मुझमें संस्कार है पर आप में नहीं ? (भाग 1 ) – सीमा कृष्णा सिंह

आज सुबह से ही राधा जी अपनी बहू अलका से बहुत नाराज़ हैं। राधा जी के घर में राधा जी की हुकूमत चलती है। उनके पति सिर्फ उनके नाम के पति.है।. राधा जी के दो बेटे हैं बड़ा बेटा अनिल और छोटा बेटा नवीन…।

अलका उनके बड़े बेटे अनिल की पत्नी हैं।अलका और अनिल की शादी को अभी 6 महीने हुए हैं। राधा जी को हर चीज उनके हिसाब से चाहिए. होता है।चाहे खाना हो, चाहे कपड़े..हो या  कुछ भी जो उन्हें चाहिए. होता है।

अनिल और अलका की शादी बहुत ही धूमधाम से सम्पन्न हुई थी..।पर कहते हैं ना शादी ब्याह में आप कितना भी कुछ कर लो ,पर कोई ना कोई नुक्स निकलता नहीं ,पर  निकाला जरूर  जाता है। ऐसी ही कुछ घटना अलका और अनिल की शादी के वक्त हुई थी। अनिल के कुछ रिश्तेदारों के द्वारा हर बात पर लड़की वालों को हुक्म देना। हम लड़के वाले हैं आपको हमारी हर छोटी-बड़ी जरुरतों का ख्याल रखना होगा। 

चाहे वो  जरुरत उचित हो या अनुचित। इसकी वजह से  बातों ही बातों में बहस छिड़ जाती है और बहस झगड़े का रूप ले लेती है। दोनों पक्ष मिलकर. किसी तरह से सब  को शांत करवाते हैं। तभी अनिल के पिताजी अलका के घर वालों से अपने रिश्तेदारों के द्वारा किए गए दुव्यावाहर के लिए  सब से माफी मांगते हैं और साथ  में सब ये यह भी कहते हैं कि शादी ब्याह में काम सारे बहुत होते है ।कुछ कमी हो भी गई तो क्या हुआ।हम उस कमीयों की वजह से जो बाकी सब सुविधाएं हमारे लिए उपलब्ध कराई गई है उनकी कोई किमत नही।कमी किसी भी तरफ से हो सकती है।बात संभालने की जरूरत है ना कि बिगाड़ने की। अनिल के पिताजी की बातों को सुनकर अलका के पिताजी के चेहरे पर मुस्कुराहट आती है और बड़ी ही धूमधाम से अलका और अनिल की शादी होती है।




जब राधा जी को इन सब के बारे में पता चला तो वो बहुत ज्यादा गुस्सा होती है। और अपने पति को बहुत सुनाती है।आपको क्या जरूरत थी माफी मांगने की।लड़के के घर वालों की खातिरदारी करना उनकी जिम्मेदारी है।लडकी दे रहे हैं वो अपनी।वो भी इतने बड़े घर में। लड़की का पिता हाथ जोड़कर खड़े ही अच्छा लगता है।जब औकात नहीं थी तो इतने बड़े घर में बेटी की शादी क्यों की। बड़ा ही संस्कारहीन परिवार है। दामाद की और उसके परिवार वालों की इज्जत करना भी नही आता। उसी दिन अलका राधा जी की नजरों में गड़ने लगी थी और घर में कुछ भी होता।बस राधा जी की मौका मिलता और वही बात को लेकर अलका को ताने देती….”तुम्हारे मायके वालों में संस्कार नहीं,जब औकात नहीं थी।

 खातिरदारी करने की तो इतने बड़े घर में बेटी शादी क्यों की”। अपनी सास की तानों को सुनकर नई-नई दुल्हन बनी अलका खामोश रहती।

अनिल अलका को बहुत प्यार करता है। वो अलका को समझते हुए कहता मां की बातों को दिल पर लो।मै उनसे बात करुंगा। अलका के आ जाने से उसका देवर नविन और उसके ससुर जी बहुत खुश रहते थे। अलका के ससुर जी अलका को बहू कम बेटी सा मान करते हैं। और नवीन तो  अपनी हर छोटी-छोटी बात अलका के साथ शेयर करता। अलका की इज्जत भी बहुत करता।पर उसकी सासु मां राधा जी अलका के हर काम में गलती ढुंढती रहती।

अनिल ने एक दो बार अपनी राधा जी को  अलका के लिए बात भी करी.”मां अलका आपकी बहू  है। मेरी पत्नी है।शादी ब्याह में जो कुछ भी हुआ उसमें हमारी और से  भी गलती हुई थी।उन्होंने तो सब कुछ बहुत अच्छा आरेंज किया था। बीती बातों को कब तक पकड़ कर बैठे रहेंगे।जो हुआ सो हुआ।यु हर बात पर अलका को ताने देना।ये तो सही नही है,वो अब इस घर  का हिस्सा है।मेरी पत्नी, आपकी बहू है”।अनिल ने धीरे से ये बात अपनी मां को कही..




अनिल की बात सुनकर राधा जी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया और उन्होंने अपने बेटे अनिल को बहुत खरी खोटी सुनाई… अभी शादी को कुछ महीने ही हुए हैं और तुम अपनी पत्नी की वकालत करने आ गए। हो। एक बात कान खोल के सुन लो ।इस घर में रहना है ,तो मेरे हिसाब से रहो…मैं तेरी मां हूं, तुम मेरे बाप बनने की कोशिश मत करो। बेटे हो बेटे की तरह रहो…। अपनी मां की बातों को सुनकर अनिल वहां से चला जाता है।

तभी राधा जी अलका को आवाज लगाती है और कहती हैं”आज घर में किटी पार्टी है, मेरी कुछ सहेलियां आयेगी सब अच्छे से आरेंज करना। और तुम भी तैयार हो जाना।अलका  पार्टी की अरेंजमेंट बहुत  ही अच्छी तरह से करती है।.हर उस बात का ख्याल रखती है जो उसकी सासु मां (राधा जी) को पसंद है। पार्टी शुरू हुई राधा जी  की सब सहेलियां अलका की तारीफ कर रही होती हैं।

उस दिन अलका गुलाबी रंग की साड़ी में और बहुत ही खुबसूरत लग रही होती हैं। उसकी सासु मां(राधा जी) ने उसे एक हीरे का सेट दिया था उसे  पार्टी में पहनने को कहती है।शादी के बाद अलका की  पहली किटी पार्टी थी ।राधा जी ने खास कर अपनी बहू अलका के लिए ये पार्टी रखी थी। वो हीरे का हार अलका की सुंदरता को और चार चांद लगा रही थी। हार की बहुत तारीफ हो रही थी। तभी राधा जी की एक सहेली ने अलका से पुछती है”बहुत  ही सुन्दर हार है। कहा से अपने लिया। मुझे भी ऐसे ही एक सेट  लेनी है।अपनी बेटी के लिए।अगले महीने उसकी शादी है। अलका कुछ कहती, उसके पहले ही राधा जी कहती हैं”ये हार मेरा है। मैंने ही दिए थे आज की पार्टी में पहने के लिए।, इसके मां-बाप की इतनी हैसियत कहा। इसके सारे जेवर पुराने डिजाइन के और हल्के भी। सोने की औकात तो है नहीं ,हीरा तो बहुत दूर की बात है।”राधा जी की बातों को सुनकर अलका के दिल को बहुत ठेस पहुंचती है।




ये सब सुनकर अलका को बहुत गुस्सा आता है पर वो उस वक्त शांत रहती है। क्या करें माता-पिता ने ऐसे ही संस्कार दिए हैं की घर की बातों को घर की चारदीवारी के अंदर ही रखना अच्छा होता है।अलका ने कभी भी अपनी सास को काभी कोई जवाब नहीं देती। चाहे वो कितना  कुछ क्यों ना  कहती हो।,पर आज पार्टी में राधा जी ने जिस तरह से अपनी सहेलियों के समाने अलका के माता-पिता का अपमान किया ।वो अलका के दिल को लगीं और वो पार्टी खत्म होने का इंतजार करने लगी।अलका ने  आज तय कर लिया था आज चाहे जो कुछ भी हो जाए वो आज मम्मी जी को उनकी ही भाषा में सबक सिखायेगी।

पार्टी के खत्म होते ही अलका ने बड़ी हिम्मत करके  अपनी सासु मां से कहती है”आपकी हिम्मत कैसे हुई मेरे माता-पिता के बारे में ऐसी घटिया बात करने की। आपकों जो कुछ भी कहना है मुझे कहीए। मेरे माता-पिता को नही।आप हर बात पर और की क्या बात करती है।

 उनकी औकात आप से कही ज्यादा है। और संस्कार भी।और जो हर बात आप मुझे संस्कार के नाम पर मुझे ताने देती है… तो  आज मैं आप से कहती हु की आप में संस्कार नहीं है…??? आपके यही संस्कार है की सबके समक्ष अपनी घर की बहू का तमाशा बनना। उसकी बेइज्जती करना।आप मेरी बेइज्जती नही कर रही थी आप अपने आप की बेइज्जती कर रही थी।मैं भी चाहती तो‌ उस वक्त सबके सामने आपको  बहुत कुछ कह सकती थी ।पर मेरे  ये संस्कार नही है…। 

मम्मी जी मुझमे संस्कार है पर आप में नहीं????आप संस्कार की बात करती है ,जो अपने ही पति की इज्जत नहीं करती।ना अपने बच्चों की भावनाओं की कद्र करती है।बहू हु आपकी ,आप से ही ये संस्कार मिले है। तभी तो मुझमें इतनी हिम्मत आई है और मैं बोल पा रही हु।ये मेरे ससुराल के संस्कार है जो मुझे मेरी सासु मां से मिले हैं। अलका की बात राधा जी को काटे की तरह चुभ रही थी  क्योंकि  आज तक कभी भी किसी ने उनसे इस क़दर बात नही की थी।आज अलका ने अपनी सास को आईना दिखा दिया।




और साथ ही साथ अपने दिल की भड़ास भी निकाल ली और उसका  सारा श्रेया अपनी सास को दे दी। मम्मी  जी आप से ही  सीखी हु ।जब  कुछ पसंद ना आए तो  उसे वहीं उसी वक्त उसको बोल देना चाहिए।।आपकी बहू हु आपके ही तौर-तरीकों को अपनाऊंगी।जिस तरह आपको अपने सिवा कोई नजर नही आता,।उसी तरह मुझे भी अपने सिवा कोई नजर नही..आप से ही सीखी हु। सही कह रही हु ना मम्मी जी।”अलका बड़े प्यार से अपनी सास को कहती है। अपनी बहु की बातों को राधा जी अपने कमरे की चली जाती है।

शादी के बाद पहली बार अलका ने राधा जी से ऐसी बात की थी।अलका के इस रूप को देखकर राधा जी के साथ साथ अनिल , नवीन और अलका के ससुर जी भी चौंक जाते हैं। तभी अलका अपने ससुर जी से कहती है”पापा जी माफ कर दिजिएगा , मुझे मम्मी जी ऐसे बात नही करनी चाहिए थी ।पर वो मुझे कुछ कहती तो मैं शायद  सुन  भी लेती। पर उन्होंने सबके सामने मेरे माता-पिता का अपमान किया ।जो मुझसे सहन नहीं हुआ और मैंने इतना कुछ उन से बोला दिया”।

“बेटा तुमने जो कुछ भी किया सही किया।उसने अपने सिवा किसी की परवाह नही की।ना मेरी ना बच्चों की.. कभी कभी इंसान को उसके ही तरीके से समझाना अच्छा होता है । तुमने कुछ भी ग़लत नही किया। शायद ज्यादा नही पर थोड़ी बदलाव की उम्मीद राधा से  हम कर ही सकते हैं”। ससुर जी की बात सुनकर अलका मुस्कुराती है और साथ में सब लोग भी…..।

कभी-कभी हम चुप रहते है क्योंकि रिश्ते की मर्यादा का मान रखते है….पर लोग समझ लेते हैं की हम कमजोर है..।पर हम कमजोर नहीं है,हमारे संस्कार है ।जो हमें अपने से जुड़े हर रिश्ते का मान रखना सीखाती है। हमारी खामोशी हमारी कमजोरी नहीं  हमारी तकाता है।

धन्यवाद

आपकी अपनी

सीमा कृष्णा सिंह

हैदरबाद

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