रेखा टेबल पर नाश्ते का प्लेट लगाकर एक ओर खड़ी हो गई। सास-ससुर दोनों ननदें और पति खाने बैठे।
” यह क्या नाश्ते में आलू परांठा , चटनी, दही… मैं इतना भारी नाश्ता नहीं कर सकती… मैं उपमा खाऊंगी ” बड़ी ननद माया तुनककर बोली।
” क्यों तुम्हें तो आलू परांठा बहुत पसंद है “सास-ससुर एक साथ बोल पड़े।
” आजकल मैं डायटिंग पर हूं “अपनी थुलथुल काया हिलाती हुई माया गुस्से से बोली।
” भाभी… मिर्ची बहुत है चटनी में” ननद छाया ने तीर छोड़ा।
” सबका मन खाना बनाने में नहीं लगता है … हमलोग झेल रहे हैं” सासु मां ने बेटियों का समर्थन किया।
हमेशा की तरह ससुर चुपचाप और पति मोहित निर्विकार भाव से नाश्ता कर उठ खड़े हुए।
एकबार भी किसी ने तीन महीने की गर्भवती रेखा से नाश्ता के लिये नहीं पूछा।
जूठे बर्तन शेष खाद्य पदार्थ उठाकर रेखा चौके में चली गई।
किसी तरह नाश्ता किया… आज तबियत कुछ ठीक नहीं है… अपने कमरे में आ गई।
असल में दोनों ननदें गर्मी की छुट्टियां मनाने अपने बच्चों के साथ आई हुई हैं…एक महीने का प्रोग्राम है… इधर रेखा के पांव भारी है। डॉक्टर ने एहतियात बरतने के लिये कहा है क्योंकि इससे पूर्व भी लापरवाही के कारण दो गर्भपात हो चुके हैं।
तन-मन से कमजोर रेखा… मुंह दब्बू पति… बहू पर शासन करने वाले सास-ससुर और तीखी मिर्ची दो दो ननदों के बीच घिरी हुई है।
किसी को न उससे सहानुभूति है न तो कोई ममता।
” बहू, रेखा… आज दोपहर का खाना नहीं बनेगा क्या” सासु मां दोनों बेटियों के साथ टीवी देखती… चौके में कोई सुगबुगाहट नहीं देख बोली।
” अभी ही यह हाल है तब नौवें महीने में क्या होगा…” माया ने भाभी को तंग करने के लिये नाश्ते में पराठे के जगह पर उपमा बनवाई थी…अब भूख से पेट कुड़कुड़ा रहा था।
” ये ऐसे नहीं मानेगी ” छाया चिढ़कर रेखा के कमरे की ओर बढ़ी।
” भाभी,भाभी…यह क्या मजाक है…. हमें दोपहर में भूखा रखोगी क्या ” बोलते बोलते छाया को झटका सा लगा।
रेखा पेट पर किसी छोटे बच्चे का तस्वीर रखे गहरी नींद में सो रही थी। होंठों पर मुस्कान थी… शायद सपने में बच्चे से बात कर रही है।
छाया लौट आई और चौके में भोजन की तैयारी करने लगी। खटपट सुन माया और मां आई,” क्या आज तुम खाना बनाओगी… महारानी कहां हैं ?”
” आज मेरे हाथ का बना खाओ… वैसे भी हम अपने ससुराल में खाना नहीं बनाती हैं क्या… और भाभी नहीं आई थी तब भी हम भोजन पकाती ही थी न” छाया ने कहा।
दोनों मां-बेटी आश्चर्य में पड़ गई… अचानक यह हृदय परिवर्तन।
दरअसल रेखा को निश्चिंत सोते देख छाया को अपना गर्भावस्था याद आ गया।उसे भी नाश्ते के पश्चात ऐसी ही मीठी झपकी आती थी… उठने का मन नहीं करता था।
घर में कालेज जाती एक ननद और मेडिकल का छात्र देवर था। ससुर नहीं थे लेकिन ममता मयी सास थी।पति का भी पूरा अटेंशन छाया को मिलता।
” भाभी यह खाओ… भाभी वह पहनो… भाभी यहां चलो… भाभी वहां चलो” कितना प्यार सम्मान करती थी ननद रानी…अब ससुराल चली गई।देवर भी मेडिकल की आगे की पढ़ाई करने विदेश चला गया है।
घर में वृद्धा सरलमना सासु मां है और पुरुषार्थी पति और यहां मां के शह पर दोनों बहनें सीधी-सादी भाभी
रेखा को तंग करने का एक मौका भी नहीं छोड़ती।
भाई भी पत्नी की अवहेलना देख चुप्पी लगा जाता है।
उसे अपने आप पर क्रोध आया… स्वयं ननद का सुख उठाया और अपनी इकलौती भाभी को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ती।
नींद खुलने पर रेखा घबराकर चौके की ओर भागी…ओह खाना नहीं बना… आज मेरी शामत आई।
माया, छाया दोनों ननदों को व्यंजनों के साथ देख वह…सभी का मुंह देखने लगी।
” भाभी, आज हमारे हाथ का बना खाओ… और हां जबतक हम यहां हैं तुम आराम करो…कल डॉक्टर से चेकअप करा लो ” ननदों का ऐसा कायाकल्प देख रेखा… नतमस्तक हो गई।
शाम में भाई को बहनों ने टोका,” पत्नी तुम्हारी जिम्मेदारी है…उसका दुख-सुख तुम्हारा …संबल खोजता है, कल डॉक्टर से चेकअप कराओ और एक मददगार रख लो… जिससे किसी को दिक्कत नहीं हो ।”
” थैंक्स ननद रानी ” रेखा के मुंह से निकला।
” हम ननदें हैं कोई प्रतिद्वंदी नहीं… कहीं हम ननद हैं तो कहीं हमारी भी ननद है…यह रिश्ता बड़ी प्यारा है।”
बेटियों की सद्बुद्धि ने माता-पिता का मन हल्का कर दिया। ननद भौजाई की सम्मिलित हंसी से घर आंगन गूंज उठा।
मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा
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