परख अपनों की – मंगला श्रीवास्तव 

 अपने ही घर मे चार बेटें और बहुओं के बीच रहते हुएं भी सविता देवी आज अकेली पड़ गयी थी।अपने कठोर व्यवहार और रूढ़िवादिता के कारण। उस पर से उनकी एक आदत दुसरों की बातों में आना।

   वह अक्सर परिवार और अपने अड़ोसी पड़ोसी से घर की बाते करती और फिर वह लोग भी बाते बनाकर जो भी बोलते वह सुनकर वो अक्सर अपनी बहुओं को ताना कसी व उनके काम में मीन मेख ही निकलती रहती थी।

इस कारण उनके परिवार में हमेशा क्लेश बना रहता था। बहुओं की भी वो आपस में पटने नही देती थी।

हालांकि उनके चारों बेटें बहुएँ बहुत अच्छे थे।पति बहुत ही सीधे व सरल स्वभाव के थे। एक ही बेटी थी, जिसकी भी शादी हो गई थी।

पति का बिजनेस था जो अब चारों बेटें मिलकर संभाल रहे थे। पति के रहते तो वह पूरे घर में एकछत्र राज करती थी।उनके पति केशव उनको समझाते रहते थे, की दुसरो की बातों में आकर अपना घर मत बिगाड़ो ।आगे जाकर तुम पछताओगी पर उनके कानों पर जूं तक नही रेंगती थी।वह उनसे झगड़ा कर उनको भी चुप कर देती थी।

एक दिन केशव जी सोये तो उठ ही नही पाये नींद में ही परलोक सिधार गए।

अब उनके जाने के बाद उनको उनके सगे सम्बधियों ने और उनकी सहेलियों और पड़ोसियों ने उनको भड़काना शुरू किया और देखते ही देखते उनका घर और बिजनेस का बंटवारा हो गया। उनके बेटें नही चहाते हुए भी एक ही घर में अलग अलग रहने लगे।

सविता देवी किसी के साथ नही रह पायी अपने व्यवहार के कारण ।और उन्होंने अपना एक कमरा व गृहस्थी अलग कर ली।

उनकी बेटी जब भी आती तब उनको बहुत समझाती, पर उनके कान इतने भरे हुए थे,कि उनको कौन अपना कौन पराया समझ ही नही आता था।धीरे धीरे बेटी ने भी आना कम कर दिया था।

इस तरह परिवार के बिखरने व टूटने के साथ उनके बिजनेस पर जो कि बहुत फैल हुआ था उस पर भी फर्क पड़ गया था ।उनका समाज में एक रुतबा था वह भी कम हो गया।



सविता देवी जी पहले अपना रुतबा बहुत दिखती थी। तब उनके परिवार वाले और सहेलियाँ उनकी चापलूसी करते नही थकते थे, क्योंकि उनके पास अपार धन दौलत जो थी।पर अब जो लोग दिन रात उनके आगे पीछे घूमते रहते थे, उन्होंने भी धीरे धीरे उनके पास आना कम कर दिया था।

नौकरो से भी उनका व्यवहार ठीक नही था।इस कारण वह जब भी उनको काम पर बुलाती वह भी बहुत मुश्किल से आकर  उनका काम करते थे।

अब उनको अपनी हठधर्मी और गलतियों का एहसास होने लगा था । पर अब क्या होता बात तो बहुत बिगड़ चुकी थी।कोई अब उनके पास आता जाता नही था।

बेटें शुरुआत में तो अक्सर  अपनी माँ का हाल चाल पूछने आ भी जाते थे ,पर अलग अलग होने के साथ  जिम्मेदारियां बढ़ने के कारण अब वह भी यदा कदा ही हाल पूछते थे।

आज सुबह से ही उनका बदन बहुत दर्द कर रहा था और तेज ठंड लग रही थी।उन्होंने दो तीन कम्बल व रजाई भी ओढ़ ली पर

भी ठंड से उनका बदन काँप रहा था।

बुखार भी बढ़ता जा रहा था पर उनमें इतनी हिम्मत भी नही थी कि वह उठकर पानी भी पी ले और दवा ले ले।

उनकी आँखों से आँसू बहने लगे,वह याद करने लगी जब पिछली बार वह बीमार पड़ी थी।  तब उनके खराब व्यवहार के बाद भी उनकी बहुओं ने और बेटों ने उनकी दिन रात सेवा की थी ,पूरे समय कोई ना कोई बेटा बहु उनके सिरहाने बैठे ही रहते थे। समय समय पर बुखार चेक करते व दवाइयाँ देते थे।बहुएँ उनके हाथ पैर दबती रहती थी। वह आज पछता रही थी कि वह इतनी बड़ी होकर भी अपने और परायों की परख नही कर पाई।

    अपने घमंड में ना ही उन्होंने अपने पति की बात सुनी ना ही अपने बच्चों की ,और आज ये हालत हो गए कि आज उनका परिवार पूरा बिखर गया सिर्फ उनके कारण।

वह रोते रोते बेहोश होकर नीचे गिर पड़ी थी।

बारह बजे जब उनकी बाई आई  देखा वह दरवाजा नही खोल रही है।वो दौड़ कर उनके बड़े बेटे जो बाहर जाने को निकले ही थे पहुँची और बोली भैयाजी वो माताजी दरवाजा नही खोल रही है।

“क्यों क्या हुआ उनको?

वह घबरा कर पूछने लगे ।

पता नही साहब,में तो अभी ही आई हूँ।



“अरे जल्दी चलो” यह कहकर उन्होंने अपने दूसरे भाइयों को भी आवाज दी।सभी दौड़ कर चले आये थे। सबने मिलकर दरवाजा तोड़ा और देखा कि सविता जी नीचे गिरी हुई थी और बेहोश थी।

उनका बदन तेज बुखार से तप रहा था । उन सबने मिलकर उनको उठाया व जल्दी से गाड़ी  में लेटा कर अस्पताल ले गये।

पीछे दूसरी गाड़ी में उनकी बहुएँ भी जल्दी से अस्पताल आ गयी थी। पूरी तरह चेक करने के बाद डॉक्टरों उनको भर्ती कर लिया था। सारे चेकअप के बाद पता चला डेंगू हुआ था।

उनको आई सी यू में भर्ती कर इलाज शुरू किया गया ।करीब दो तीन घण्टे बाद जब उनको होश आया तो ,उन्होंने खुद को अस्पताल में देखकर नर्स से लड़खड़ाती आवाज में पूछा.. मुझको कौन लाया है यहाँ पर “?

जी आपका परिवार वह सब बहार ही खड़े है।यह सुनकर वह रोने लगी ।

उन्होंने बोला आप उन सबको अंदर बुलवा दोगी क्या ?

मैं उन सबसे मिलना चहाती हूँ।  अम्माजी मैं सबको तो नही बुला सकती हूँ क्योंकि यह “आई सी यु “है ।

बस पाँच मिनिट के लिए बुलवा दो बेटा।

जी ठीक है मैं सर से पूछती हूँ। चूंकि डॉ उनके परिवार को अच्छी तरह से जानते थे।इस कारणअनुमति दे देते है।

  उनके चारो बेटें और बहु  उनके पास आते है ।वह उनको देख रोने लगती है ,और बोलती है कि मेरें बच्चों मुझको माफ कर दो।मैने इतनी बड़ी होकर और माँ होकर भी अपना कोई फर्ज पूरा नही किया । दूसरों की बातों में आकर अपना हरा भरा घर उजाड़ दिया।

मैं बड़ी होकर भी अपनों की परख नही कर पाई बस “परायों की बातों में आती रही” मुझको माफ कर दो बच्चों।

उनके बेटों ने उनका हाथ पकड़ लिया नही माँ आप अच्छी हो जाओ बस आपके आशीर्वाद  अपना घर आँगन हम मिलकर फिर से हरा भरा कर लेंगे।

आज उन सभी की आँखों मे खुशी के आँसू थे।

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