मूंगफली वाली पनीर – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

“रविवार को एक दिन तो छुट्टी मिल जाती है तुम सबको,पर घर की औरत का जीना दूभर हो जाता है।एक दिन पहले से अपनी फरमाइश की फेहरिस्त बनाकर रख लेते हो,फिर सुबह से नाक में दम कर देते हो।ये दोनों बच्चे भी ना,तुम्हें घर में पाकर जैसे हांथी के पांच पांव देख लेते हैं।मजाल है,मेरी कोई बात इनके कानों में पड़े।ग्यारह बज गए हैं,अभी साहबजादों का नाश्ता नहीं हो पाया,ना ही पढ़ने बैठे हैं।तंग आ गई हूं मैं रवि।अगले हफ्ते से मैं ही छुट्टी पर चली जाया करूंगी कहीं इतवार को।संभालना बाप ,बेटे और बेटी मिलकर सारा घर एक दिन।”अनुभा आज सुबह से बड़बड़ाए जा रही थी।रवि चुपचाप अखबार मुंह के आगे रखे सुन रहे थे।इतना तो समझ में आ गया था

कि दोपहर के खाने में आज पक्का देर होगी।अचानक से रवि ने अनुभा को छेड़ते हुए कहा”अरे,अनु!आज तो तुम्हारी किटी है ना शाम को?मैन्यू सोच लिया है ना फाइनल।पिछली बार की तरह आखिरी मौके पर आइटम में बदलाव मत करना।मैं चार बजे बच्चों को पिक्चर दिखाने ले जाऊंगा।तुम्हारी किटी खत्म होने पर ही आएंगे हम वापस।जो भी मंगाना हो, अभी कह देना।”पहले से खौल रही अनुभा पर जैसे किसी ने अंगारा रख दिया हो,बड़बड़ाने लगी”हां-हां,और ताना दो मेरी किटी का।

बारह सदस्य हैं।दस महीनों से तो दूसरों के यहां पार्टी हुई,अब मेरी बारी है तो बुलाना तो पड़ेगा ना।मेरा बस चले ना तो सब रेडीमेड ही मंगवा लूं,पर वो मिसेज कृष्णा आईं हैं ना,बैंक मैनेजर की पत्नी।उन्हें घर के बने खाने ही अच्छे लगते हैं।उनकी देखा-देखी अब सभी ने घर पर ही बनाना शुरू कर दिया है।

पनीर तो मैंने मंगवा लिया है,मैदा भी है।आलू की सब्जी,पूड़ी ,रायता ,पुलाव और शाही पनीर बना रही हूं।दूसरों से एक आइटम ज्यादा ही होगा।आखिर मेरी भी इज्जत है,किसी ऐरे -गैरे की नहीं ओ एस की पत्नी हूं आखिर।तुम बस मीठा , डिस्पोजल प्लेट,ग्लास और कटोरी चम्मच ले आना।इन दोनों को जरा देर के लिए संभाल लेना।रानी आएगी साथ में हांथ बंटवाने।”

रवि ने बाइक में गुड्डू और बबिता(बेटे-बेटी)को बैठाया और दुकान के लिए चल पड़ा।अभी दुकान पहुंचा ही था कि फोन घनघनाने लगा”हैलो!हां सुनो जी।मूंगफली थोड़ा और लेते आना।”रवि ने याद दिलाते हुए फिर से पूछा”सोच कर बता दो,और कुछ बचा है क्या?बाद में अकेली परेशान हो जाओगी।हां वैसे इडली या डोसा तो बना नहीं रही तुम,तो फिर मूंगफली का क्या करोगी?चिक्की बनानी है क्या मीठे की जगह?”

“हद करते हो तुम भी,अब मैं चिक्की बनाती बैठूंगी क्या?अरे शाही पनीर के लिए काजू कम और मूंगफली ज्यादा मिला दूंगी।ग्रेवी भी गाढ़ी बन जाएगी,स्वाद भी अच्छा आएगा।सुनो,मीठा अपनी पसंद का,फिर बच्चों की पसंद का मत बंधवा लेना।बेटे -बेटी की शादी की पार्टी नहीं है,किटी पार्टी है औरतों की समझे।”

रवि ने अलग से कोल्ड ड्रिंक्स और आइसक्रीम भी ले ली। गर्मी का प्रकोप पड़ रहा था भयंकर।औरतें बिचारी चार बजे से भरी धूप में आएंगी।एक तो ये पंक्चुअलिटी गेम बना दिया है किटी में।भरी दुपहरी से जो शुरू होती है किटी,साढ़े सात बजे कम से कम ख़त्म होती है।

घर आकर ज्यों ही सामान खोला अनुभा ने,त्योरी चढ़ाकर पूजा”ये कोल्डड्रिंक और आइसक्रीम इन दोनों ने जबरदस्ती लिवाया है ना?मालूम है मुझे,बस दुकान दिख जाए एक बार।फिर तो ऐसा पाकेट लुटाएंगे कि कभी कुछ ना खाया हो।और एक इनके पापा हैं,खिलाने की बात आई नहीं कि सारे बचपन और जवानी की पसंदीदा मिठाई ढूंढ़ ही लेते हैं।अरे समझ रहे हो!मिलना उतना ही है जितना औरों को मिलता है।खिलाने -पिलाने में अपनी ही जेब से जा रहा है।थोड़ा कम उचका करो खरचने की बात पर।मैं ग़लत नहीं कहती,ये दोनों बच्चे और तुम लुटिया डुबो ही दोगे एक ना एक दिन।बच्चों को बाहर सिर्फ घुमाना,खिलाने ना बैठ जाना किसी होटल में।”

गुड्डू और बबिता को लेकर चार बजे ही पिक्चर के लिए निकलते समय पड़ोस वाली आंटी को फोन लगाकर रवि ने अनुभा की सहायता करने का अनुरोध कर दिया था।हॉल में पहुंच कर बड़ी राहत मिली रवि को।शाम हो गई थी।पिक्चर भी खत्म हो गई।रवि ने बच्चों के साथ घर लौटने से पहले फोन लगाया कई बार अनुभा को।पर वो तो रिसीव ही नहीं कर रही थी।बेटी ने समझाया कि गेम चल रहा होगा।बस कुछ देर में खत्म ही हो जाएगा।रवि और बच्चे घर में घुसते हुए बहुत खुश‌ थे,

कि चलो इस बार एकमुश्त पैसे आएंगे घर में।कहीं बाहर घूमने जाने के लिए मनाना पड़ेगा ।रवि ने बेटे को समझाते हुए कहा “मम्मी को परेशान ना करना। उनका कहना मानोगे तो आसमान नहीं फटेगा।अरे सारा दिन अकेली खटती रहती हैं।कल से दोनों भाई-बहन मदद करोगे मम्मी की।अपना होमवर्क भी पूरा कर लेना नहीं तो मम्मी किटी का एक रुपया भी नहीं देंगी घूमने जाने के लिए समझे।”दोनों बच्चों ने सहमति में सर हिलाया।

घर के अंदर एक दो औरतें बैठीं ही थीं अभी भी।बच्चे गजब की एक्टिंग करते हुए मम्मी से लिपटकर उनका हाल पूछ रहे थे।बेटे ने तो बिना कहे ही बैठी हुई आंटीयो के पैर छुए।वे गदगद तो हुईं अवश्य,पर अनुभा ने रवि की तरफ सवालिया नज़रों से देखा।रवि झेंपकर अंदर जाने लगा तभी बेटे ने लगा दी लंका।अनुभा ने परिचय करवाया बेटे को मिसेज कृष्णा से तो वह पनीर की प्लेट देख तपाक से बोल उठा”अरे आंटी,आपने शाही पनीर पूरा नहीं खाया???? मम्मी ने स्पेशल आपके लिए बनाया था

।बोल रहीं थीं मैनेजर की पत्नी हैं तो धौंस जमाती हैं।मैं भी पनीर ही खिलाऊंगी।कैसा बना है आंटी पनीर?”मिसेज कृष्णा की तरफ देखने की हिम्मत नहीं थी अनुभा की। उन्होंने बड़प्पन का परिचय देते हुए कहा”बेटा आपकी मम्मी बहुत अच्छा खाना बनातीं हैं।सारी डिश बहुत अच्छी लगी हमें।वो बता रहीं थीं कि आप सब उनकी बहुत मदद करते हो।मम्मी बता रहीं थीं आपको भी शाही पनीर पसंद है।सच में?”

बेटा आज सारी इज्जत उतारने की तैयारी में था।बोला”हां आंटी,बहुत पसंद है।जब घर पर मम्मी बनाती हैं ,बनाती तो कम हैं पर काजू मन से डालतीं हैं।मुझे काजू वाली पसंद है।”मिसेज कृष्णा ने प्यार से कहा”जाओ,हांथ धोकर आओ और यहीं टेबल पर खाना लगा है खा लो।हम बस निकल ही रहें हैं।थैंक यू वैरी मच अनुभा जी,इतने अच्छे डिनर के लिए।”उनकी बात खत्म होती,वो बाहर तक निकल पाती,उससे पहले ही बेटे ने कच्चा चिट्ठा खोलना शुरु कर दिया”मम्मी,हम लोगों के लिए भी क्या यही मूंगफली वाला पनीर है?मैं नहीं खाऊंगा।”

बेटे ने अनजाने में ही सही अनुभा के झूठ का कच्चा चिट्ठा खोल ही दिया।

मेहमानों को विदा कर जैसे ही अनुभा अंदर गई तड़ातड़ थप्पड़ जड़ दिए बेटे के गाल में और बोली”क्या जरूरत थी,मेहमानों के सामने मेरी बेइज्जती करने की।थोड़ी देर और चुप नहीं रह सकता था?क्या सोचेंगी मिसेज कृष्णा?मैंने तो काजू बादाम वाली ग्रेवी बताई थी।अपने पापा से सीख नहीं सकता ,कभी दूसरों के सामने छोटा नहीं करते मुझे।और ये औलाद हैं।”पिंकी टेबल से प्लेट उठाकर रसोई में ले जाने लगी,तो अनुभा ने चिढ़कर कहा”कोई जरूरत नहीं मेरी चिंता करने की।मैं कर लूंगी अकेली।तुम लोग तो जाओ,खाने का मन हो तो बताओ,परोस दूं।पापा को दे देती हूं खाना।”

“अरे नहीं अनु,तुम थक गई होगी,बैठो मैं ले लेता हूं।किचन भी साफ करवा दूंगा मैं ।तुम रिलैक्स रहो।”रवि के शहद से बोल सुनकर अनुभा ने बेटी की तरफ गुस्से से देखा तो उसने भी एक और कच्चा चिट्ठा खोल दिया”मम्मी,हम आपका सब काम में मदद करेंगे ,तो आप किटी के पैसे पापा को दे देंगी ना घूमने जाने के लिए?”

अब अनुभा और रवि दोनों लज्जित थे,अपने बच्चों के सामने उन्होंने ही ग़लत उदाहरण प्रस्तुत किया था। उन्होंने ही मौका पाकर सच सामने ला दिया।परिवार में समर्पण अति आवश्यक है,झूठा दिखावा नहीं,रवि और अनु दोनों समझ चुके थे।

शुभ्रा बैनर्जी

कच्चा चिट्ठा खोलना

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