राहुल मेहरा 35 साल का युवा उद्यमी था, जिसने "ग्रीनलाइन टेक" नाम से एक ग्रीन एनर्जी स्टार्टअप खड़ा
किया था। कुछ ही सालों में वह कंपनी 100 करोड़ की वैल्यूएशन तक पहुंच गई। राहुल अपने आइडियाज को
लेकर जुनूनी था, लेकिन उतना ही आत्मकेंद्रित भी।
जल्द ही, निवेशकों का दबाव बढ़ा और राहुल ने मुनाफा बढ़ाने के लिए एक सस्ता लेकिन पर्यावरण को
नुकसान पहुंचाने वाला विकल्प चुना—जो उसकी कंपनी के मूल मूल्यों के खिलाफ था।
उसकी सबसे पुरानी सहयोगी, स्नेहा, जो कंपनी की सह-संस्थापक भी थी, ने इसका विरोध किया।
राहुल!ये मैं क्या सुन रही हूं, तुमने उस कंपनी का ऑफर कैसे स्वीकार कर लिया, उससे तो हमारे सारे आदर्श
मिट्टी में मिल जाएंगे, भूल गए इस स्टार्ट अप को शुरू करते हुए हमने क्या शपथ खाई थीं?
अरे यार! बी प्रैक्टिकल!राहुल लापरवाही से बोला,प्रॉफिट देखो, आदर्शो पर चलकर जिंदगी जी नहीं जाती, ये
सब किताबी बातें हैं जो कहने सुनने में ही अच्छी लगती हैं बस।
लेकिन इससे मेरा दम घुट जाएगा,आत्मा मर जाएगी और ऐसे मैं कंटिन्यू नहीं कर पाऊंगी..स्नेहा ने अपनी
मजबूरी बताई।
दरवाजा उधर है स्नेहा…! राहुल ने कहा तो स्नेहा को बहुत धक्का लगा, लेकिन वो चुपचाप उसे छोड़ कर चली
गई।
इसके बाद कई कर्मचारियों ने भी इस्तीफा दे दिया। कुछ ही महीनों में कंपनी की साख गिरने लगी। मीडिया
में बदनामी हुई, निवेशक पलट गए और कंपनी बंद होने की कगार पर आ गई।
एक दिन राहुल अपने खाली ऑफिस में बैठा था, जहाँ पहले सैकड़ों लोग काम किया करते थे। दीवार पर
टंगी एक पुरानी फोटो उसकी और स्नेहा की थी—कंपनी के पहले इन्वेस्टमेंट के दिन की। उस फोटो को देख
वह टूट गया। उसे एहसास हुआ कि वह अपने लालच में अपने आदर्श, लोगों और रिश्तों को खो चुका है।
क्या कुछ किया जा सकता है?राहुल बड़बड़ाया खुद से ही।
स्नेहा नहीं मानेगी,वो बहुत स्वाभिमानी है, मैंने उसका दिल दुखाया है लेकिन मैं इसका प्रायश्चित भी तो कर
सकता हूं..
पर कैसे?उसके अंतर्मन से आवाज आई।
पहले मैं स्नेहा से माफी मांगूंगा, उम्मीद है वो माफ कर देगी मुझे जब मेरी सही इंटेंशन देखेगी, फिर अपने
पुराने कर्मचारी वापिस लाउंगा, कितने विश्वास से जुड़े थे वो सब मेरे संग,मैंने उनका विश्वास तोड़ा है, साथ ही
उन्हें बेरोजगार भी किया, अब ये ही मेरा प्रायश्चित है कि मैं पुनः प्रयास कर उन्हें वापिस अपने साथ जोड़ने की
कोशिश करूं।
राहुल ने सबसे पहले स्नेहा से माफी मांगी। शुरुआत में वह नहीं मानी, लेकिन जब राहुल ने कंपनी के पुराने
मूल्यों पर एक नई छोटी फर्म "ग्रीनसेट" के साथ शुरुआत की, और उसमें पुराने कर्मचारियों को वापस
बुलाया—तो स्नेहा भी वापस आ गई।
इस बार कंपनी धीमी चली, लेकिन सच्चे मूल्यों के साथ। राहुल ने हर नये निर्णय में अपनी टीम की सलाह ली,
और मुनाफे से ज़्यादा प्राथमिकता पर्यावरण और कर्मचारियों की भलाई को दी।
लोगों ने नोटिस किया राहुल मे आए इस बदलाव को, वो अब पहले वाला राहुल नहीं था, वो पूरी तरह बदल
चुका था,धीरे धीरे उनका स्नेह और सम्मान राहुल को फिर से मिलने लगा।
इस तरह राहुल ने अपने खोए हुए विश्वास को पाया और सीखा कि प्रायश्चित केवल क्षमा माँगने से नहीं
होता—बल्कि सुधार करने, और वही गलतियाँ न दोहराने से होता है।
प्रायश्चित केवल व्यक्तिगत जीवन तक सीमित नहीं होता। बिजनेस में भी जब नैतिकता से समझौता हो, तो
आत्मबोध और सुधार की राह ही सच्चा पुनर्निर्माण है।
राहुल अब पर्यावरण फ्रेंडली प्रोडक्ट्स बनाता, बेचता और प्रमोट करता,उसे एहसास हो गया था कि जो
सुकून और निश्चिंतता ईमानदारी से कमाए पैसों में है वो बात किसी दूसरे काम में नहीं।वो दृढ़ प्रतिज्ञा कर
चुका था कि पुरानी गलती नहीं दोहराएगा।
स्नेहा अक्सर मुस्करा के उससे कहती..तुम्हारे प्रायश्चित ने तुम्हें खरा सोना बना दिया है।
वो कैसे?वो भी मुस्कुराता हुआ कहता,आदमी को हर समय सुधरने की गुंजाइश बनी ही रहती है लेकिन मुझे
फिक्र नहीं है अब।
क्यों भला? अब तुम्हारे हाथ ऐसा क्या लगा है? स्नेहा पूछती।
जिसके पास तुम्हारे जैसा प्रखर साथी हो जो शुद्ध अग्नि की तरह मुझे तपा सके तो सोना तो खरा बनना तय
है फिर।
अच्छा जी! तो ये बात है..स्नेहा खिलखिलाती और इस तरह उन दोनो की जिंदगी उन्नति के शिखर चूमती ही
गई।
डॉक्टर संगीता अग्रवाल
वैशाली,गाजियाबाद
#प्रायश्चित