मेरी दोनों बहू आपस में बहनों की तरह रहती हैं – डोली पाठक : Moral Stories in Hindi

नम्रता की शादी को पूरे तीन साल हो चुके हैं…

अब तक घर परिवार को उसने बड़े हीं सुव्यवस्थित ढंग से संभाला है… 

मंझले देवर के विवाह की तैयारियां चल रही है… 

लड़की देखने में तो अच्छी-भली है पता नहीं व्यवहार कैसा होगा?? 

इस बात की सबसे अधिक फिक्र नम्रता को हीं है… 

नम्रता ने तो सोच लिया था कि, देवरानी चाहे जैसी भी हो वो तो उसे खूब प्यार देगी…

आखिरकार पहली बार तो कोई उससे छोटा आ रहा था घर में… 

वरना मैके में तो सबसे छोटी थी और ससुराल में बड़ी बहू बन कर आ गई…

आखिरकार विवाह की तिथि भी आ हीं गयी देवर दूल्हा बना खूब धूम-धाम से विवाह संपन्न हुआ …

प्रतिमा नम्रता की देवरानी बन कर घर आ गई… 

नम्रता ने जेठानी होने का हर फर्ज निभाया… 

बोलो क्या चुनोगे – हरीश पांडे 

अब तो घर में दो बहूएं हो गई तो घर की रौनक और भी ज्यादा बढ़ गई।

 नम्रता जितनी अंतर्मुखी स्वभाव की थी प्रतिमा उतनी ही बातूनी… 

दोनों में खूब पटता था… 

प्रतिमा के आ जाने से नम्रता को ना सिर्फ एक देवरानी बल्कि एक बहन और सहेली भी मिल गई… 

प्रतिमा का स्वभाव भी वैसा हीं था हंसते-हंसते बड़ी बड़ी बाते कह जाती और किसी को बुरा भी नहीं लगता था… 

नम्रता से उम्र में ज्यादा छोटी नहीं थी परंतु नखरे ऐसे दिखाती कि लगता कि कोई छोटी बच्ची हो जैसे…. 

दोनों बहूओं के स्वभाव में हीं नहीं बल्कि उनकी आदतों में भी जमीन आसमान का अंतर था… 

नम्रता आध्यात्मिक विचारों और पूजा पाठ में रुचि रखने वाली एक घरेलू महिला थी वहीं प्रतिमा 

थोड़ी अल्हड़ थोड़ी नटखट और डांस मेकअप आधुनिकता से जुड़ी हुई थी।

वो हर समय नम्रता से कहा करती, क्या दीदी भरी जवानी में ये पूजा-पाठ और भक्ति में रमी रहती हो…. 

फिल्मी गाने बजाओ ना मिल कर डांस करते हैं… 

इस पर नम्रता कहती – रहने दो मुझसे नहीं होगा ये सब तुम हीं करो…

प्रतिमा को मजाक करने में किसी को तंग करने में बड़ा हीं मजा आता… 

परिवार का हिस्सा – रश्मि प्रकाश 

इन सबके बावजूद भी वो दिल की बड़ी हीं अच्छी थी… 

नम्रता की दो साल की बच्ची को अपनी बच्ची की तरह प्यार किया करती थी…. 

जब कभी किसी बात के लिए नम्रता फटकार भी देती तो वो बुरा नहीं मानती… 

तुरंत दीदी दीदी करते हुए आप मिलती… 

दोनों के विचारों में चाहे कितना भी विरोधाभास क्यों ना हो परंतु दिलों में अथाह प्रेम था… 

सास के ना होने पर कभी नम्रता उसे किसी बात के लिए मना कर देती तो वो उसका सम्मान रखते हुए मान लेती … 

उनका अक्सर एक ही बात पर बहस होता था और वो था 

उनका पसंदीदा हीरो… 

क्या दीदी आपके हीरो की तो नाक टेढ़ी है तो

हां रहने दो तुम्हारा हीरो तो गैंडे सा है… 

उनकी इस बहस पर सास बस मुस्कुरा दिया करती और कहती- तुम दोनों को जब लड़ने के बाद भी एक-दूसरे से दूर नहीं रहना है तो क्यों लड़ती हो???? 

ऐसे हीं हंसते-खेलते दिन बीत रहे थे…  

एक दिन प्रतिमा ने तो मजाक की हद हीं कर दी- पेट पर मोटा कपड़ा बांध कर पेट पकड़ कर लंगड़ाते हुए आकर नम्रता से बोली – दीदी!! जल्दी से अपने हाथों की टमाटर की सब्जी खिला दो देखो मेरा सातवां महीना चल रहा है… 

चिड़िया उड़ जायेगी – डा. मधु आंधीवाल

अगर आपने नहीं खिलाया तो जन्म के बाद मेरे बच्चे को लार टपकती रहेगी और उसकी जिम्मेवार होंगी आप… 

नम्रता का तो हंस-हंसकर बुरा हाल हो गया… 

वो हंसते हुए बोली – नाटक बंद करो और जल्दी से ये खुशखबरी सच में सुना दो फिर जो कहोगी वो खिला दूंगी… 

ना ना दीदी मुझे अभी के अभी चाहिए….

इतना हक जताती थी वो अपनी जेठानी पर…. 

जेठानी भी तो बड़ी बहन से कम ना थी उसकी हर बात मान कर बहन सा स्नेह देती थी।

तभी तो सास अक्सर कहा करती #मेरी दोनों बहू आपस मैं बहन जैसी रहती है ..

अब तो बस तीसरी भी ऐसी हीं आ जाए तो मैं गंगा नहा लूं….

डोली पाठक

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