ना बेटा बुरा ना बेटी – संगीता अग्रवाल

“पापा आप अकसर अखबार पढ़ते मे मुस्कुरा कर मुझे प्यार क्यों करने लगते हैं.” आठ साल की बुलबुल ने अपने पापा रवि से पूछा.

” कुछ नही लाडो बस ऐसे ही जा तू स्कूल जा, अच्छे से पढ़ना.” रवि ने बेटी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा.

” बेटी को ना सही हमे तो बताइये क्यों अजीब सा व्यवहार होता है आपका अखबार पढ़ने बाद ” रवि की पत्नी स्मिता ने पूछा.

” स्मिता मैं हमारे बेटा नही होने से दुखी था.. पर अब जब भी अखबार पढ़ता हूँ इसमें खबरें देखता हूँ.. उसके बेटे ने घर से निकाल दिया.. उसके बेटे ने वृद्धाश्राम छोड़ दिया.. तो मुझे लगता है अच्छा है हमारे बेटा नही बेटी है.. क्योंकि आजकल के बेटे मतलबी होते है उन्हे माँ बाप नही उनकी दौलत से प्यार होता है….. तब मुझे अपनी बुलबुल पर बहुत प्यार आता है.. क्योकि वो बेटी है ! “

” आप भी ना कुछ भी सोचते है.. ” स्मिता ने कहा!

वक़्त अपनी रफ्तार से बढ़ता रहा साथ साथ बुलबुल भी बड़ी होती गई और स्मिता – रवि बुड्ढ़े हो गए..

बुलबुल पढ़ लिखकर डॉक्टर बन गई और अपने साथ के ही एक डॉक्टर से उसने माँ बाप की रज़ामंदी से शादी भी कर ली !

“अरे कैसे गिर गए आप” एक दिन रवि नहाते हुए फिसल गया!

” स्मिता डॉक्टर को बुलाओ लगता है हड्डी टूट गई! ” रवि दर्द से कराहते हुए बोला!

रवि की जांघ की हड्डी टूट गई उसे अस्पताल भर्ती कर दिया गया.

” स्मिता बुलबुल को बताया तुमने? ” ओपरेशन के बाद रवि बेड पर लेटा हुआ बोला!


” हाँ बताया था जब अस्पताल ला रहे थे तभी बताया था “

” मिलने नही आई तब भी मुझसे अबतक “

” उसने कहा जमाई जी के साथ बंगलौर जाना है उसे.. डॉक्टर से बात कर ली उसने और बोली ध्यान रखो पापा का डॉक्टर सब अच्छे है ये मैं आके क्या करूँ देखभाल तो तब भी नर्स करेगी बंगलौर से आने पर टाइम निकाल आऊँगी ” स्मिता ने धीरे से कहा!

अचानक रवि जोर जोर से हँसने लगा..

” अरे क्या हुआ आपको ऐसे क्यों हंस रहे ठीक तो है सब.. बोलिये डॉक्टर को बुलाऊँ.” स्मिता चिंतित हो बोली!

” ना स्मिता मैं ठीक हूँ चिन्ता ना कर.. मैं तो अपनी सोच पर हँस रहा जो सोचता था की बेटा खराब है… स्मिता ना बेटा खराब है ना बेटी खराब है… खराब तो आजकल की हवा है जिसने रिश्तों को प्रैक्टिकल बना दिया है और हम पुराने समय के लोग आज भी इमोशन से जुड़े… “

” ये तो सही कहा आपने… पर सारी दुनिया एक सी नही है.. आज भी बेटा अपने बाप का कंधा बनता है और बेटी माँ की परछाई… दुनिया मे अच्छाई है तभी दुनिया है आप ज्यादा मत सोचो आराम करो.”

दोस्तों इस कहानी से आप मे से बहुत से लोग इत्तेफाक नही भी रखते होंगे पर ये भी हमारे समाज़ का एक सच है… बेटा ही गलत हो ये जरूरी नही और हर बेटी सही हो ये भी जरूरी नही..

आपकी दोस्त

संगीता ©®

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