काॅलेज में खुबसूरत शीना को देखते ही अमन उस पर लट्टू हो गया था। अमन दिलफेंक किस्म का इंसान था।उसे पढ़ाई -लिखाई से कोई मतलब नहीं था।वह काॅलेज में शीना के आगे -पीछे घूमा करता था। आखिरकार अपनी चिकनी -चुपड़ी बातों से उसने शीना को अपने प्रेम जाल में फाॅंस ही लिया। सामान्य परिवार की शीना माता-पिता और भाई के साथ रहती थी,
परन्तु जबसे उसका अमन के साथ रिश्ता जुड़ा था,वह खोई-खोई सी रहने लगी।उसे सपनों की दुनियाॅं में खोई देखकर उसकी माॅं ने समझाते हुए कहा था -” बेटी! प्यार-व्यार के चक्कर में मत पड़ना।अभी तुम्हें अपना भविष्य सॅंवारना है।”
माॅं की हिदायतें सुनकर शीना अमन से दूरी बनाने की कोशिश करती, परन्तु अमन अपनी बातों की मीठी छुरी से शीना को मना ही लेता। सचमुच प्यार अंधा होता है,जब हो जाता है तो सभी प्यार के दुश्मन ही प्रतीत होने लगते हैं।शीना को भी माता-पिता उसके प्यार के दुश्मन प्रतीत हो रहे थे।एक दिन अमन की चिकनी-चुपडी बातों में आकर शीना घर छोड़कर दिल्ली भाग गई।
माता-पिता ने अपनी इज्जत पर धब्बा लगने के कारण शीना को मरा हुआ मान लिया। कुछ समय अमन शीना के साथ दिल्ली में खुशी-खुशी रहा, परन्तु कुछ ही दिनों में शीना से उसका मन भर गया और वह उसे छोड़कर भाग गया।वो सपनीला प्यार,उसकी ऑंखों में अपने लिए आकर्षण,साथ जीने-मरने की कसमें बस एक झूठी बेचारगी बनकर रह गई।
उसके अंतस में कैद ऊर्जा खीझ और चिड़चिड़ेपन के रुप में बाहर आने लगी थी।वापस लौटकर माता-पिता के पास भी नहीं जा सकती थी। आत्महत्या के विचार से नदी किनारे पहुॅंच गई। ज़िन्दगी से निराश शीना नदी किनारे सोच-विचार की मुद्रा में बैठ गई।सूर्य के अप्रतिम सौन्दर्य पर अनायास ही उसकी नजरें टिकी गई ं।उसे एहसास हुआ कि सूर्य तो डूबने के समय भी चहुॅंओर अलौकिक आभा बिखेरकर डूब रहा
था,उसने तो अपनी जिन्दगी ही थाली के बैंगन के समान बनाकर रख ली है!उसे घर से भागने का साहस तो था, परन्तु नदी में डूबने का नहीं।
उसने डूबते हुए सूरज को प्रणाम करते हुए मन-ही-मन फैसला लेते हुए सोचा -” मैं आत्महत्या कर अपनी ज़िन्दगी यूॅं ही जाया नहीं होने दूॅंगी।अब किसी की बातों की मीठी छुरी के झाॅंसे में नहीं आऊॅंगी।इस अनमोल जिंदगी को किसी सत्कर्म में अर्पित करुॅंगी।”
मन में संकल्प लेते ही उसके चेहरे पर सूर्य की लालिमा छा गई और वह दृढ़ संकल्प के साथ अपने ठिकाने पर लौट गई।
समाप्त।
लेखिका -डाॅ संजु झा (स्वरचित)