क्या ज्योति मैडम…कल भी वो फाइल मेरे टेबल पर नहीं आई जो आपको परसों देने कहा था…क्या चल रहा है यहां ये ऑफिस है या चिड़ियाघर??—बाॅस ने सुबह आते ही ज्योति से सवाल किया।
सर…वो फाइल तो मैंने परसों ही रामदीन को दे दिया था–ज्योति आश्चर्य से बोली।
हां मैडम आपने दिया तो था..पर बताया कहां था कि इसे बड़े साहब की टेबल पर छोड़ना है तो मैंने वो फाइल और फाइलों के साथ रख दी… मैंने तो आपसे पूछा भी था मैडम रखना है तो आपने “हूं” भी कहा था—पास खड़े रामदीन ने अपनी सफाई दी।
तभी ज्योति को याद आया कि फाइल तो उसने पूरे ध्यान से पूरी की पर रामदीन को पकड़ाते वक्त वंश की फैंसी ड्रेस कंपीटिशन की बात उसके ध्यान में चल रही थी कि ऑफिस से लौटते समय उसे शाॅप से ड्रेस भी कलेक्ट करना है,शायद उसी धुन में उसने “हूं” कर दिया हो रामदीन को।
देखिए ज्योति मैडम…आप अपने काम को अभी भी सीरियसली लीजिए वरना…
साॅरी सर…आगे से नहीं होगा।
“आगे से नहीं होगा” ये वाक्य ज्योति की जिंदगी का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका था…घर,बाहर और ऑफिस तक में उसने इसे इतनी बार दोहराया होगा।
दरअसल ज्योति यूं तो एक बहुत अच्छी कार्मिक,पत्नी, मां,बहू और इंसान थी..पर उसकी एक आदत थी कि शुरू से दिमाग में एक साथ बहुत सारी बातें चलाती रहती थीं जिसकी वजह से जो काम कर रही होती उसमें कभी ना कभी कुछ ना कुछ गड़बड़ी हो जाती या अक्सर भूल जाती…बस फिर क्या.. जहां होती वहीं उसे जबरदस्त भाषण पिलाया जाता…।
लापरवाह है!! काम में ध्यान नहीं लगता!!पता नहीं क्या क्या चलाती रहती है दिमाग में!! एक साथ इससे दो काम नहीं संभलते!! औरत वाले लक्षण ही नहीं एक भी!! सलीका तो मां बाप ने सिखाया ही नहीं!!
ये सारी बाते सुनती और शर्मिंदा व दुखी होती रहती..घर में और बाहर भी वो ये सब सुनने की आदी हो गई थी और इसके कारण अपना आत्मविश्वास भी धीरे धीरे खोती जा रही थी,पर ये एक ऐसा मर्ज था जिसका इलाज उसके पास नहीं था क्योंकि वो किसी की भी बात टाल नहीं सकती थी,जिसके चक्कर में उसके सामने कामों के ढेर लगे रहते और वो उनमें दबी रहती ।
पर अब उसका भी मन आजीज हो चुका था और वो चाहती थी कि कुछ ऐसा हो जिससे वो सबका मुंह बंद कर सके..वो ऐसी ही है..बदल नहीं सकती..इसका क्या मतलब है कि उसकी सारी शिक्षा दीक्षा और काबिलियत उसकी इस आदत की भेंट चढ़ जाएंगे और हर कोई बड़ा हो या छोटा उसे सुनाकर चला जाएगा…आज बाॅस तो बाॅस रामदीन भी उसे दबाने की कोशिश कर रहा था,घर में सास तो सास अब अपना बच्चा भी उसे हल्के में लेने लगा है…आखिर कब तक??
क्या उसकी एक कमी उसकी सारी अच्छाईयों के नीचे नहीं दब सकती??कब तक घर और बाहर शर्मसार होती रहेगी वो भी उस चीज के लिए जो सिर्फ उसके अंदर तक सीमित है.. नहीं कुछ तो करना होगा…करना ही होगा।
बहू… मैंने तुमसे कहा था चार दिन पहले कि मेरी सहेली के शादी की पचासवीं वर्षगांठ हैं..कुछ गिफ्ट मंगवा देना या ला देना,लाई या फिर भूल गई—घर घुसते साथ सास ने सवाल दागा।
आपको तो पता ही है कि मुझे भूलने की बीमारी है तो कहती ही क्यों है??
सास को जवाब की उम्मीद तो थी पर ऐसे जवाब की नहीं,लगा था बहू कहेगी—साॅरी मम्मीजी..कल पक्का ले आऊंगी,बस शाम में एक बार आप फोन कर देना।
पर आज तो बहू के तेवर …।
मम्मा…मुझे पता था आप आज भी मेरी फैंसी ड्रेस नहीं लाओगे —वंश ने कोई भी एक्सट्रा बैग नहीं देखते ही हल्ला मचाना शुरू कर दिया।
बेटे… फैंसी ड्रेस शाॅप आपके पापा के ऑफिस के पास है,अभी पापा निकले नहीं होंगे आप उन्हें फोन करो और कह दो कि वो लेते आएं…ओके—कहकर ज्योति अपने रूम में घुस गई।
आज काम ना करने के बाद भी जवाब देकर उसे बजाय अपराधबोध के बहुत अच्छा लग रहा था…।
दो तीन दिन बाद फिर ऑफिस में किसी बात पर बाॅस ने कहा — आपको अपनी आदत छोड़नी होगी वरना…
वरना…क्या सर..निकाल देंगे…शौक से निकाल दीजिए,मेरी डिग्रियां और अनुभव है मेरे पास,मिल जाएगी मुझे नौकरी बहुत सारी…मेरे काम में गलती हो तो मैं जरूर अपने आप को ग़लत मान लूंगी..पर अपनी आदत की वजह से मैं अब नहीं सुनूंगी…साॅरी सर—कहकर निकली तो उसने देखा बाॅस ही नहीं, रामदीन ही नहीं,हर स्टाफ के चेहरे पर एक तरह का आश्चर्य पसरा था।
अब ज्योति को एहसास हो रहा था कि वो खुद पर इतने सारे काम लादती है तभी तो ऐसा होता है,शादी से पहले तो किसी ने कभी कोई सवाल नही उठाया उसपर पर आज…? अगर काम का बंटवारा हो जाए तो क्यों चलेंगी एक साथ दस चीजें दिमाग में….ऑफिस में उसके काम के परफेक्शन को देखकर कई बार बाॅस दूसरे का काम भी उसे पकड़ा देते हैं, क्योंकि वो ना नहीं कहती…भला क्यों करें वो काम..वो दूसरे की ही फाइल थी जिसके कारण वो उस दिन लेट हुई और खामखां गुस्से की पात्र बनी।
और घर का हर इंसान भी तो हर बात के लिए उसपर निर्भर रहता है,गिफ्ट शाॅप सोसायटी में भी है,क्या सासू मां जब टहलने या मंदिर जाती है तो नहीं ले सकती?? वंश की ड्रेस उसके पापा क्यों नहीं ला सकते??सब्जी फल दूध दुकानदार को फ़ोन करके घर पर भी तो मंगवाएं जा सकते हैं क्यों लौटते हुए उसे ही लेकर आना है ,
यहां तक की मेड भी क्या बनेगा ?? उसी से फोन करके पूछती है तो… वाजिब सी बात है…उसका दिमाग कंप्यूटर तो नहीं??
चाहे अनचाहे अनगिनत कामों के बोझ और सबकी भर भरके उम्मीदों ने ने आज उसकी ये हालत बना दी कि वो भूलने भी लगी और अपना आत्मविश्वास ही नहीं आत्मसम्मान भी खोने लगी…अब उतना ही करेगी जितने में उसके दिमाग में हलचल ना मचे…और जो नहीं हो पाएगा..उसके लिए ना भी बोलेगी।
अब शर्मिंदा नहीं होना उसे…. आत्मविश्वास भरा जीवन जीना है..अपनी क्षमता के अनुसार चलना है…छोटी हुई चीजों के लिए शर्मसार नहीं होना है..अब पहले अपनी उम्मीदों को पूरा करना है बाद में किसी दूसरे की…।
“आगे से नहीं होगा” अब भी उसकी जिंदगी का हिस्सा रहेंगे..पर आगे से नहीं होगा…अब गलती के लिए नहीं काम के लिए बोलेगी वो….!
#उम्मीद
मीनू झा