विशाखा को शहर के बहुत अच्छे स्कूल में नौकरी मिलने पर खुश होना स्वाभाविक ही था। उसे लगा कि अब उसकी आर्थिक तंगी दूर हो जाएगी और दिल भी लगा रहेगा। दो साल पहले रोड दुर्घटना में पति चल बसे तो मायके ससुराल दोनों ने ही किनारा कर लिया। पांच साल के बेटे के साथ कभी यहां तो कभी वहां भटक रही थी।ससुराल में जेठानी और मायके में भाभी मीठी मीठी बातें करके उससे सारा घर का काम करवा लेती।
वैसे भी वो बेचारी ना करने की स्थिति में नहीं थी। शादी को अभी सात साल ही हुए थे। मां तो बहुत पहले ही स्वर्ग सिधार चुकी थी। ससुराल में बीमार सास, जेठानी का हुक्म चलता था।
मायके जाना तो बहुत कम हो गया था। भाई ने समझाया कि ससुराल में रहोगी तभी तुम्हें हिस्सा मिलेगा। पढ़ी लिखी थी, भागदौड़ करके भाई ने नौकरी पर लगवा दिया। जल्दी ही उसे मुआवजे के पैसे भी मिलने वाले थे और वरूण के बीमे के भी। बीमे के पैसों का सिरफ उसके भाई नितिन को ही पता था, और सारी भागदौड़ भी वही कर रहा था।
जेठानी तो उसे पहले ही कुछ नहीं समझती थी, देवर की मौत के बाद और भी तंग करने लगी। वो चाहती थी कि विशाखा वहां से चली जाए ताकि सारे घर दुकान पर उसका कब्जा रहे।
ससुर तो था नहीं, पंरतु घर और दुकान उसी के नाम थी। वरूण की मौत के बाद एक साल तक तो वो सभंल ही नहीं पाई, कई बार तो उसका मरने को दिल करता, मगर नन्हें सोनू की बातें जीने को मजबूर कर देती। सिवाय भाई के उसका कोई सहारा नहीं था।
उस दिन विशाखा स्कूल से लौटी तो जेठानी रमा तुरंत उसके लिए ठंडी लस्सी ले आई और जब वो चेंज करके आई तो गर्मागरम खाना परोस दिया। सोनू की स्कूल यूनीफार्म भी बदल दी गई थी और वो मजे से खाना खाने के बाद आईसक्रीम खा रहा था, जेठ के दोनों बच्चे भी पास ही बैठे अपना होमवर्क कर रहे थे। इतना परिवर्तन, विशाखा का माथा ठनका। पहले तो जब वो स्कूल से आती तो सब खाना खा चुके होते और वो खुद आकर रोटी बनाती थी, सब्जी भी वो सुबह बना कर जाती थी और सोनू का सारा काम खुद ही आकर करती थी। बच्चों को भी सोनू से दूर रहने की सख्त हिदायत थी।
शाम को उसे पता चला कि दिन में बीमे वाला आया था कुछ पूछताछ करने तो जेठानी को पता चल गया कि जल्दी ही विशाखा को पचास लाख मिलने वाले है।लेकिन विशाखा भी अब समझ चुकी थी, अब वो ऐसी मीठी छुरी चलाने वालों के झांसे में नहीं आने वाली थी।
विमलागुगलानी
चंडीगढ़