पलट कर जवाब -कंचन आरज़ू

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नैना उठो कितनी देर तक सोती हो,

सुबह हो गई कहते हुए राधिका ने कुंडी खटखटाई ही थी कि ये उठकर बैठ गई । 

पास में मेज पर रखी टेबल खड़ी में नज़र डाली तो देखा ठीक चार बजे थे।

बड़बड़ाती हुई कुछ मन में बुदबुदाती सी उठी , हे! भगवान लगता है रात भर नींद नहीं आती भोर में ही उठा देती है।

एक तो देर से सो ऊपर से जल्दी उठ जाओ।

और फिर दिन भर चकरघिन्नी की तरह  चलती रहो, काम है कि कभी खत्म ही नहीं होता।

खाना नाश्ता तो कोई ग़लती से भी नहीं पूछता कि किया की नहीं।

इस बीच अगर ग़लती से कभी कमरे में चले जाओ तो जिठानी व्यंग कसते हुए आवाज लगाती है ।अरे दिन में तो देवर जी को छोड़ दिया करो।

उन्हें तो न लाज हैं न शर्म किसके सामने क्या बोलना है कुछ नहीं पता ।जो मुंह में आए बक देती है।

फिर तो सामने वाला लाज से खुद ही पानी पानी हो जाए पर वो वैसे ही मंडराती रहती है सबके आस पास,

और उधर ननद को नाश्ता न दो तो दस बात सुना कालेज को चली जाती है जैसे लगता है उन्हें यही रहना है कभी अपने घर जाना ही नहीं।

कुल मिला के औरतों का बोलबाला है सबकी सब सिर चढ़ी , पतियों और अपने से छोटों पर ऐसे हुकूमत चलाती है जैसे खरीद कर लाईं हो।

जब देखो तब छोटी छोटी सी गलती पर मां को बीच में घसीट लेती , बर्दाश्त की भी एक हद होती है और कब तक अपने भी तो बच्चे बड़े हो गए कभी कभी बहुत बेज्जती लगती है।

जबकि चुप रह के हमेशा सबके मन का काम करती रही कभी पलट कर जवाब नहीं दिया । हमेशा सबको खुश रखने की कोशिश की पर न कोई खुश रहा न कभी मेरे काम की तारीफ की हमेशा मीनमेख निकाला गया अब तो  बच्चे भी कहते हैं कि तुम पलट कर बोलती क्यों नहीं ।पर वहीं है ना कि आदत नहीं थी कभी पलट कर जबाव देने की तो नहीं दे पाती इतने सालों के बाद भी सुनकर अपमान महसूस हुआ तो कमरे में आकर चुपके आंसू बहा लिया। पर कभी किसी से कुछ बोली नहीं ,अब कभी कभी लगता, अगर हर चीज में बीच में मां को घसीटा जाता है तो 

कभी ऊंची आवाज़ में बात नहीं की, पलट कर जवाब नहीं दिया इसमें मां का नाम क्यों नहीं आता  ये संस्कार भी तो उन्ही के  दिए हुए हैं ।

 

स्वरचित

कंचन आरज़ू

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