*मेरे आदर्श मेरे पिता* – सरला मेहता

मेरे पिता पटेल दुर्गाशंकर जी नागर देवास जिले के ग्राम लसुरडिया के जागीरदार थे। दूरस्थ पत्थरों में बसा मेरा गाँव देवी अन्नपूर्णा की पावन स्थली है। वर्षों पूर्व नरसिंह मेहता के वंशज, मुगलों द्वारा प्रताड़ित मेरे पूर्वज गुजरात से इस बीहड़ में आकर बस गए थे। उनके साथ अन्य वर्ण व वर्ग के लोग भी बैलगाड़ियों से यहॉं आ गए थे। देवी माँ भी स्वप्न देकर एक चट्टान से वहाँ प्रगट हो गई। फ़िर स्वप्न दिया कि उन्हें ज्वार के राड़े के छकड़े में ले जाएँ। जहाँ भी छकड़ा टूटे वहाँ माँ को स्थापित करे। उस स्थान पर बना मन्दिर आज भी है। यह समस्त नागर ब्राह्मणों की कुलदेवी के मंदिर के नाम से प्रख्यात है। धीरे धीरे माँ अन्नपूर्णा की कृपा से गाँव धन-धान्य से पूर्ण हो गया।

           मेरे पिता देवी के महान भक्त होने के साथ समाजसेवी भी थे। मैं उन्हें दादा कहती थी। वैसे भी गाँव के सब लोग उन्हें दादा भाई कहते थे। वे भी सभी को अपने परिवार का ही सदस्य मानते थे। सबके सुख दुख के वे साथी थे। गाँव में किसी के यहाँ भी कोई उत्सव या गमी हो दादा उनकी मदद को तैयार रहते थे।

वे स्वयं अत्यंत सादगीपूर्ण जीवन जीते थे। गाँधीवादी तो थे ही, मात्र दो जोड़ खादी के धोती कुर्ते से काम चला लेते थे। भोजन में कुछ भी दे दो, खा लेते थे।


        वे सिर्फ़ छटी तक पढ़े थे किंतु ज्ञान जानकारी दुनिया भर की रखते थे। भ्रष्ट राजनीति व कुरूतियों पर  कलम भी चलाते थे। डॉक्टर्स पर उन्होंने लिखा था,,,

“वैद्य हकीम व दवासाज

बस अपनी जेबें भरते हैं,

ना मरने दें , ना जीने दें

दम घुट जीना सिखाते हैं”

         जो व्यक्ति तमाम व्यसनों से दूर सादगीपूर्ण जीवन जीता है, उसे ही कष्ट मिलते हैं। उन्हें जानलेवा केंसर ने आ घेरा। किन्तु माँ भगवती ने ज़्यादा कष्ट न देकर उन्हें अपने पास बुला लिया।

सरला मेहता

इंदौर म प्र

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