कैसा ये इश्क है – कमलेश राणा

बात पिछले साल की है। नवम्बर का महीना था। गुलाबी ठंड दस्तक दे रही थी, मौसम बड़ा ही सुहाना था। 

पड़ोस में रहने वाले मिश्रा जी के बेटे की शादी की रौनक मौसम के साथ साथ दिलों में भी सुहानी खुशियों का संचार कर रही थी। 

वो कहने को हमारे पड़ोसी थे, हमारे बीच रक्त संबंध ही नहीं था पर जो रिश्ता प्रेम और विश्वास का हमारे बीच था उसे किसी नाम की जरूरत नहीं थी। ऐसा लग रहा था मानो मेरे ही बेटे की शादी हो। 

बहू के लिए जेवर पसंद करने हों या कपड़े सिमी मुझे लिये बिना नहीं जाती। मेंहदी, हल्दी, संगीत में इतनी मग्न हो गई थी मैं कि घर में दो मिनिट भी नहीं रुक पाती। आना भी चाहती तो मिश्रा जी पतिदेव को वहीं पकड़ ले जाते। आठ दिन पहले से ही सिमी ने हमारा खाना भी अपने घर ही बनवाना शुरु कर दिया था ताकि मैं हर कदम पर उसके साथ रहूँ। 

उनके बेटे अमन की शादी उसकी बचपन की मित्र से हो रही थी। दोनों में बहुत दिनों से प्रेम संबंध थे अब उसे सामाजिक मान्यता मिलने जा रही थी। 

आखिर वह दिन भी आ गया जब अमन अपनी प्रेयसी को सात वचनों के बंधन में बांधकर घर की लक्ष्मी बना कर ले आया। 

कहते हैं जब वधू गृह प्रवेश करती है तो उसमें साक्षात लक्ष्मी की छवि नजर आती है और अनु तो जितना सुना था उससे भी कई गुना खूबसूरत थी। 

केतकी के फूल जैसा गुलाबी रंग, हिरनी सी आँखें, लंबे घने काले बाल और पूड़ी के मड़े आटे जैसी कसी हुई देहयष्टि । अमन की पसन्द पर अनायास ही मुँह से वाह निकल गया। 

कुछ दिन साथ रहकर अमन वापस पुणे चला गया। वहाँ वह एक प्रतिष्ठित कंपनी में जॉब करता था। अनु कुछ दिन मायके रहकर लौट आई। सुंदर होने के साथ साथ वह समझदार भी बहुत थी। सिमी के कहने से पहले ही हर काम हो जाता पर अमन के साथ जो रौनक रहती थी अनु के चेहरे पर वो नहीं रहती। 




स्वाभाविक भी था, नई जिंदगी के नये अरमान जो थे। सिमी और मिश्रा जी बार बार अमन से उसे साथ ले जाने को कहते पर वह कभी फ्लैट का तो कभी काम का बहाना बना देता। पर जब भी मौका मिलता घर जरूर आ जाता।

पर कब तक चलता ऐसा, आखिर एक दिन अनु उसके साथ चली गई आँखों में नये सपने लेकर, नया आशियाना सजाने। उसका दिल गा रहा था… 

हम दोनों दो प्रेमी दुनियां छोड़ चले 

जीवन की हम सारी खुशियाँ बटोरने चले। 

अमन को शनिवार रविवार का ही अवकाश मिलता था और हर वीकेंड में उसे टूर पर जाना होता। यह बात अनु को अच्छी नहीं लगती थी। एक दिन जब वह कपड़े धोने के लिए अमन की जींस की जेब चैक कर रही थी तो उसमें से होटल की रसीद निकली जो पुणे में ही था और मूवी के दो टिकट भी। 

माथा ठनक गया उसका लेकिन उसने कुछ कहने से पहले पूरी जानकारी जुटाना उचित समझा। अगली बार जब अमन टूर पर निकला तो अनु ने उसका पीछा किया और यह देखकर वह सन्न रह गई कि थोड़ी दूरी पर ही उसकी सेक्रेटरी उसका इंतज़ार कर रही थी। 

अनु ने उन दोनों के फोटो खींच लिये मोबाइल में और साथ में उस होटल के भी जहाँ वो दोनों गये थे। अब सारे सबूत थे उसके पास। 

दो दिन बाद जब अमन घर आया तो अनु ने वो फोटो उसे दिखाये। अमन को तो ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे आकाश से धरती पर पटक दिया हो पर वह समझ चुका था कि अब सफाई देने का कोई मतलब नहीं है । उसने सच बोलने में ही भलाई समझी। 

अनु, जब मैंने ऑफिस जॉइन किया तो निधि का खुला व्यवहार मुझे बहुत पसंद आया। दोनों ही अकेले थे, कोई बंदिश नहीं थी , न ही किसी का डर। कुछ प्यार के पल बिता लेना गलत नहीं लगा हमें, एक दूसरे का साथ बहुत अच्छा लगता था लेकिन शादी के बारे में हमने कभी नहीं सोचा। तुम हमेशा से मेरी पहली पसंद थी … हो… और हमेशा रहोगी। तुम्हारे अधिकार हमेशा तुम्हें मिलते रहेंगे जो तुम्हें चाहिये वो मिलेगा। बस कभी अगर मैं निधि से मिलूँ तो तुम्हें ऐतराज़ नहीं होना चाहिए। 

वाह अमन वाह!! कैसा ये इश्क है तुम्हारा,, गोया कि इश्क न हुआ रेबड़ी हो गई,, किसी को भी बांट दो। कितने स्वार्थी हो तुम अगर यही मैं करती तो भी यही विचार होते क्या तुम्हारे?? 

मैं इतनी उदार नहीं हूँ अमन तुम्हारी आज़ाद ख्यालों वाली दुनियां तुम्हें मुबारक हो। मैं भारतीय नारी के दकियानूसी विचारों के साथ खुश हूँ। अब तुम्हारे विचार से तो मेरे ख्याल दकियानूसी ही होंगे न जहाँ सपने में भी परपुरुष का प्रवेश वर्जित है। 

मैं जा रही हूँ अपने धर्म के माता पिता यानि अपने सास ससुर के पास। तुम अपने स्वार्थ में अंधे हो पर मैं अपना फर्ज़ निभाऊँगी अंतिम सांस तक। 

#स्वार्थ

कमलेश राणा

ग्वालियर

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