प्रतिघात – रवीन्द्र कान्त त्यागी : Moral Stories in Hindi

इन्सपैक्टर चतुर सिंह की खटारा सी धूँआ छोड़ती मोटरसाइकिल थाना परिसर में आकर रुकी तो एक हवलदार बालकराम भागा हुआ बाहर आया और बेताबी से चिल्लाया “साब जी, रेप हो गया कस्बे में।”

“अच्छा” उन्होने बेहद ठंडे स्वर में कहा और बरामदे में पड़ी कुर्सी पर थके से बैठ गए। सामने मेज पर रखे पानी के ग्लास से दो घूंट पानी पिया और कुर्सी के हत्थे पर पड़े मैले से तौलिये से माथे का पसीना पौंछने लगे।

“साब जी, साब जी पता है। वो लगड़ी सी लड़की है न। भड़बूजे की है जाने धींवर की। डंडा लेकर चलती हैं।”

“अरे कौन सी लंगड़ी लड़की। मुझे यहाँ आए तीन महीने हुए हैं और तू ऐसे बता रहा है जैसे मैंने सारे कस्बे की फोटो वाली लिस्ट बना रखी है। अच्छा बता एफआईआर दर्ज तो नहीं हुई अभी। थाने का रिकॉर्ड खराब हो जाता है।”

“जी वो प्राइमरी स्कूल का मास्टर आया था लंगड़ी की बुढ़िया के साथ। बड़ा चपड़ चपड़ कर रहा था साब। चिल्ला रहा था “अभी रपट करो। नाम दर्ज है तो लिखोगे कैसे नहीं।” सब साले लीडर बने घूमते हैं। मेरे दादाजी बताते थे कि अंग्रेजों के जमाने में एक हवलदार गाँव में आ जाए तो लोग घरों में छुप जाते थे। आज पुलिस की कोई इज्जत ही नहीं है साब। जिसे देखो सर पर चढ़ा जाता है।”

“नाम दर्ज तहरीर है? कौन ससुरा कुत्ते का पिल्ला है। साले हारामी अपाहिजों को भी नहीं छोड़ते।”

“अजी वो छीपी टोले का हरदेऊ का लौंडा है न रमेसर। बड़ा लुचचा टाइप का इंसान है जी। पहले शहर में नौकरी करता था मगर इन टुच्ची हरकतों के कारण नौकरी जाती रही तो नेता हो गया है। उसी के नाम तहरीर है।”

“सर, पहले भी इसके नाम एक 376 का मामला चल चुका है। गढ़ी के प्रधान मलखान सिंह के खेतिहर मजदूर की लड़की के साथ बलात्कार का मामला था। तब एविडेंस और गवाही के बिना छूट गया था।” डैस्क पर तहरीर लिखने वाले उम्रदराज मुंशी जी ने कहा।

“अच्छा ये वो साहब हैं। वो मामला तो बड़ा चर्चित हो गया था मीडिया में। कुत्ते की औलाद को चस्का लगा गया है। साले खुद तो चैन से रहेंगे नहीं। हमें भी आराम से नौकरी नहीं करने देंगे। देखा नहीं आजकल मीडिया कैसे बात का बतंगड़ बना देती है। एकबार मीडिया स्कूप बना कि गया थाना हाथ से। वैसे भी इस सरकार में थानेदार की पोस्ट आराम से मिलती है क्या।”

“खबर तो ये भी है दरोगा जी कि अब वो पहले वाला रमेसर नहीं रहा। जब से बलराम सिंह विधायक बने हैं, उन्ही के पीछे लगा रहता है। युवा नेता रामेश्वर प्रसाद बन गया है।”

“अरे बालकराम जी, जरा चाय बोल दो यार। बड़ा सर दर्द हो रहा है। साले दुनिया भर के ऐब करेंगे और खद्दर के कुर्ते में जा छुपेंगे।”

“हाँ जी… वो हमारे गाँव में कहते हैं ना कि बदमाश दो ही जगह मिलते हैं। खद्दर में और नदी के खादर में।”

“धीरे बोलो हवलदार साब। किसी नेता ने सुन लिया तो यहाँ से सीधे बलिया ट्रांसफर करा देगा। अच्छा… बुढिया की तहरीर अभी जीडी में दर्ज तो नहीं की।” दरोगा जी ने कुर्सी से पीठ सीधी करते हुए कहा।

“क्या बात करते हैं साब। आप से पूछे बिना… पर बुढिया के साथ आया मास्टर कप्तान के पास जाने की धमकी दे रहा था।” बलकाराम ने कहा मगर दरोगा जी की आँखें बंद थीं। वे शायद थकान के मारे झपकी लेने लगे थे।

शाम का धुंधलका छाने लगा था। थाने के बाहर लगे बिजली के पीले से बल्ब पर भुनगे मंडरा रहे थे। दरोगा चतुर सिंह थाने के खुले प्रांगण में कुर्सी डालकर धीरे धीरे कुछ सोचते से सिगरेट में कश लगा रहे थे।

चतुर सिंह लगभग पैंतालीस की वय के पक्के रंग, गठीले बदन और सामान्य कद काठी के वैसे ही पुलिसिए थे जैसे होते हैं।

छात्र जीवन से ही उनकी इच्छा अपने पिताजी की तरह शिक्षक बनने की थी मगर नौकरी की तलाश में धक्के खाते खाते इत्तेफाक से पुलिस में आ गए थे। शुरू में बड़े सिद्धान्त और ईमानदारी की बात करते और रिश्वत नहीं लेने और ऊपर नहीं देने के कारण नौकरी को सजा की तरह काटते रहे। जब उनके पूर्व खुर्रान्ट किस्म के पूर्व पुलिस अधिकारी स्वसुर जी बेटी दामाद से मिलने आते तो परेशान होकर ही लौटते थे।

कैसा निकम्मा दामाद ढूंडा है। पुलिस में दरोगा होकर भी मुफ़लिसी की जिंदगी जी रहा है नामाकूल। इस से बेहतर तो वो विजली विभाग में जे ई छोटा दामाद है। चंद दिनों की नौकरी में ही अपना मकान बना डाला। हजार बार समझाया कि कैसे किसी शरीफ आदमी को हवालात का डर दिखाकर उसके घर के गहने तक बिकवाए जा सकते हैं।

बदमाशों को एंकाउंटर का डर रात के कितने बजे दिखाया जाता है। मगर समझता ही नहीं। ये शुरू की बातें थीं किन्तु कुछ बरसों की पुलिस की नौकरी ने उन्हे सीखा दिया था कि धारा के विपरीत तैरना आसान नहीं है।

ऐसा काम क्यूँ करो जिस से न साहब खुश न बीवी खुश। सो उन्होने बीच का रास्ता चुन लिया था। नेताजी आ जाएँ तो “जी हुजूर”। दलाली पर उतर आयें तो बाँट कर खा लो और “बौस इज़ ओलवेज राइट” के सिद्धान्त पर चलकर नौकरी की सीढ़ियाँ चढ़ते रहो।

सिद्धांतों से समझौता कर तो लिया मगर अंतरात्मा को मारना इतना आसान भी नहीं होता। जब कभी भीतर का लावा फूटकर बाहर निकलता तो मितली सी आने लगती और खुद से घृणा होने लगती।

तब उनका मन करता कि अब कोई पत्रकार दस हजार रूपल्ली का कैमरा बगल में दबाकर ब्लैकमेल करने आए तो उसे दो डंडे मारकर भगा दें। कोई नेता किसी गुंडे मवाली या बलात्कारी की सिफ़ारिश करे तो उसके सर पर ईंट दे मारें। जब बेबसी में बहुत घुटन होने लगती तो चुपचाप घर चले जाते और दो पैग मार कर बंद कमरे में नेताओं और अफसरों को जी भरकर गालियां देते। 

तभी धुंधले से अंधेरे में एक परछायीं सी थाने के गेट पर दिखाई दी। एक कमर मुड़ने से दोहरी सी हो गई कृशकाय बुढ़िया टेढ़ी मेढ़ी सी लकड़ी का सहारा लिए धीरे धीरे अंदर आती दिख रही थी।

दरोगा जी ने सिगरेट का एक लंबा कश लिया और निगाह उठाकर बुढ़ापे की मार से विकृत सी हो गई बुढ़िया की ओर देखने लगे। बुढ़िया एकदम निकट आ गई। उसने आँखें झपकाकर क्षीण होती निगाहों से पुलिस के दरोगा को पहचानने का प्रयास किया और एकदम चतुर सिंह के दूसरी कुर्सी पर फैले पाँवों पर गिर पड़ी।

“बचा लीजिये मालिक। इस बुढ़िया को अपनी माँ समझकर बचा लो बेटा। मेरी अपाहिज पोती की इज्जत लूट ली। वो हस्पताल में पड़ी तड़प रही है। ऊपर से धमकी देकर गए हैं कि अगर पुलिस के पापस गई तो दोनों माँ बेटियों को नंगी करके गाँव में घुमाएंगे। हम दादी पोती किसी नदी नाले में डूब मरेंगे। हमें न करानी रपट सपट। मेरा पारचा उल्टा दे दो सरकार।

बहुतेरा समझाया मास्टर को। हम गरीब तो ऐसे ही लुटते पिटते रहते हैं। रपट से क्या मेरी बेटी की इज्जत वापस…। हमें बचा ले बच्चा। मेरा पारचा…।” और वो बोलती बोलती मूर्छित हो गई। उसका शरीर निढाल होकर दरोगा जी के कुर्सी पर फैले पावों पर झूल गया।

“अरे कदम सिंह। जरा देख बुढ़िया को गश आ गया दिखता है। जरा पानी लाना। पता नहीं भगवान इन्हे धरती पर पैदा ही क्यूँ करता है। पूरी जिंदगी रेंगते रहते हैं कीड़े मकौड़े की तरह। अरे सुन। इसकी तहरीर कहाँ है। अभी जीडी में दर्ज तो नहीं की।”

तभी टेबल पर पड़े लेंडलाइन फोन की घंटी घनघना उठी।

“सुनो इन्सपैक्टर, वो… कोई रेप वेप का मामला आया है क्या तुम्हारे थाने में। अरे जरा सोच समझकर हैंडल करना। विधायक जी का फोन आया था। कोई युवा नेता रामेश्वर प्रसाद को बदनाम करने का…।”

“जी सर। नई सर कोई एफ आई आर नहीं हुई है। ऐसे ही एक बुढ़िया कुछ लिखकर दे गई थी। बाकी कोई खास बात नहीं सर। बस आप मीडिया को देख लीजिएगा चूंकि लड़की हस्पताल में है।”

“अरे वो सब देख लेंगे। सत्ता में बड़ी ताकत होती है। बस… तुम्हें वॉर्न कर रहा हूँ। तुम अपनी कुर्सी बचाकर रखना।” और फोन कट गया। चतुर सिंह ने फोन रखते ही रुमाल से माथे पर उभर आई पसीने की बूंदों को साफ लिया और कदम सिंह की ओर देखते हुए बोले “कप्तान साब का फोन था।”

“साब, बुढ़िया का पारचा फाड़कर फेंक दूँ।” हवलदार तपाक से बोला।

“आ… आ अभी नहीं। देखते हैं।” उन्होने अनमने से कुछ सोचते हुए जवाब दिया और एक नई सिगरेट के लिए जेबें टटोलने लगे।

एक खुली जीप तेज गति से धूल उड़ाती हुई थाने के प्रांगण में आकर रुक गई। जीप में शक्ल से ही वहशी गुंडे से दिखाई देने वाले चार पाँच लड़के लापरवाही से तंबाकू चबाते हुए उतरे और बिना कहे दरोगा जी के सामने पड़ी कुर्सियों पर आकर जम गए। उनमें सबसे उम्रदराज लड़का सिगरेट पी रहा था। एक लंबा काश लेकर दरोगा जी से मुखातिब हुआ “अरे दरोगा जी, आज क्या कोई एफ़आईआर दर्ज हुई है आप के यहाँ। छेड़छाड़ या… रेप वगहरा…।”

“नहीं तो। हमारे थाने में तो… क्या हुआ है नेताजी। सब ठीक तो है।” चतुर सिंह ने हालात की गंभीरता देखते हुए जिलाध्यक्ष महोदय से कहा।

“अरे कुछ नहीं। वो एक बुढिया है पागल सी। बकवास करती घूम रही है कि मेरी लड़की की सलवार का नाड़ा। वो एक अश्लील सी हंसी हँसते हुए बोला।”

“हमारे युवा नेता रामेश्वर प्रसाद को बदनाम करने की साजिश लगती है किसी विपक्षी की।” दूसरे ने कहा।

“हाँ वो मास्टर जी जो तहरीर लिख कर दे गए थे, उसकी बात कर रहे हैं शायद।” हवलदार बालक राम बीच में ही बोल उठा।

“अरे साली रंडियाँ खुद तो नए नए यार ढूंदती फिरती हैं और हमारे युवा नेता का चरित्र हनन करने पर तुली हैं। इन्हे तो बस जहां दो पैसे वाला दिखाई दिया और हो गईं शुरू।”

“हाँ वो एक पर्चा सा लिखकर दे तो गए थे सुबह मगर…।”

“आप समझदार आदमी हैं चतुर सिंह जी। ध्यान रहे हमारे नेता बलराम सिंह गुस्से वाले विधायक हैं। अगर आप की तरफ नजर टेढ़ी हो गई तो, थानेदारी तो भूल ही जाओ। इस प्रदेश में नौकरी करनी भारी पड़ जाएगी। समझ रहे हैं ना। किसी वाहियात लौंडिया के चक्कर में अपने हाथ मत जलवा बैठना। रामेश्वर प्रसाद जी के दामन पर एक भी दाग लगा तो…।

बारह साल की अपाहिज बच्ची के लिए ऐसी भाषा। दरोगा चतुर सिंह की कनपटियों पर तेज रक्त के प्रवाह से सनसनाहट सी होने लगी। उनके दोनों हाथ कुर्सी ही हत्थी पर कस गए। उन्हे लगा कि किसी भी क्षण वे स्वयं पर से नियंत्रण खो देंगे और इन हरामखोरों को गोली मार देंगे किन्तु किसी तरह उन्होने गुस्से को जज़्ब कर लिया था। उन्होने धीरे से कहा “आप आश्वस्त रहें। मैं देख लूँगा।”

“आश्वस्त तो हम तुम्हें करने आए हैं दरोगा जी। जिले में नौकरी करनी है तो ध्यान रखना। हमारे तुम्हारे रिश्ते ऐसे ही बने रहे, यही आप की सेहत के लिए ठीक है।” और वे तेजी से उठकर जीप की ओर बढ़ गए।

रात के ग्यारह बजे थे। चतुर सिंह अब भी उसी कुर्सी पर बैठे सिगरेट फूँक रहे थे। उनके चेहरे पर बेहद तनाव परिलक्षित हो रहा था। बीच बीच में उठकर चक्कर लगाने लगते।

आज दिनभर की घटनाओं ने उन्हे भीतर तक झकझोर कर रख दिया था। एक अंतर्द्वंद उनके भीतर किसी चट्टान से टकरा रही समुद्र की लहरों की तरह आहत किए ड़ाल रहा था। बार बार उनके होंठ फड़फड़ाने लगते जैसे वे स्वयं को ही गालियां दे रहे हों। अपनी माँ की उम्र की वृदधा का विलाप, राजनीति के भेड़ियों की धमकी और एक बारह साल की बच्ची पड़प उनकी आँखों के आगे आगे नाच कर व्यथित कर रहे थे। अचानक उन्होने अपने दोनों हाथ अपनी आँखों पर रख लिए और कुछ पल ऐसे ही बैठे रहे जैसे कोई गहन मंथन कर रहे हों। फिर दाहिने हाथ को मुट्ठी की शक्ल में ज़ोर से मेज पर दे मारा और दृढ़ निश्चय सा करके उठ खड़े हुए।

“सुनो बलाकराम… तुम और टेकचंद दोनों चले जाओ और उस बलात्कारी को… ओह सौरी युवा नेता रामेश्वर प्रसाद को जरा थाने बुला लाओ। आराम से। कहना बस दो मिनट बात करनी है।”

दोनों हवलदार अवाक से अपने अधिकारी के इस बदले हुए रूप को देख रहे थे। “क्या बात कर रहे हैं साब। रात के बारह बजने को हैं। क्यूँ साँप की बांबी में हाथ डालते हैं साब। वैसे भी फरियादी में दम ही कहाँ है।”

“और सुनो, जिस हालत में हो उठा लाना। कोई बहाना नहीं। कहीं फ़ोन वोन मत करने देना हरामखोर को।” वे ऐसे बोले जैसे उन्होने हवलदार की बात सुनी ही नहीं। दोनों सिपाही बेमन से थाने से बाहर निकल गए।

कस्बे की बिजली भागने के कारण थाने की इमारत किसी भूतिया हवेली सी दिखाई दे रही थी। दरोगा चतुर सिंह अब भी उसी कुर्सी पर बैठे सिगरेट फूँक रहे थे। सामने हवालात में एक नौजवान जींस की पेंट के ऊपर खद्दर का कुर्ता पहने हुए सींखचों के पीछे जमीन पर बैठा था।

दोनों हवलदार परेशान से सवालिया निगाह से चतुर सिंह की तरफ देख रहे थे। आज साब का मूड उन्हे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। लगता था पगला गए हैं। सत्तारूढ़ पार्टी के युवा मोर्चे के जिलाध्यक्ष को रात में उठाना तो इस सरकार में अत्महत्या करने जैसा है। खुद तो मरेंगे ही पूरे थाने को सस्पेंड कराएंगे। एक मरियल बुढ़िया और उसकी अपाहिज बेटी के लिए, जिसकी समाज में कोई हैसियत नहीं, कोई आवाज नहीं, उसके लिए अपनी बरबादी को दावत दे रहे हैं।

“कुत्ते हैं हम।” अचानक दरोगा जी के मुंह से शब्द स्फूटित हुए। दोनों उनींदे से सिपाहियों ने चौंक कर उधर देखा।

“कुत्ते हैं हम। नहीं कुत्ते नहीं, हम वो बिजली का खंबा हैं जिसमें करंट तो कभी आया ही नहीं पर कभी  एस पी साहब तो कभी ये साले नेता हमारे ऊपर टांग उठाकर मूतते रहते हैं। कचरे का डिब्बा हैं हम कि तुम्हारी सारी गंदगी को हजम कर जाएंगे और उफ़्फ़ तक नहीं करेंगे। बलात्कार करोगे। एक बारह साल की अपाहिज बच्ची को कुचलकर फेंक दोगे और तुम्हारे पालतू भेड़िये उस मासूम को रंडी बताएँगे। साले गंदी नाली के कीड़े।”

हवलदार ने पानी का ग्लास उनकी ओर बढ़ा दिया। उन्होने एक सांस में पानी खत्म किया और कुर्सी से कमर लगाकर आँखें मूँद लीं। फिर दोबारा बोले “हवलदार बालकराम, तुम्हारी बेटी की उम्र क्या है।”

हवलदार इस अप्रत्याशित सवाल से एकदम चौंककर बोला “जी… मेरी बेटी। साब जी वो होगी कोई तेरह चौदह साल की।”

“और कदम सिंह, तुम्हारी बेटी…।”

“सर मेरी बेटी तो अभी तीन साल…।”

“और मेरी बेटी की क्या उम्र है कदम…।”

“अपनी डौली बिटिया भी यही होगी कोई बारह साल की लेकिन…।”

“और हमारी बेटियों की ओर कोई आँख उठाकर देखे तो। उठाकर ले जाये और…।” उनकी आँखों में लाल डोरे चमकने लगे।

“अजी कैसी बात करने लगे दरोगा जी। किस साले की हिम्मत है। जिंदा जमीन में न गाड़ देंगे।”

“और उस गरीब असहाय बुढ़िया की बेटी। मलखान सिंह के पूरबिया मजदूर की बेटी… और ऐसे न जाने कितने गरीब मज़लूमों की बेटियाँ जो बदनामी और ऐसे गुंडों की दहशत से थाने तक भी नहीं पहुँच पाते।” वे धीरे धीरे बड़बड़ा रहे थे। फिर अचानक उनकी तेज आवाज गूंज उठी “हीजड़े हैं हम। बिना रीढ़ के गंदे नाली में गिजबिजाते कीड़े। कंधों पर वर्दी लादे जिंदा लाश। कसमें खाते हैं परेड ग्राउंड में, पार्लियामेंट में और न जाने कहाँ कहाँ।

हवलदार, बुढ़िया की तहरीर तुरंत जीडी में दर्ज करो और बलाकराम। तुम मेरे साथ आओ। अकेले मुझ से नहीं संभलेगा कुत्ते का पिल्ला।”

सुबह राष्ट्रीय एलेक्ट्रोनिक मीडिया में ब्रेकिंग न्यूज प्रसारित हो रही थी “युवा नेता, समाजसेवी रामेश्वर प्रसाद जी का संदिग्ध परिस्थितियों में थाने में निधन। पुलिस का कहना है कि उन्होने अत्महत्या कर ली है। कल ही उन्हे बलात्कार के एक मामले में गिरफ्तार किया गया था। हमारे संवाददाता ने बताया कि लोगों की एक बड़ी भीड़ थाने के सामने एकत्रित होकर पुलिस प्रशासन जिंदाबाद के नारे लगा रही है। विधायक बलराम सिंह ने सीबीआई जांच की मांग की है।”

रवीन्द्र कान्त त्यागी

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