पासा पलट गया  – पूनम अरोड़ा

मुम्बई  में उच्च पद पर कार्यरत विवान ने अपने लिए अपने ही ऑफिस की ही  एक लड़की अपनी जीवनसंगिनी के रूप में पसंद कर ली थी और वो भी उसे पसंद करती थी । विवान  मूल रूप से तो एक छोटे से कस्बे का ही था लेकिन यहाँ   महानगर  में  आकर यहीं  के वातारण -परिवेश में  ढल गया था ।शरीर तो शुरू सै ही सौष्ठव था ,गौर वर्ण  और कद काठी, व्यक्तित्व भी आकर्षक था हाँ  यहाँ आकर उसकी  वेशभूषा में आधुनिकता और बातचीत व्यवहार में देसी पन की सादगी की जगह  शालीनता पूर्ण आभिजात्य  झलकने लगा था ।
अब वह पहले की अपेक्षाकृत  बहुत  स्मार्ट  हो गया था  तभी तो  मुम्बई  की ही पली बढी ,अंग्रेजी  पढ़ने बोलने वाली आधुनिक  रिमि ने उसे पसंद कर लिया था ।दोनों  में  अच्छी  दोस्ती और अंडरस्टैडिग  हो गई  थी और वे अपने इस रिश्ते को अब परिणय सूत्र में  बाँधने के लिए संकल्पित थे।
रिमि के घरवाले  तो आधुनिक मानसिकता के थे उन्हें  तो इस रिश्ते से कोई  आपत्ति  नही  थी
लेकिन  विकट धर्मसंकट था विवान के सामने — अपनी माँ  को इस शादी के लिए राजी करना  एक विकट  चुनौती थी उसके लिए।


बहुत बाधाएं  थी यहाँ  उसके पिता तो थे नहीं  माँ  ने कठोर जीवन  जीते हुए  उसके “सिंगल पैरेन्टस” की भूमिका को बखूबी निभाया था शायद इसलिए उनके व्यक्तित्व  में  अनुशासन और कठोरता का  समावेश हो गया था । वैसे वो ममतामयी थी लेकिन अपने विरूद्ध  कुछ होना उन्हें  उनके अहं को बहुत  ठेस पहुँचाता था । विवान जानता था कि उन्हे उसके लिए एक सीधी सादी ,घरेलू ,सुशील संस्कारी बहू की तलाश थी जैसा कि पुरानी  पीढ़ी की  या अब भी गाँवो कस्बों  की अधिकांश  महिलाओं  की मानसिकता होती है ।
इसके अतिरिक्त पहनावा भी   पूर्ण  भारतीय यानि साडी ,कंगन ,पायल बिछुए वाली बहू की ही उनकी  कल्पना थी।
बिंदास ख्याल, माडर्न पोशाक और इंग्लिश  मे गिटर पिटर करने वाली , मर्दों  की तरह नौकरी कर देर रात तक  बाहर रहने वाली , मोबाइलों में  चिपकी रहने वाली  ऐसी  लडकियाँ   तो हमेशा उनके कटाक्ष के निशाने पर रहती थी और उपरोक्त सभी  विशेषताओं में  रिमि सर्वगुण सम्पन्न  थी ।
जानता था वह माँ  की  की सोच से भी परे है यह बहू लेकिन प्यार पर किसका वश है वह प्यार करता था उससे  और साथ ही ये सब तो समय की माँग है और इसमें  बुराई भी क्या है ?
वैसे तो रिमि पढी लिखी ,अच्छे गुण विचारों  की संस्कारी लडकी थी।आधुनिक होने का मतलब यह तो नहीं  होता कि उसमें कोई  बुराई है यह तो स्वाभाविक ही है समय और परिवेश के अनुसार स्वयं को  रूपांतरित  करना ।




माँ को राजी करना उसे अपनी  बी-  टेक की परीक्षा  से भी  कठिन लग रहा था । लेकिन अब यह परीक्षा  तो पास करनी ही थी तो छुट्टी लेकर घर  गया ।
वहाँ  जैसा सोचा था  उससे भी ज्यादा सीन क्रियेट हुआ लेकिन संयम धैर्य वाला था विवान सब कुछ पहले सुनता रहा फिर जब माँ  शान्त हुई तो हाथ पैर जोड़कर,इमोशनल ब्लैक मेल करके किसी तरह उन्हें,अपने प्यार और पसंद का वास्ता देकर इस रिश्ते के लिए राजी कर लिया ।
शादी  के बाद दो तीन रहकर वे लोग वापिस मुम्बई  आ गए ।तब तो सास बहू को परस्पर  एक साथ कुछ समय बैठने का भी अवसर नहीं  मिल पाया था । उन्होंने उसे सिर्फ जग दिखावे को ही बहू  माना था मन से स्वीकार नही कर पाईं थीं यह उनके  हाव भाव से ही स्पष्ट  हो गया था।
लेकिन  एक माह हो गया जब शादी को तो अब माँ को बेटे की गृहस्थी देखने की और बहू बेटे  से मिलने  की ललक हो रही थी और विवान भी चाह रहा था कि दोनों  एक साथ कुछ दिन रहकर आपसी सामंजस्य  और तारतम्यता  का अनुभवन  कर लें।
उसने रिमि को समझा दिया था कि “माँ  कुछ  दिन रहेगीं  इस दौरान यदि संभव हो तो जीन्स की जगह साड़ी सूट पहन ले । घर में  कुक तो था ही इसलिए खाने की तो कोई  फरेशानी नहीं  होगी  फिर भी अगर हो सके तो अपने हाथों  से चाय नाश्ता खुद परोस दिया करना और भी उनकी पसंद नापसंद बता  कर कहा  कि अगर संभव हो तो ——
बाकी मैं  संभाल लूँगा ।”


रिमि भी समझदार थी उसे भी इकलौते बेटे के लिए माँ के अरमानों और ख़्वाहिशों  की कद्र थी फिर विवान पर उसे भरोसा था कि वो सब संभाल लेगा।
माँ अपनी निश्चित तारीख पर घर आ गई  ।घर में  घुसते ही वहाँ  की साफ सफाई , हर चीज का सुचारू रूप से सुनियोजिन ,प्रबंधन देखकर अवाक सी खडी रह गई । कहाँ तो यह सोचकर आई थी कि नौकरीपेशा बहू को समय न मिल पाने   के कारण घर अस्त व्यस्त रखा होगा जाकर मैं उसे व्यवस्थित  भी करूँगी और उसे इस बहाने गृहस्थी को मैनेज करने  के अपने अनुभव का ताना भी दे दूंगी लेकिन यहाँ  तो उनका तीर निशाने पर नहीं  लगा ।
थोड़ी देर में  रिमि इलायची अदरक वाली चाय , समोसे और मठरी ले आई । विवान ने पहले ही बता दिया था कि अदरक वाली चाय माँ  की कमजोरी और लत दोनों  हैं ।
चाय की महकती गर्माहट ने उनका तन मन शीतल कर दिया ।थोड़ी देर आराम करने के बाद बाहर बाॅलकनी में  गई  तो वहाँ गमलों  में  विभिन्न  प्रकार के रंग बिरंगे फूलों की छटा और खूशबू ने उनका अंतर्मन  सुरभित तिरोहित कर दिया ।
अंदर ही अंदर वह बहू की सुघड़ता और सुरूचि से प्रभावित हो गई  थी लेकिन प्रकट में उसको अभिव्यक्त नहीं  कर रही थीं । वह  अपनी भड़ास निकालने का कोई न कोई  अवसर तलाश रही थीं । रात को खाने के समय कुक का  बना स्वादिष्ट खाना खाते हुए खुश होने की जगह उन्होंने  सुना ही दिया कि “हमने  तो कभी  नौकरों के हाथ का खाना नहीं  खाया । अपने हाथों  से सात्विक रसोई बनाई और खिलाई   लेकिन देखो अब इस उम्र में पता नहीं किस जात के लोंगो  के हाथ का खाकर धर्म  भ्रष्ट  हो रहा है ।बहू को  खाना बनाना नहीं  साखाया क्या माँ  ने ।”





रिमि का मुँह उतर गया लेकिन विवान बात संभालते हुए बोला  कि “कुछ कुछ बनाना  आता है लेकिन ऑफिस से आने के बाद थकान  हो जाती है इसलिए कुक रख लिया वैसे संडे को बनाती है यह जब कुक की छुट्टी होती है और अब आप आ गई  हो अपने हाथ की  पकौड़े वाली कढ़ी और भरवाँ करेले सिखा देना इसे। वो आपसे अच्छे कोई  नहीं  बना सकता ।”
बससस इतना सुनना बहुत था अपनी तारीफ सुनकर माँ  तो फूल के कुप्पा हो गई और  एक दो दिन में  ही बनाने और सिखाने की ट्रेनिंग  देने का निश्चय किया ।
रात में अपने कमरे में  सुव्यवस्थित साजो सामान और नरम गद्दे वाले साफ सुथरे बिस्तर पर लेट कर मानो स्वर्गिक आनंद आ गया उनको ।
उसी समय रिमि बादाम वाला गरम दूध ले आई तो मन ही मन ढेरों  आशीषें दे डाली उसे लेकिन ऊपर से भावहीन चेहरे से कहा कि “क्या जरूरत है इसकी अभी तो खाना खाया” लेकिन रिमि मानी नहीं  और अपने सामने ही दूध पिला कर गई ।

जो सास वहाँ  से आई थी अब उसका रूपान्तरण हो  रहा था रोल में  परिवरतन आ रहा था।
अगले दिन विवान ने उनके पुराने आउटडेटेड फोन को देखकर नया स्मार्ट फोन ले कर दिया तो खुश होने की जगह वो नाराज हो गईं  कि इसे चलाना नहीं आता कैसे प्रयोग करूँगी  तो रिमि बोली “मैं  सिखा दूँगी ।आप तो इतनी एक्टिव हैं ,एक या दो दिन में  ही सब सीख जाएंगी “एक्टिव” सुनकर  तो सास साँतवे  आसमान पर पहुँच गई और उसी समय से ही रिमि से  उनके फीचर्स के बारे में  सीखने लगी ।
रिमि ने माँ  के आने पर वर्क फ्राॅम होम ले रखा था ।
रिमि  अगर घर में  होती तो आराम से दिन में  नहाती ,नाश्ता पहले ही कर लेती ।लेकिन सास तो सुबह उठकर पहले  नित्यकर्म कर नहाती, पूजा करती, कान्हा जी को भोग लगाती और फिर कुछ खातीं ।उन्होंने  रिमि से कहा कि “अभी तो मैं यहाँ हूँ  थो भोग लगा रही हूँ  लेकिन जब मैं नहीं  रहूँगी तब भी तुम या विवान कोई  भी सुबह नहा कर  खाने से पहले भोग लगाएँ। रिमि ने भी इसमें सहमति दे दी ।
ज्यादा बात अब भी नहीं  होती थी दोनों  में बस कुछ जरूरी  हाँ  विवान के आने पर तीनों  के बीच बातचीत चलती  रहती थी।
दोनों  के बीच की बर्फ  पिघल रही थी  मगर  पानी बनकर एकसार नहीं  हुई थी ।
विवान को ऑफिस के काम से दो दिन के लिए दिल्ली जाना पड़ा ।
रिमि तो घर से ही काम कर रही थी इसलिए उसे कोई  चिंता  नहीं  थी माँ  की– लेकिन अगले दिन ही माँ  बाथरूम से निकलते ही चिकने फर्श पर फिसल कर गिर गईं ।उस समय रिमि ने  बिना घबराए, बिना विवान को फोन किए सब कुछ अकेले ही संभाल लिया ।





पहले तो ड्राइव करके उन्हें  हाॅस्पिटल ले गई, उनका एक्सरे चैकअप कराया ,डाॅक्टर से इंग्लिश में  गिटर पिटर कर सारी स्थिति  समझ ली । मामूली सा फ्रैक्चर था इसलिये  पंद्रह दिनों  के लिए प्लास्टर चढ़ा दिया गया था ।
वह बहुत एहतियात से उनको गार्ड की मदद से घर ले गई फिर डाॅक्टर के निर्देशानुसार उनके पैरों  के नीचे तकिया वगैरह और सब भी समुचित  व्यवस्था कर दी । सभी दवाइयाँ और सूप वगैरह बिल्कुल टाइम से देती । विवान से बात भी होती उसकी तो भी उसने माँ के बारे में नहीं बताया  कि शहर से बाहर है कहीँ  अपसेट न हो जाए।
ये सब देखकर माँ  की बर्फ अब पानी बनकर उनके आँखो  से अविरल बहने लगी।
तब उन्होंने सच्चे मन से उसको  ह्रदय  से लगाया उसका मस्तक चूमा और अपने हाथ से कंगन उतारकर उसे दे दिए ।
रिमि भी भाव विभोर- अभिभूत थी। माँ  के चरण स्पर्श  कर उनसे आशीर्वाद  लिया ।
विवान जब दो दिन बाद सुबह  घर लौटा तो गार्ड से ही माँ  के बारे में  पता चलने पर व्याकुलता और  असमंजस  की स्थिति  में घर में  घुसा कि पता नहीं कैसे क्या स्थिति का सामना करना पड़ेगा लेकिन घर में  घुसते ही देखा  कि —
पासा पलट गया था !!!!!
माँ तो आराम से बिस्तर पर पड़ी  मगन होकर फोन में ईयर फोन लगा कर यू -ट्यूब पर भजन सुन  रही है और रिमि नहा कर कान्हा जी को  भोग लगा रही है।
#बहू 

स्वरचित—पूनम अरोड़ा

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