मेरी लक्ष्मी है – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

” हाय राम! फिर से बेटी…मेरी तो#तकदीर फूट गई…।” कहते हुए गिरिजा जी ने अपने दोनों हाथों से माथा पकड़ लिया और धम्म..से सोफ़े पर बैठते हुए बड़बड़ाई, न जाने मैंने कौन-सा पाप किया था जो…

विवाह के पाँच बरस बाद भी जब गिरिजा जी की गोद सूनी ही रही तब उनके पति बोले,” शायद हमारी किस्मत में संतान-सुख लिखा ही नहीं है।

” लेकिन उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी।संतान-प्राप्ति के लिये उन्होंने महीनों देवी माँ की चौखट पर दीये जलाए, व्रत किया।तब जाकर उन्हें पुत्र एक हुआ।उसके पालन-पोषण में उन्होंने कोई कमी नहीं की।कभी-कभी उनके पति हँस कर कह देते,” बेटा क्या हुआ, पति को तो भूल ही गई।” सुनकर वो मुस्कुरा देती।

उनका बेटा आकाश पढ़ने में होशियार था।बारहवीं कक्षा की परीक्षा पास करके वो इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था,तभी उनके पति का देहांत हो गया।उन्होंने हिम्मत रखी और बेटे की पढ़ाई पूरी करवाई।

आकाश को एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी मिली तो गिरिजा जी फूली न समाई।वो बेटे की शादी के सपने देखने लगी।चाहती थी कि आने वाली बहू ढ़ेर सारा दहेज़ लेकर आये जिसे अपने जान-पहचान वालों को दिखाकर वो वाह-वाही लूटे लेकिन आकाश ने अपनी पसंद की लड़की सुमन से बिना दहेज़ की शादी करके उनके अरमानों पर पानी फेर दिया।

जिसके लिये वो गाहे-बेगाहे बहू को ही दोषी मानते हुए कहतीं कि तुमने मेरे बेटे को फँसा लिया।समय बीतते सुमन ने एक पुत्री को जनम दिया।वो निराश तो हुईं लेकिन फिर तसल्ली कर ली कि अगली बार बहू को बेटा होगा।अब विधि के विधान को भला कौन टाल सकता है।सुमन ने फिर से कन्या को ही जनम दिया तब उनका दबा हुआ गुस्सा फूट पड़ा…।

गिरिजा जी की छोटी ननद माधवी उसी शहर में रहती थी।वो जब कभी अपनी भाभी से मिलने आती तो उनकी पोतियों को देखकर अफ़सोस जताती और फिर अपनी बहू-पोतों की प्रशंसा करके उनके घाव पर नमक छिड़कती।वो चाहकर भी अपनी ननद को जवाब नहीं दे पाती।

सुमन की दोनों बेटियाँ देखने में सुंदर और पढ़ने में होशियार थीं।बड़ी काजल फ़ैशन डिज़ाइनिंग में डिप्लोमा करके एक कंपनी में ज़ाॅब करने लगी।छोटी पारुल पुलिस-भर्ती की परीक्षा पास करके ट्रेनिंग के लिये चली गई।

एक दिन गिरिजा जी की ननद आईं।ननद का उतरा हुआ चेहरा देखकर उन्होंने कारण जानना चाहा।तब वो रोते हुए बोली,” भाभी..मेरी तो#तकदीर फूट गई..जिस पोते के जनम पर मैं घमंड करती थी, उसने पढ़ाई तो की नहीं..आये दिन माँ-बाप से पैसे लेकर जुआ खेलने लगा और अब तो गाली-गलौच भी करने लगा है।बेटे-बहू मुझे दोषी मानकर रोज ताने देते हैं…

भाभी,मैं तो…।” कहते-कहते वो सुबकने लगी।उसी समय पारुल अपनी ट्रेनिंग पूरी करके पुलिस की वर्दी में घर में प्रवेश करती है।पोती की नज़र उतार कर गिरिजा जी प्रसन्न होकर ननद से बोलीं,” माधवी..तुम्हारी किस्मत खराब होगी लेकिन मेरी तकदीर बहुत अच्छी है।मेरी पोतियाँ मेरी लक्ष्मी हैं..काजल तो एक बड़ी कंपनी में काम करती है और पारुल को देखो…।

” कहते हुए उन्होंने पारुल की बलैया ली और उसे अपने सीने से लगा लिया।माधवी के पास अब कहने के लिए शब्द नहीं थे, वो चली गई।दूर खड़े आकाश और सुमन की आँखें दादी-पोती का स्नेह भरा मिलन देखकर खुशी-से छलक पड़ीं।आखिरकार, उनकी बेटियों ने अपनी दादी के मन में जगह बना ही ली।

विभा गुप्ता

#तकदीर फूटना स्वरचित, बैंगलुरु

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