नमक का कर्ज – हरिओम बाजपेई : Moral Stories in Hindi

ब्रह्माखेड़ा  (काल्पनिक) नामक गाँव में एक दंपत्ति रहते थे जिसमे व्यक्ति का नाम हरि गौतम (काल्पनिक) पत्नी का नाम का नाम रेनुका (काल्पनिक) था वे दोनो बहुत गरीब थे फिर भी वे हमेशा खुशी के साथ रहते थे वे कृषि मजदूर के रूप में कार्य करते थे उन्हें बस एक ही दुःख था कि उनकी विवाह की २० वर्ष पश्चात् भी उनके सन्तान न थी इससे वह बहुत परेशान थे।

एक दिन उनके गाँव में एक बहुत ही तेजस्वी महात्मा ने प्रवेश किया एवं वे सभी के दुःखो के निवारण को बता रहे थे। तभी उनकी पड़ोसी ने रेणूका को भी बताया  गाँव में एक महात्मा आये है जो सभी दुखो के निवारण बताते हैं ।वह अपने पति के साथ उन महात्मन के पास पहुंची एवं उनसे अपनी सन्तान प्राप्ति की अधूरी इच्छा को बताया।

महात्मा ने बताया की इसका भी निवारण है पर अधिक कठिन है क्या तुम कर सकोगे तुम्हारी गरीबी को देख कर तो नहीं लगता की तुम कर सकोगे। उसने कहा नहीं हम कर लेंगे आप बताए। महात्मा ने कहा तो ठीक है सुनो  तुम्हे रोज सुबह उठ नित्यक्रिया निवृत होकर भगवान  शिव की पूजा करनी है एवं तुम्हे ग्यारह निर्धनों को भोजन कराना होगा ।।

ये व्रत तुम्हे 1 हफ्ते तक करना होगा। उन्होंने कहा परन्तु महाराज ये हम एक महीने के बाद करना चाहते है महात्मा ने कहा ठीक है। अब वे पति पत्नी खूब मेहनत करने लगे अब वे 18 – 18 घंटे तक मजदूरी करते रहते व  धन की व्यवस्था करते थे । पैसे की व्यवस्था हो जाने ‌के बाद उन्होने महात्मा द्वारा बताये गये उस व्रत को करना  सुरु किया हफ्ते के6 दिन तो अच्छी प्रकार से निकल गये

परन्तु सातवे दिन के लिए घर पर अनाज का एक दाना तक न बचा फिर उन्होंने अपना  घर गिरवी रखा और उससे जो पैसे मिले उससे उन्होने व्रत करके 11 निर्धनों को भोज्य कराया और जैस ही वह भोज्य करने को बैठे तभी एक बालक दरवाजे पर आकर खाने को  मांगता है

उसने तीन दिन से कुछ नहीं खाया अब उनके पास एक ही व्यक्ति के लिए पर्याप्त भोजन ही था परन्तु उन्होंने उस निर्धन को अपना भोजन दे कर खुद ही जल पीकर सो गए।।

वह बालक वहां से चला जाता है। अगले कुछ दिनों बाद उन दंपत्ति के एक पुत्र प्राप्त होता है अब उनकी स्थिति भी सुधरने लगती है वे अपने पुत्र को बहुत लाड प्यार से पालते है अच्छी शिक्षा देते है अब वह बड़ा हो जाता है एक अच्छी नौकरी पा जाता है  एवं उसकी शादी हो जाती है। शादी के कुछ समय तक तो सब ठीक था परन्तु कुछ समय बाद बहु उन दंपति से चिढ़ने लगती है

जो अब बूढ़े हो गए थे एवं आंख की रोशनी भी कम हो गई थी एवं उन्हें वृद्धाश्रम भेजने की जिद अपने पति से करने लगती है  वह पति से रोज लड़ती है  उनका पुत्र तंग आकर उन बूढ़े दंपत्ति को बाहर घूमने के  बहाने ले जाकर कही दूर  छोड देता है। जहाँ से वे लौट न सके अब बूढ़े दंपत्ति इधर उधर भटकने लगते है

तभी उन्हें एक  व्यक्ति मिलता है वह उन दोनों को अपने घर ले जाता है एवं उनकी सेवा करने लगता है एवं उन्हें अपने घर में ही रहने को कहता है ।

जब उन दंपत्ति ने पूछा कि तुम कौन हो तब वह बताता है कि मैं वही बालक हु जिसे आपने अपना भोजन मुझे दे दिया था अब मैं एक जिला अधिकारी हूं अब मैं आप दोनों को अपने पास रख कर उसी नमक का कर्ज अदा करूंगा यदि आप दोनों उस दिन मुझे भोजन न देते तो शायद मैं जीवित न बचता।।

उन दंपत्ति ने उसे आशीर्वाद दिया एवं कहने लगे जिन्हें हमने जीवन भर अपना पेट काट कर खिलाया पाला उसने हमे रोड पर छोड़ दिया परन्तु तुमने एक दिन का नमक का कर्ज जीवन भर उतारने की बात करते हो तुम धन्य हो।।

    यह कहानी मौलिक एवं स्वरचित है

लेखक परिचय

                 हरिओम बाजपेई

                  ग्राम/पोस्ट खरौली 

                 जिला उन्नाव उत्तर प्रदेश

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