मुंह मोड़ना – पूनम सारस्वत : Moral Stories in Hindi

दिल तोड़ने वाले तुझे दिल ढ़ूंंढ रहा है….

पार्श्व में गाने के बोल मंजरी के कानों में पिघले शीशे से लग रहे थे और वह न चाहते हुए भी आंसुओं के समुद्र में भीगी जा रही थी।

रह रह कर वह खूबसूरत पल उसे याद आ रहे जो उसने अमित के साथ गुजारे थे, हाथों में हाथ डाले दोनों बर्फीले घाटियों में गुनगुनाते हुए, रात को नर्म बिस्तर पर एक दूसरे को तरह तरह के किस्से सुनाते हुए, दूर कहीं जुगुनू की रोशनी को देखते ,बतियाते कॉफी पीते हुए, तो सुबह सुबह अमित को उठाने के लिए बालों से गिरती हुई बूंदें उसके गालों पर ढुलकाते हुए, कितने ही हसीं पल थे जो एक बाद एक फ्लैश बैक में चल रहे थे।

पल थे भी कितने?

इतने कम कि उंगलियों पर गिने जा सकें,या कि मुठ्ठी में ही बंद किए जा सकें।

पर हां उन संक्षिप्त पलों में ही जैसे अमित कई जन्मों को प्यार उस पर उड़ेल कर उसे एकदम ही बेसहारा कर मुंह मोड़कर चला गया था। ऐसे कैसे मेरी तकदीर फूट गई? अमित क्यों हुआ ये हमारे साथ?मंजरी मन ही बुदबुदा रही थी,अभी तो मधुमास  ठीक से शुरू भी न हुआ था कि सब कुछ खत्म। 

नहीं ये नहीं होना था ये गलत है,कहकर मंजरी फूट फूटकर रो पड़ी, आंखों पर हाथ रखकर वह भरसक रुलाई को रोकने का प्रयास कर रही थी।

अमित तुमने ऐसा क्यों किया ?

यदि मुंह मोड़ना ही था तो मेरे जीवन में यूं आए ही क्यों थे?

मैं तो अकेले आराम से जीवन गुजार ही रही थी । 

पर अब क्या करुंगी , कैसे जीऊंगी मैं तुम्हारी यादों के सहारे ??

और हिचकी भरती हुई मंजरी पास ही पड़ीं बेंच पर निर्जीव सी हो गिर पड़ी।

अमित कहां हो तुम ?आ जाओ ,देखो मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती, हां मानती हूं आज से दो महीने पहले तक मैं तुम्हें जानती तक नहीं थी पर अब ? अब नहीं जी सकती हूं में तुम बिन, देखो मत सताओ आ जाओ प्लीज़।

अब उसकी हिलकी बंध चुकी थी। मां जो अब तक दूर खड़ी थीं ये सोचकर कि इसका गुबार निकल जाने दूं जिससे कि इसके दिल पर रखा पत्थर थोड़ा तो हटे,पास आईं और बोलीं बेटा तेरा उसका साथ इतना ही लिखा था । 

किसे पता था कि वह यूं हमेशा हमेशा के लिए हम सबसे मुंह मोड़ लेगा।

मैं ये नहीं कहूंगी कि भूल‌ जा तू उसे क्योंकि यह संभव नहीं,एक भारतीय स्त्री कहां जीवन भर अपने सुहाग को भूल पाती है? 

पर अब तुझे हिम्मत से काम लेना होगा बेटा,क्योंकि तेरे अंदर जो उसका अंश पल रहा वह तेरी जिम्मेदारी है, लाड़ो ,मान जा।

 उसे सकुशल दुनिया में लाकर तू अमित को एक तरह से वापस लाएगी,बेटा।

 बेटी हमारी झोली में यह भीख डाल दे। तू देख अपना ध्यान रख ।

और हां…..

यदि 

तू चाहे तो इसे नष्ट करा दे ,हम तुम्हें नहीं रोकेंगे बेटी, तेरा जीवन तो अभी शुरू ही हुआ था, हम कोई जबरदस्ती नहीं करेंगे तेरे साथ।

मां…

ये आपने क्या कह दिया ???

रोते-रोते मंजरी ने तड़प कर कहा मंजरी बोली मां मैं इसे अवश्य जन्म दूंगी, अमित की आखिरी निशानी हमारे घर में किलकारी बन गूंजेगी, अवश्य गूंजेगी ।

यही तो हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी अमित की शहादत को, मां मैं कोशिश करूंगी इस गम से बाहर आने का, वायदा तो नहीं कर सकूंगी मां,पर प्रयास जरुर करुंगी, इस नन्ही जान के लिए खुश रहने का, देखना ये अंश ही एक दिन  अमित का नाम रोशन करेगा और दोनों सास -बहू गले से लगकर एक दूसरे को सांत्वना देने लगीं।

#तकदीर फूटना 

रचना:- पूनम सारस्वत 

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