तो लड़की के पति को हाथ पैर और सिर में अत्यधिक चोट आने के कारण आईसीयू में भर्ती कराना पड़ा।

अगले दिन “डॉ नीता वशिष्ठ, लेखा विभाग,के पति पर हुआ जानलेवा हमला” की खबर अखबार के मुख्य पृष्ठ पर छपी थी ‌।

घर के आगे गाड़ियों का रेला था ।

वह न केवल स्वयं एक बड़ी अधिकारी बल्कि उत्तर रेलवे के जोनल मैनेजर की बेटी थी ।अब जाकर मोहल्ले वालों को उसकी हैसियत और पोजीशन का पता चला था।

 लेकिन अब तो वह हो चुका था जो नहीं होना चाहिए।

उसके पति का अपना पुश्तैनी कारोबार मेरठ में था इसलिए ही वह गुरुवार आते और शुक्रवार चले जाते थे कभी-कभी नहीं भी आते थे । जिसका अर्थ मोहल्ले वालों ने लगाया कि वह पति नहीं मित्र हैं।और उन्हीं गॉसिप्स का नतीजा था कि मयंक ने सोचा क्यूं न वह भी बहती गंगा में डुबकी लगा ले?

जब मुकदमा हुआ तो इतनी धाराएं लगीं कि जमानत मिलना नामुमकिन हो गया। घर की महिलाएं और बुजुर्ग तो फिर भी जमानत पर घर आ गए लेकिन मयंक और उसके पिता को एड़ी चोटी का जोर लगा लेने के बावजूद दो दिन से जमानत नहीं मिली है और एसी में चौबीस घंटे रहने वाले इन दोनों का हाल बेहाल है । अब मयंक पछता रहा है कि यह सब न किया होता तो क्यों इस झमेले में फंसता? ऊपर से मोहल्ले भर में जो झूठ-मूठ का रौब दिखाते रहते थे बाप बेटे उसकी भी हवा निकल गई ।

किसी ने ठीक ही कहा है विनाश काले विपरीत बुद्धि।

अब जाकर मयंक और उसके घरवालों को समझ आया कि जानबूझकर किए गए अपराध की केवल सजा मिलती है, इसे कोई भी प्रायश्चित कम नहीं कर सकता।

 

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