सुबह से ऑफिस के कामकाज से थक हार कर निकिता अभी थोड़ा सुस्ताने लगी थी, उसके एक हाथ में
कॉफी का मग था व कानों में लीड लगाकर वो अरजीत सिंह की गजल सुन रही थी कि उसकी बहन ने आकर
कहा …
दीदी! लीजिए..आज की पोस्ट्स..
ओह!अभी इन्हें भी चैक करना है..आज बहुत थक गई हूं,बिल्कुल हिम्मत नहीं है इन्हें देखने की।
दरअसल निकिता एक छोटी सी डिजाइनिंग कंपनी चलाती थी, उसके पति वैभव से जब से उसका सेपरेशन
हुआ था वो अपने मायके आ गई थी,उसके पिता उसका ये दुख सह न सके और हार्ट अटैक से चल बसे
थे,अब घर में उसकी मां और एक छोटी बहिन रेखा ही बचे थे जिनकी जिम्मेदारी भी निकिता के कमजोर
कंधों पर ही थी।
निकिता रात दिन मेहनत करके अपना स्टार्ट अप चला रही थी, उसके लिए और रुपयों की जरूरत थी, रुपए
सीमित थे, लक्ष्य बड़े.. लेकिन उसके हौसलों में कोई कमी न थी। एक बात जरूर थी कि निकिता अपने पेरेंट्स
के बताए आदर्शों पर दृढ़ थी, वो कभी अपने उसूलों से समझौता नहीं करती थी चाहे उसे कितनी मेहनत ही
क्यों न करनी पड़े।
ला रेखा! निकिता ने उसके हाथ से लेटर्स लिए।
दीदी!आप कहो तो मैं खोल लूं?
नेकी और पूंछ पूंछ…निकिता आराम कुर्सी पर पसर गई थी और रेखा ने पहला लेटर खोला।
ये एक बिजनेस का सुनहरा प्रस्ताव था किसी बड़ी मल्टी नेशनल कंपनी ने निकिता के काम से प्रभावित
होकर उसे ऑफर दिया था कि वो उनके लिए काम करे।
रेखा खुशी से चिल्लाई..हुर्रे!दीदी!आखिर हमारी मेहनत रंग लाई…इस प्रतिष्ठित कंपनी के लिए काम करके
हमारे वारे न्यारे हो जाएंगे…क्या बात है!
अरे!पूरा प्रस्ताव तो पढ़ ले पहले..निकिता बोली,उसे भी विश्वास नहीं जो रहा था कि ऐसा हुआ है…
उसने पढ़ा कि कंपनी की एक ही शर्त थी कि निकिता को उनकी कंपनी के उन ड्रेस मैटीरियल्स को उत्कृष्ट
क्वालिटी का सिद्ध करना था जो पर्यावरण फ्रेंडली नहीं थे,उनके लिए बनाए गए विज्ञापन ऐसे होने चाहिए
जो ये झूठ छुपा सकें,उस झूठ को सच का जामा पहनाना था और निकिता की ब्रांड वैल्यू इसमें मदद कर
सकती थी।
ये तो सरासर धोखा हुआ..निकिता ने सोचा…मेरी डिजाइनिंग कंपनी अभी छोटी है लेकिन हम जो
बनाते,बेचते,दिखाते हैं वो एकदम सही होता है ,अब जरा से प्रॉफिट के चक्कर में मैं अपने आदर्श छोड़ दूं? ये
तो गलत होगा।
क्या सोच रही हो दीदी? रेखा ने बेचैनी से पूछा।स्वीकृति के लिए लिखूं उन्हें लेटर?
नहीं…ये मुझे ठीक नहीं लग रहा,आखिर इतने समय में हमने जो प्रतिष्ठा बनाई है,उसे यूं मिट्टी में मिला दूं?
लेकिन प्रॉफिट तो देखो!ये तो गेम चेंजर साबित होगा हमारे बिजनेस के लिए…हमारी ग्लोबल लेवल पर
पहचान बन जाएगी दी!हम अमीर बन जाएंगे,संघर्ष के दिन खत्म।रेखा उछल रही थी बोलते हुए।
शांत बहिन!..निकिता गंभीरता से बोली,भले ही आज हमारी थाली में एक रोटी हो पर वो सम्मान की रोटी
है,सूखी हो सकती है वो लेकिन हमारे आत्म सम्मान को बरकरार रखेगी हमेशा…याद रखना!चैन से सोने के
लिए सोने की चेन नहीं,दिल का चैन चाहिए होता है जो सच्चाई के रास्ते पर चलकर ही मिलता है।
बस दीदी..आप किसी की सुनती ही नहीं..रेखा गुस्से में पैर पटकती चली गई वहां से।
उस पूरी रात निकिता बेचैनी से करवट बदलती रही, उसे साझ नहीं आ रहा था की क्या निर्णय ले लेकिन
सुबह उठते ही उसने सबसे पहले उस कंपनी को मेल किया कि वो विनम्रता पूर्वक उनका ये प्रस्ताव ठुकराती
है।
निकिता को बहुत सुकून था उस दिन,भले ही घर में उसने अपनी बहिन का गुस्सा झेला उस बात के लिए
लेकिन वो अपने सिद्धांतों पर डटी रही।
फिर अचानक कुछ महीनो बाद, एक दिन एक बड़ी अंतर्राष्ट्रीय कंपनी ने निकिता के प्रोडक्ट्स की बहुत
प्रशंसा की और उसे ग्लोबल ग्रीन ब्रैंड अवॉर्ड से सम्मानित किया। उसके बनाए प्रोडक्ट्स की वैल्यू रातों रात
बढ़ गई और वो अचानक एक बड़ी स्टार बन गई।
प्रॉफिट भी हुआ और सम्मान भी मिला और सबसे बड़ी बात है उसके आदर्श भी कायम रहे।
रेखा ने आंखों में आंसू भर के निकिता से माफी मांगी…दीदी!आज समझ आया कि असली अमीर वो ही
होता है जिसका ज़मीर जिंदा रहता है,आप वाकई में बहुत स्ट्रांग हो।
कोई बात नहीं रेखा!निकिता बोली,तू अभी छोटी है,अच्छा है जल्दी समझ गई..पिताजी की हमेशा यही सीख
रही थी कि सम्मान की सूखी रोटी,अपमान की तर रोटी से कहीं ज्यादा श्रेयस्कर होती है।कम खा लो लेकिन
सम्मान और सुकून से खाओ,गलत काम करके सुकून खो जाता है और आत्मा पर बोझ रख कर महलों में
रहना,चुपड़ी खाना परेशानी बढ़ाता है।अगर कल लालचवश मैं उस कंपनी का प्रस्ताव स्वीकार कर लेती तो
इस प्रलोभन की मुझे बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती,आज उस को कोई पूछने वाला भी नहीं है,देख!अपने
फ्रॉड की वजह से सारे मार्केट में उनकी थू थू हो रही है।
रेखा की आँखें झुक गई थीं,वो अपनी दीदी की दूरदर्शिता से प्रभावित थी।
समाप्त
डॉक्टर संगीता अग्रवाल
वैशाली,गाजियाबाद
#सम्मान की सूखी रोटी