दिल्ली का प्रसिद्ध पब्लिक स्कूल “ब्लू बैल” में एडमिशन प्रतिष्ठा की बात थी,शहर के नामी गिरामी लोगों के
बच्चे वहां शिक्षा प्राप्त करते थे और ऊंची पोस्ट तक पहुंचते थे।वहां एक चौकीदार था जिसका नाम था
रघुनाथ,बहुत ही सरल,ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ।
उसकी सैलरी इतनी नहीं थी जिसमें वो अपने परिवार का भरन पोषण दिल्ली जैसे महानगर में कर सके,बूढ़े
मां बाप,अविवाहित बहन भाई,पत्नी और तीन बच्चे।पर स्कूल का कोई भी काम हो ,वो पूरी मुस्तैदी से अपनी
ड्यूटी निभाता,किसी बच्चे की कोई चीज खो जाए,किसी टीचर की फाइल या किताब मिस हो जाए,किसी
पेरेंट्स को कोई समस्या हो,रघुनाथ हर काम को हल कर देता मानो उसके पास की जादू का चिराग हो।
स्कूल के प्रिंसिपल उससे बहुत खुश रहते,एक बार वो अपना बेटा आदित्य स्कूल लेकर आया, कोई सामान्य
ज्ञान प्रतियोगिता थी वहां,सारे लोग चकित रह गए उसके बेटे आदित्य की प्रतिभा देखकर।
प्रिंसिपल ने उसके बेटे को स्पेशल स्कॉलरशिप पर आदित्य को अपने स्कूल में एडमिशन दे दिया। बिना
ट्यूशन और कोचिंग के वो होनहार लड़का टॉप करने लगा।रघुनाथ स्कूल के इस उपकार के लिए कृतज्ञ था।
आदित्य इंजीनियर बना और फिर यू पी एस सी क्लियर कर आई ए एस अधिकारी बना।
एक दिन चमचमाती सुबह थी,स्कूल के प्रांगण में एलुमिनी मीट का आयोजन किया जा रहा था,बहुत भीड़
थी,बहुत से छोटे बड़े विद्यार्थी वहां इकठ्ठे थे।
अचानक एक बड़ी शानदार कार स्कूल के मेन गेट पर आकर रुकी जिसे ड्राइवर ने खोला,शानदार सूट पहने
एक नौजवान उसमें से निकला और दरवाजे पर खड़े चौकीदार रघुनाथ के पैर छू लिए,उन्हें साथ लेकर वो
प्रिंसिपल ऑफिस में पहुंचा।
ये आदित्य रघुनाथ था ,उस चौकीदार का बेटा,उसके पिता ने भले ही अभी भी वो पुरानी नौकरी नहीं छोड़ी थी
लेकिन आदित्य ने सबके सामने ये घोषणा की…
आज मैं जो कुछ भी हूं, वो इस स्कूल प्रशासन,अधिकारियों की वजह से हूं,इन सबका नमक खाया है मैंने,न वो
मुझे स्कॉलरशिप देते,न मैं पढ़ाई कर पाता और इस उच्च पद तक पहुंचता,आज वक्त है कि मैं उस नमक का
हक अदा करूं।आज से “रघुनाथ स्कॉलरशिप” हर उस प्रतिभाशाली बच्चे को दी जाएगी जिसपर मेरी तरह
आर्थिक तंगी है।भविष्य में कोई बच्चा” असक्षम आदित्य” नहीं रहेगा,उसे पूरा मौका मिलेगा उसी तरह जैसे
मुझे मिला था और इस स्कॉलरशिप को मेरे पिता के नाम से चलाया जाएगा,इस तरह ही मैं उस नमक का
हक अदा करूंगा।
डॉक्टर संगीता अग्रवाल
वैशाली,दिल्ली