पापा को भी एक साथी की जरूरत है – चाँदनी झा

ये कोई उम्र है शादी करने की, समाज क्या कहेगा?

कितनी आसानी से आपने यह कह दिया। पर कौन देखनेवाला है, पापाजी को। यह समाज?? मिशा बोले जा रही थी। मिशा और अश्विनी बड़े शहरों में रहते थे, अश्विनी के पिताजी मुकुंदलालजी गांव के स्कूल में ही शिक्षक पद पर कार्यरत थे। तो उन्हें बाहर जाने का तो कोई संयोग भी नहीं बनता था। आज से करीब 10साल पहले, अश्विनी की मां का देहांत हो गया था। (मुकुंदलाल जी की पत्नी का देहांत हो गया था)

अश्विनी की एक बहन थी नीतू, उसकी शादी मां के सामने ही हो चुकी थी। अश्विनी की शादी लगभग सात साल पहले हुई थी। मिशा जब इस घर में शादी कर आई थी, तो ससुर ने उसका स्वागत किया था। और कभी भी उसे सास की कमी महसूस नहीं होने दी थी।

 वह तो अश्विनी बड़े शहरों में अकेला रहता था, तो उन्होंने ही मिशा को अश्विनी के साथ भेज दिया था। मिशा की जिंदगी में कोई कमी नहीं थी। राखी और मोनू दो प्यारे- प्यारे बच्चे। मायके में भी सबकुछ संपन्न, पति प्यार करने वाला, खुद भी पढ़ी-लिखी, ससुराल में भी बड़ी ननद, जो अपनी ससुराल में रहती थी। और ससुर, प्यार करने वाले।

 बहू को समझने वाले, समझाने वाले, और मिशा के भावनाओं का ख्याल रखते थे। मिशा भी अपने ससुर मुकुंदलाल जी को भावनात्मक के साथ-साथ, जो हमेशा उसके साथ रहे ऐसे इंसान की जरूरत है। यह समझ रही थी। क्योंकि मिशा चाह कर भी गांव में ससुर के साथ नहीं रह सकती थी। क्योंकि अश्विनी वहां अकेला रह जाता। 2 दिन पहले लक्ष्मी मासी का फोन आया।….

लक्ष्मी मासी जो एक बाल विधवा थी। अंत समय में उनके जेषठ और देवर ने उनकी सारी संपत्ति अपने नाम करा कर उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया। वह तो समाज के कुछ लोगों ने उन्हें वृद्धा पेंशन दिलवा दिया, साथ ही उनका व्यवहार इतना अच्छा था, कि आसपास के घर वाले भी मदद कर देते थे। अश्विनी और मुकुंदलाल जी भी लक्ष्मी मौसी के मदद से कभी पीछे नहीं हटते थे।


 लक्ष्मी मासी ने फोन पर कहा कि मुकुंदलाल जी अचानक से गिर पड़े हैं। वह तो मैंने आज करेले की अच्छी सब्जी बनाई थी, तो उन्हें देने आई थी। तो मैंने देखा वह बरामदे पर गिरे हुए हैं। आसपास के लोगों को बुला लाई। बेटा जमाना अच्छा नहीं है इन्हें कोई देखने वाला यहां नहीं है। इन्हें अकेले मत छोड़ो। तुम जल्दी आओ और, इन्हें अपने साथ लेते जाओ।  मुकुंदलाल जी रिटायर हो चुके थे, लेकिन शायद उन्हें अपनी पत्नी की यादें या घर का मोह गांव में ही बांध कर रखे हुए था। वह गांव छोड़कर जाने के बात से ही नाराज हो जाते थे। जबकि उनके रिटायर होने के बाद, अश्विनी ने कई बार कहा पापा अब आप हमारे साथ ही रहे। आपका अकेलापन भी दूर हो जाएगा, और बच्चों को भी दादा का प्यार मिलता रहेगा। 

लेकिन मुकुंदलाल जी गांव छोड़कर जाने को कभी तैयार नहीं हुए। आज मिशा ने स्पष्ट कहा, पापा आप हमारे साथ चले। या आप शादी कर ले। शादी! मुकुंदलाल जी  इस शब्द को सुनकर चौक पड़े। अरे बेटा मैं इस उम्र में क्या शादी करूंगा। और सबसे बड़ी बात है कि मुझसे शादी करेगा कौन? और किस लिए शादी करूं? 

पापा इसलिए आप शादी करें, कि आपके साथ रहने के लिए एक आदमी हो जाएगा। जो आपके अकेलेपन को भी दूर करेगा। और आपकी देखभाल भी करेगा। मुकुंदलाल जी कुछ बोलते, इससे पहले ही अश्विनी बोलने लगा। यह क्या कह रही हो मिशा तुम? पागल हो क्या? मेरे पापा के बारे में इतना भला-बुरा बोल रही हो। 

इसमें भला बुरा की क्या बात है? पापा क्यों नहीं शादी करेंगे? आखिर इनके अकेलेपन के लिए कोई साथी तो चाहिए ही। फिर अश्विनी ने सवाल दोहराया, आखिर पापा की शादी, पापा से शादी कौन करेगा? लक्ष्मी मासी! छूटते ही मिशा ने कहा। लक्ष्मी मासी से? तुम पागल हो क्या? हमने जब से होश संभाला है, तब से उनको विधवा ही देखा है। और लक्ष्मी मासी के घर वाले तैयार होंगे क्या? 

हमें लक्ष्मी मासी के घर वालों से पूछना ही कहां है?? उनके घर वाले हैं कहां??सभी ने तो उन्हें छोड़ दिया है। और वो भी अकेली हैं। उन्हें भी साथी की जरूरत है। और पापा की भी देखभाल हो जाएगी। अश्विनी को मिशा की बातें समझ नहीं आ रही थी। मिशा  धुन में बोलते जा रही थी। बस पापा आपको हां करनी ही होगी। या तो आप शादी करेंगे, या हमारे साथ चले। पापा कुछ नहीं बोल रहे थे, मिशा पापा के मौन को हां समझ रही थी। कुछ देर बाद मुकुंदलाल जी ने कहा, क्या लक्ष्मी जी  कभी तैयार होंगी?

 तुमने यह बात सोचा है बेटा? पापा मैं औरत हूं मैं समझ सकती हूं। मासी जी के नजर में आपकी बहुत इज्जत है। और शादी तो एक दूसरे की इज्जत, विश्वास, प्रेम, अधिकार, समर्पण, त्याग का नाम है। वो आपका ख्याल रखना चाहती हैं। लेकिन समाज आड़े आता है। बस इसी समाज, इसी झिझक को मिटाने के लिए आप दोनों शादी कर, एक छत के नीचे रहेंगे।

 आप उनका सहयोग करेंगे, और वह आपका ख्याल रखेंगी। मैं बात करूंगी मासी से, मिशा बोले जा रही थी। मुकुंदलाल जी को बहू का यह अपनापन, यह प्यार, अच्छा लग रहा था।

लेखिका : चाँदनी झा  

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