“ताईजी आयी नहीं अब तक?” माधवी ने
राघवी को पुछा।
” उनके बिना बातों का सिलसिला आगे ही नहीं बढता।”
” कितनी चटपटी, मसालेदार खबरें होती हैं उनके पास।”
” लो, नाम लिया और….ताईजी आ गयी।”
रूपाली ने कहा तो सबके हँसी ठहाकों ने उनका स्वागत किया।
ताईजी को सब ‘ऑल इंडिया रेडिओ’ कहते थे।
छोटी सी बात भी इतना बढ़ा-चढ़ाकर बताती, मजा आ जाता। मुफ्त में मनोरंजन हो जाता। सब दुनियाभर की खबरों के ‘टच’ में रहते।
ताईजी ने आते ही फ्रीज से पानी निकालकर पिया। हाश हुश्श करती धम्म से सोफे पर बैठी।
” अरी जानती हो, मिश्रा जी की बहू…”
” क्या हुआ?”
सबके कान खडे हो गये।
” अरेरेरेरे… अरे वह कलमुंही दो बच्चों को छोड़ पड़ोसी सार्थक के साथ भाग गयी।
” ओफ्हो! बेचारे बच्चे..”
” हेतल गुड़िया को नणंद ले गयी, छोटू शिवा भुआ के पास रहेगा।”
“अकेले तो बेचारे मिश्रा जी रह गये।”
” अरी, क्यों चिंता करती हो, ढूंढ लेंगे वे भी कोई। “
दांत निपोरते रेखा ने कहा तो सब हँस पडी।
गाॅसिप करते-करते सब थक गयी तो स्वादिष्ट व्यंजनों की चर्चा शुरू हुई।
अब तक अपने-अपने मोबाइल से आज की ताजा खबर हाय लाईट हो गयी थी।
” मिल
नमक मिर्च लगी आभासी दुनिया में मिश्रा जी हनिमून से लौटे थे।
आज फिर कोई धमाका होगा। ताईजी आज बहुत खुश है। वे खुश होती है तब चिंगारिया तडतड बजती है, नमक मिर्च लगी सुस्वाद खबरें हवा में तैरने लगती हैं।
स्वरचित मौलिक कहानी
चंचल जैन
मुंबई, महाराष्ट्र