बेटा, तुझे दिखावा करने की कोई जरूरत नहीं। –  सविता गोयल

 ये क्या भईया !! ना आपने सारे नाते रिश्तेदारों को न्योता दिया और ना हीं भोज का आयोजन सही तरीके से रखा। समाज में क्या इज्जत रह जाएगी हमारी। अरे पैसे कम पड़ रहे थे तो एक बार बोल दिया होता मैं हीं कुछ इंतजाम कर देता….    मेरे ससुर जी भी पापा की तेरहवीं पर आने वाले हैं वो क्या कहेंगे कि उनके दामाद ने अपने पिता की तेरहवीं भी ढंग से नहीं की  !!  आपसब को तो पता हीं है कितने बड़े आदमी हैं वो….. मेरी क्या इज्जत रह जाए गी उनके सामने। ,, कमल का छोटा भाई विमल अपनी हीं रौ में बोलता जा रहा था ।

मनोहर जी को गुजरे आज ग्यारह दिन हो गए थे। पिछले दो साल से वो बहुत पीड़ा में थे। कैंसर की बिमारी में एक एक दिन सालों की तरह गुजर रहे थे।उनका बड़ा बेटा कमल और बहू मीना ने अपने पिता की सेवा और इलाज में अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी। किराने की दुकान में इतनी ज्यादा कमाई तो नहीं थी लेकिन फिर भी जितना बन पड़ा उसमें उन्होंने कभी अपना हाथ पीछे नहीं खींचा ।

बड़ा बेटा कमल अपने माता-पिता के साथ हीं रहता था और छोटा बेटा जबसे पढ़ लिखकर शहर में इंजिनियर बना था कभी पलटकर अपने घर का रूख नहीं किया। नौकरी अच्छी थी तो अच्छे बड़े घर की बेटी का रिश्ता भी आ गया था। अब तो विमल के और भी पंख लग गए थे।

    पिता की बीमारी का पता होने के बाद भी कभी उसने उनके इलाज और देखभाल की जिम्मेदारी नहीं ली। एक बार कांता देवी ने बड़ी उम्मीद से कहा भी, ” बेटा, कमल का हाथ थोड़ा तंग रहता है ऊपर से तेरे पिताजी की बीमारी पर बहुत पैसा खर्च हो रहा है। तूं थोड़ी मदद कर दे तो उसे राहत मिलेगी। ,,

  इसपर पलटते हुए विमल बोल पड़ा, ” मां, आपको क्या पता मेरी कमाई से ज्यादा तो मेरा खर्च है। आपलोग तो यहां पुश्तैनी मकान में रहते हो लेकिन मुझे तो हर महीने फ्लैट का किराया भी देना पड़ता है। आगे मेरा परिवार भी बढ़ रहा है तो ख़र्चे भी बढ़ रहे हैं ….  फिर इस बिमारी का क्या पता ठीक हो ना हो!!  बेकार में लुटने पीटने से क्या फायदा। ,,



बेटे के मुंह से ऐसी बात सुनकर कांता जी की सारी उम्मीदें टूट गई थी। उन्होंने कभी दोबारा उसे किसी प्रकार की मदद के लिए नहीं टोका।  मनोहर जी बच तो नहीं पाए लेकिन अपने बड़े बेटे बहू के सेवाभाव को देखकर उनके हृदय से हमेशा उनके लिए आशिर्वाद हीं निकलता था। 

    कांता देवी पति की मृत्यु से आहत थीं ऊपर से आज मनोहर जी की तेरहवीं पर आए विमल के मुंह से ये सब सुनकर उन्हें उन्हें बहुत बुरा लग रहा था ।

   अपने बड़े बेटे को असमंजस में पड़ा देख आज कांता देवी बोले बिना नहीं रह पाई  ,” कमल तुझे किसी की बातों में आकर अपनी हैसियत से बाहर कुछ करने की जरूरत नहीं है। तूने अपने पिता के जीते जी उनकी जो जी जान से सेवा की है वो उसी से तृप्त हो गए हैं। ये ऊपरी दिखावा और कर्मकांड उनके लिए अब कोई मायने नहीं रखते। तूं जितना कर रहा है वो बहुत है … तेरे पिताजी की आत्मा तो तेरी सेवा से हीं तृप्त हो गई है बेटा। तूं हमारी उम्मीदों पर खरा उतरा है…..  बस पांच ब्राह्मणों को भोजन करा दे और अपने पिता का तर्पण कर दे..….  ,,

फिर कांता देवी विमल के मुखातिब होते हुए बोलीं, ” आज तुझे यहां सारे कामों में जो कमी नजर आ रही है वो उस समय क्यों नजर नहीं आई जब तेरे पिताजी बिमारी से तड़प रहे थे और तेरा ये भाई तंगी से जूझते हुए भी रोज उन्हें ले लेकर अस्पताल के चक्कर लगा रहा था। अपने दिन का चैन और रातों की नींद की भी परवाह नहीं थी इसे। उस समय तो तेरे मुंह से एक बार भी नहीं निकला कि भईया पिताजी के इलाज में मैं कुछ मदद कर दूं…. उस वक्त तुझे यहां कोई कमी नजर नहीं आई??  बेटा तूं तेरे पैसे अपने पास रख पता नहीं कब तुझे इनकी जरूरत पड़ जाए।  मां हूं इसलिए कभी अपने दिल और जुबान से तेरा बुरा नहीं सोचूंगी ….. लेकिन बेटा जब तेरे बच्चे अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ेंगे तब तुझे अपने मां बाप का दर्द समझ में आएगा। 

   विमल अपना सा मुंह लेकर रह गया। उसमें अपनी मां और भाई से नजरें मिलाने की हिम्मत भी नहीं हो रही थी।  कमल ने अपने सामर्थ्य अनुसार अपने पिता का तर्पण और भोज कराया।

  कांता देवी के चेहरे पर आज संतुष्टि का भाव था। उन्हें विश्वास था कि उनके पति तृप्त होकर इस दुनिया से विदा हुए हैं …. उन्हें किसी दिखावे की आवश्यकता नहीं। 

#उम्मीद 

 सविता गोयल 

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