पत्थर दिल – प्रियंका त्रिपाठी ‘पांडेय’

सुकन्या की नन्द की शादी को दो साल हो गए थे लेकिन उनको कोई बच्चा नही था। बच्चे के लिए वे काफी परेशान रहती थी तो सुकन्या ने उनको एक बहुत ही प्रसिद्ध काबिल डाक्टर के बारे मे बताया और कहा, आप इनको दिखाइए मै गारंटी देती हूं आपको एक साल के अन्दर ही बच्चे का सुख प्राप्त हो जाएगा।

नन्द नन्दोई ने सुकन्या की बात मान ली और दोनो सुकन्या के साथ डाक्टर को दिखाने गए। डाक्टर ने देखा और आश्वासन दिया। नन्द का इलाज शुरू हो गया जाॅ॑च मे पता चला कि नन्द में ही कमी थी जिसकी वजह से बच्चा नही हो रहा था।

सुकन्या की शादी को चार महीने ही हुए थे पति प्राइवेट स्कूल मे टीचर थे। सुकन्या किराए के दो कमरे के मकान मे पति के साथ रहती थी। सुकन्या ने अपनी परेशानियों को दरकिनार करते हुए नन्द को डाक्टर के बारे मे बताया था सोचा कि ये हमारी परेशानियों को समझते हुए समझदारी से चलेंगी, परंतु ऐसा नही हुआ नन्द ने सुकन्या को एक किनारे कर अपनी मनमानी शुरू कर दी अथाह खर्चा भी बढ गया था। नंदोई जी शुक्रवार को आते थे शनिवार, इतवार रहते थे। सोमवार को सुबह चार बजे कानपुर ड्यूटी के लिए निकलना होता था तो उस दिन दोनो मियां बीवी रात मे दो बजे ही उठ जाते थे और सुकन्या का दरवाजा खटखटाने लगते थे क्योंकि किचन सुकन्या के कमरे मे ही था। सुकन्या का पति दरवाजा खोल देता था। नन्द रात के दो बजे से ही नन्दोई के लिए चालिस पचास रोटी और एक किलो भिन्डी या बैगन की कलौंजी बनाकर नन्दोई को पैक कर के दे देती थी ।यह सिलसिला लगभग दो साल तक चला सुकन्या कुछ नही कहती चुपचाप बर्दाश्त कर रही थी।

छः महीने के बाद नन्द प्रिगनेन्ट हो गई घर मे खुशी की लहर दौड़ गई। अब नन्द ने दवाइयों के सेवन में लापरवाही बरतनी शुरू कर दी जिसकी वजह से उनका बच्चा खराब हो गया। डाक्टर ने बहुत डाट लगाई। प्रथम स्टेज से पुनः इलाज शुरू हुआ। पांच छः महीने के बाद नन्द फिर से प्रिगनेन्ट हो गई।

बच्चा होने की डेट नजदीक आ गई तो नन्द की सास ने यहीं पर आ कर रहने का प्लान बना लिया। न सुकन्या को बताया और न ही उसके पति को।




सुकन्या नन्द नन्दोई की हरकतो से परेशान तो थी ही पर इन दो महीने मे नन्द और नन्द की सास ने सुकन्या की जिंदगी को जहन्नुम बना दिया।

सुकन्या को एक बेटा था जो अब नौ महीने का हो गया था। सुकन्या के सिंगल बेड पर नन्द अपनी बेटी को लेकर जबरजस्ती सो जाती थी, उसी बेड पर सुकन्या भी एक कोने मे अपने बेटे को लेकर सोती थी।

सुबह उठते ही नन्द की सास सुकन्या के बेटे को डाहने लगती थी। सुकन्या तुम्हारा लड़का रोता बहुत है हगना मुतना बाद में कराना पहले जाकर खाना बनाओ…सुबह सात बजे तक खाना बन जाना चाहिए।

सौम्या जब नहाने चली जाती थी तो उसका बच्चा माॅ॑ को न पाकर रोने लगता था।  लेकिन ये दोनो औरते न बच्चे को पुचकारती और न कभी दुलारती…बच्चे को गोदी लेना तो बहुत दूर की बात थी,बच्चा रोता ही रहता जब तक सुकन्या नहा कर न आ जाती। खाना भी सास और नन्द खा कर फुर्सत हो लेती….सुकन्या से कहती जो बचा है उसी मे काम चलाओ।

सुकन्या का मन घृणा से भर गया, वो जान गई कि ये लोग बहुत स्वार्थी तथा पत्थर दिल लोग हैं।इन लोगो का मकसद ही यही है अपना काम बनता भाड़ मे जाए जनता। जब तक बच्चा नही हुआ था तब तक कितना मीठा – मीठा बोलती थी ” भाभी आप बहुत अच्छी लगती हैं, आपकी बहुत याद आती है, आपके बगैर कुछ भी अच्छा नही लगता। बच्चे पर तो जान छिड़कती थी और आज उसी बच्चे को रोता देखकर भी ममता नही जागती, बच्चे से भी इतनी नफ़रत।”

इन पत्थर दिल लोगो के लिए अब सुकन्या भी पत्थर दिल हो गई थी।

#स्वार्थी

प्रियंका त्रिपाठी ‘पांडेय’

प्रयागराज उत्तर प्रदेश 

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